रचनाकार

मैं लाल रंग से जन्मी

✍🏻वर्षा भिवगडे…

कभी-कभी कुछ हदों को,
पार करके भी देखना चाहिए।
कभी-कभी धार्मिक मान्यताओं को,
विज्ञान का आइना भी दिखाना चाहिए।

आज जब मैं बालकनी में कपड़े सुखा रही थी, ठीक उसी वक्त बगल वाली गायकवाड चाची भी कुछ छोटे-छोटे कपड़े सुखा रही थी उन कॉटन के कपड़ों को सूखता देख मैंने आश्चर्य से पूछ ही लिया कि चाची ये कपड़े किसके है चाची ने चेहरे में एक बड़ी सी मुस्कान के साथ जवाब दिया।

अरे ये, ये तो हमारे कुलदीप के कपड़े है। जब मैंने ये सुना तो मैंने उन्हें मुबारक बाद दी और साथ ही साथ उनकी बहू यानी आशी के बारे में भी पूछ ही लिया। चाची ने भी जवाब दिया वो भी ठीक है। फिर चाची ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि बस आशी का सवा महीना ख़त्म हो जाए तो मैं मन्नत पूरी होने की ख़ुशी में घर में देवी के नाम का जगराता रखूंगी। मैं खुद को ये पूछने से रोक नहीं पाई की चाची पूजा के लिए सवा महीने का इंतज़ार क्यूं?

चाची मुझे आश्चर्य से देखती हुई बोली कि वर्षा क्या तुम मेरे साथ मजाक कर रही हो? मैंने कहा कि नहीं चाची। मेरी ना सुनते ही चाची ने मेरे सवाल का जवाब तो नहीं दिया बल्कि मुझसे ही एक सवाल पूछ लिया, अच्छा ये बताओ कि क्या तुम्हे जब हर महीने मासिक धर्म आता है तो क्या तुम उन दिनों पूजा करती हो ? उनका सवाल सुनकर मैंने जवाब दिया हां। मेरी हां सुनकर चाची मुझे अजीब सी नजरों से देखने लगी और कहा कि ये तो पाप है, उस वक्त तो हम अपवित्र होते है और जब तक मासिक धर्म चलता है उस वक्त हमें कोई भी धार्मिक कार्य नहीं करना चाहिए, इस बारे में हमारे शास्त्रों में भी लिखा गया है। क्या तुम्हारे घर वालों ने इस बारे में तुम्हें नहीं बताया कभी? मैं चाची के हाव-भाव देख के ही समझ गई थी जब उन्होंने मुझे शक भरी नजरों से देखा तो मैंने भी बड़ी ही शालीनता के साथ उनके सवालों के जवाब दिया।

मैंने कहा चाची मेरे परिवार ने भी मेरे पहले मासिक धर्म शुरू होते ही ये सब बातें बताई थीं, जैसे हर लड़की को बताया जाता है। मैंने भी कुछ दिनों तक इन नियम का पालन किया मगर जब मैं 11वीं कक्षा में गई और जब मैंने विज्ञान विषय चुना, तब मुझे पहली बार मासिक धर्म की पूरी जानकारी मिली। उससे मुझे ये समझ आया कि ये हमारे जीवन के लिए कितना जरूरी है। इससे ही एक जीव की उपपत्ति होती है और इसी से इस पूरे ब्रह्माण्ड में जीव जंतुओं की उपपत्ति हुई है।

इस संसार में मनुष्य, कुत्ता, बिल्ली, बन्दर आदि में एक निश्चित समय के बाद अण्डो-उत्सर्जन एक चक्र के रूप में होता है। उदाहरण के रूप में मनुष्य में यह महीने में एक बार, चार दिन तक होता है जिसे माहवरी या मासिक धर्म कहते है। उन दिनों में स्त्रियों को पूजा-पाठ, चूल्हा, रसोई घर आदि से दूर रखा जाता है। यहां तक कि कई परिवार में स्नान से पहले किसी को छूना भी वर्जित है। शास्त्रों में भी इन नियमों का वर्णन है।

