पुण्य स्मरण

अफसाना लिख रही हूं दिले बेकरार का… आज टुनटुन का जन्मदिन है!

@ हेमन्त…


हम में से शायद ही कोई ऐसा होगा जो टुनटुन को देख कर न हंसा हो। आज वे हमारे बीच होती तो 100वें साल में प्रवेश कर जाती। आज टुनटुन का जन्मदिन है। पचासों फिल्मों में उनकी अनोखी भाव भंगिमाएं देखीं। बहुत बाद में जा कर मालूम पड़ा कि उनका असली नाम ऊमा देवी था। यह भी कि अफसाना लिख रही हूं दिले बेकरार का, आंखों में रंग भरके तेरे इंतजार का…गीत भी इन्हीं ऊमा देवी ने गाया था। यह सुपरहिट गीत 1947 में आई फिल्म दर्द में गाया था। इसके अलावा भी कई चर्चित गीत। फिर एक बार रेडियो में उन्हें लेकर कई बातें सुनीं। उनके कई गीत सुनें।
सभी को हंसाने वाली गोल मटोल टुनटुन के पीछे एक ऊमा देवी की दर्द भरी दास्तान एकबारगी परेशान करने वाली है। कहां ये हंसी मजाक और कहां सुरों का वो जादू। दोनों का कोई मेल ही नहीं दिखता। मथुरा में ऊमा देवी का बचपन बेहद ही दुख में गुजरा। मां-बाप बचपन में ही गुजर गए। चाचा के घर पली जहां संगीत हराम था। लेकिन ऊमा देवी को गाने का शौक कुछ इस कदर था कि 13 साल में ही भाग कर मुंबई आ गई। किसी के घर बर्तन-सफाई आदि का काम किया और किसी तरह संगीतकार नौशाद साहब तक पहुंच गईं। बस फिर क्या था गानों का सिलसिला चल पड़ा। बताते हैं वे नौशाद साहब को राखी बांधती थीं। इस बीच फिल्म इंडस्ट्री में लता मंगेशकर और आशा भौंसले जी का युग शुरू हो गया। ऊमा देवी आहिस्ता-आहिस्ता कहीं गुम होती चली गईं। पचास के दशक में नौशाद ने ही उन्हें एक्टिंग के लिए प्रेरित किया। ऊमा देवी की शर्त ये थी कि दिलीप कुमार के साथ काम मिले तो कर लेंगे। वही हुआ। फिल्म थी बाबुल। जिन्होंने देखी होगी वे उस एक सीन को याद करें जब दिलीप कुमार एक लड़की को शादी के लिए देखने आते हैं। वे लड़की ऊमा देवी ही थीं। उसी सीन में उन्हें टुनटुन नाम दिया गया। नाम देने वाले थे दिलीप कुमार। बस उसके बाद फिल्मों में टुनटुन ही टुनटुन हो गईं। गायिका ऊमा देवी फिर कभी नहीं मिली। टुनटुन की वो काया, वो भंगिमाएं ही याद रही दुनिया को। गायिका ऊमा देवी को किसी ने याद नहीं रखा। लेकिन आप उनके गीत जरूर सुनिएगा। वैसे उन्होंने बीसियों फिल्मों में गीत गाए लेकिन दर्द, अनोखी अदा और चंद्रलेखा के गीत जरूर सुनने चाहिए। ऊमा देवी जी को श्रद्धांजलि।

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