“सच की कीमत मौत”
✍🏻वर्षा…
सर्दियों की एक ठंडी सुबह थी। ऋषिका रसोई में चाय बना रही थी। बाहर, धुंध में लिपटी हुई पेड़-पत्तियों की हरियाली उसे हमेशा सुकून देती थी, लेकिन आज मन बेचैन था। पाँच साल का उसका बेटा प्रयाग, मासूमियत से एक सवाल पूछ बैठा था “माँ, आप हमेशा सच बोलने को कहती हो। फिर आज क्यों कह रही हो कि सच छिपाना चाहिए?”
उसका ये सवाल जैसे ऋषिका के दिल पर वार कर गया। उसके सामने मुकेश चंद्राकर की छवि तैर गई। बस्तर का निर्भीक पत्रकार, जिसने सच्चाई की राह चुनी थी। मुकेश, जो कभी ऋषिका के देवर जैसा था, भाभी माँ कहकर उसे पुकारता था। आज वो इस दुनिया में नहीं था।
लेकिन सच बोलने की उसकी कोशिशें भारी पड़ गईं। माओवादियों और पुलिस के बीच पिसते बस्तर में, मुकेश की आवाज़ कई लोगों को खटकने लगी। उसने कई ऐसे मुद्दों पर लिखा, जो सत्ताधारियों को नापसंद थे। और फिर, एक दिन, उसे चुप कर दिया गया, हमेशा के लिए।
उसकी मौत ने ऋषिका के दिल को झकझोर दिया था। वो खबर नहीं भूल पाई थी। मुकेश को किसी दुश्मन ने नहीं, बल्कि उसके अपने जानकारों ने ही मारा था। वो जानती थी, सच बोलने वालों की यही सजा है, इतिहास भी यही कहता है।
आज जब प्रयाग ने सवाल किया, तो ऋषिका के सामने मुकेश की हर याद ताज़ा हो गई। वो जानती थी कि सच बोलने का साहस कितना बड़ा होता है, लेकिन इस साहस की कीमत हमेशा भारी होती है।
प्रयाग ने फिर पूछा, “माँ, क्या सच बोलना गलत है?” ऋषिका का गला भर आया। उसने बेटे को गोद में उठा लिया और कहा, “बेटा, सच बोलना कभी गलत नहीं होता। लेकिन इस दुनिया में सच बोलने वालों को लोग अक्सर सहन नहीं कर पाते। सच बोलना ताकतवर बनाता है, लेकिन उसके लिए समझदारी भी जरूरी है।”
उस रात, ऋषिका सो नहीं पाई। उसके मन में सवाल उठते रहे, क्या वो अपने बेटे को कायर बना रही है? क्या वो उसे सच्चाई के रास्ते से हटा रही है? लेकिन मुकेश की मौत और इतिहास के पन्नों पर सच बोलने वालों की दुखद कहानियाँ उसके दिल में डर पैदा कर देती थीं।
सुबह जब प्रयाग जागा, तो उसने माँ से पूछा, “माँ, अगर मैं बड़ा होकर पत्रकार बनूँगा, तो क्या मैं सच बोल सकूँगा?” ऋषिका ने उसे गले से लगाते हुए कहा, “अगर तुम पत्रकार बनो, तो सच बोलना। लेकिन समझदारी और सावधानी से। सच की ताकत तभी होती है जब उसे सही तरीके से पेश किया जाए।”
प्रयाग ने सिर हिलाया और मुस्कुरा दिया। लेकिन ऋषिका के मन में सवाल अभी भी बना हुआ था। क्या इस दुनिया में सच का साथ देना सही है? या चुप रहकर खुद को और अपने अपनों को बचाना?
मुकेश की कहानी ने न केवल बस्तर बल्कि हर उस इंसान के दिल में सवाल जगा दिया है की सच बोले या सच देख कर भी चुप रहे? इसका जवाब मैं आप लोगों से जानना चाहती हूं।