जबकि विज्ञान की नजर से देखें या विश्लेष्ण करें तो मासिक स्त्राव के दौरान स्त्रियों में मादा हार्मोन (estrogen) की अत्यधिक मात्रा उत्सर्जित होती है और सारे शरीर से ये निकलता रहता है। जब ये स्त्राव होता है तो महिलाओं को कमजोरी आ जाती है इसलिए इन दिनों महिलाओं को आराम करने और पोषकयुक्त खाना खाने की सलाह दी जाती है ना कि अपवित्र होने की वजह से।

ऐसे ही पक्षियों में भी अंडोत्सर्जन एक चक्र के रूप में होता है अंतर केवल इतना है कि वह तरल रूप में ना होकर ठोस यानी अंडे के रूप में बाहर आता है, सीधे तौर पर कहा जाए तो अंडा मुर्गी की महामारी या मासिक धर्म है।

आज कल ज्यादा पैसे कमाने के लिए आधुनिक तकनीक का प्रयोग कर मुर्गियों को भारत में निषेधित ड्रग ओक्सिटोसिन का इंजेक्शन लगाया जाता है जिससे मुर्गियां लगातार अनिषेचित अंडे देती है।

जब मैंने ये सब जाना तब से ही मैंने मासिक धर्म के समय के इन नियमों को मानना बंद कर दिया। क्योंकि मेरा मानना है कि जिस महामारी से मेरा और आपका शरीर बना हो वो अपवित्र कैसे हो सकता है? यदि हम मासिक धर्म को अपवित्र माने तो इसका मतलब ये है कि स्त्रियों के साथ- साथ पुरुष व बच्चे भी अपवित्र है क्योंकि हम सब के शरीर का निर्माण इसी से ही होता है बल्कि इसे तो हमें पवित्र समझना चाहिए। मगर हमारे समज में स्त्रियों को ही मासिक धर्म के समय पूजा की मनाही क्यूं और पुरुषों के लिए कोई नियम क्यूं नहीं। ये भी एक बड़ा सवाल उठता है? कई धर्मों में मासिक धर्म के समय पूजा पाठ करने की मनाही भी नहीं है। मैं असल में प्रकृति की यानी पेड़, नदी, मिटटी, सूरज, हवा व ऋतुओं को पूजना पसंद करती हूं क्योंकि मासिक धर्म से एक जीव का जन्म होता है और प्रकृति उसे इस संसार में जीवित रखती है। मासिक धर्म के बाद प्रकृति का हमारे जीवन में सबसे ज्यादा महत्व होता है। ये दोनों ही ना हो तो इस संसार में कोई जीवित वस्तु की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

चाची मेरी बातें सुनकर चुप हो गईं। मगर सच्चाई को समझ जाने के बाद भी वो अब भी अपनी बातों को ही सही समझती रहीं और मुझे भी समझाती रहीं।हमारे इस तर्क-वितर्क के बीच एक नन्हें हाथों ने मेरी साड़ी को खीचा और तोतली जुबान में कहा मम्मी भूख लगी है। मैंने उस नन्ही सी गुड़िया को गोद में उठाकर उसके गालों को खीचते हुए उसे सॉरी कहा और मन ही मन में मुस्कुराई कि मेरी सोच की वजह से मेरी बेटी रीती को इन नियमों का सामना नहीं करना पड़ेगा काश ऐसी सोच सब की हो तो एक बहुत बड़ा बदलाव होना संभव हो जाएगा। खैर उम्मीद पे दुनिया कायम है फिलहाल इस बदलाव की शुरुआत की नींव मैं तो अपने घर में रख चुकी हूं और मेरा परिवार भी इसका समर्थन करता है इसलिए ये सब करना संभव हो पाया है। एक बदलाव लाने के लिए अपनी सोच को बदलना ही काफी होता है। मेरे इन विचारों से शायद बहुत से लोगों को ऐतराज भी हो सकता है। मुझे उनके प्रश्नों का इंतज़ार रहेगा। वो क्या है ना…कि तर्क-वितर्क से नई-नई बातें निकलकर सामने आती हैं। तो देखते हैं और हमें कौन-कौन सी नई जानकारियां मिलती हैं।

मैं लाल रंग से जन्मी,
मैं इसी की लाली से रंगी…

पूरी सृष्टि भी इसी,
लाल की लाली से रंगी…

देवी-देवता भी इसी लाली से,
इस जग में अवतरित हुए…

फिर मुझे ये समझ न आए कि,
ये लाली कैसे अपवित्र कहलाए?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *