रचनाकार

स्कूल की आखिरी घंटी!

@सुमित उपाध्याय…

मिल अब हमेशा के लिये बंद हो रही थी. अस्सी सालों से चल रही इस मिल ने दो – तीन पीढ़ियां पाली थीं. सच तो यह है कि सेठ ने बहुत घाटा सह कर इधर पांच-दस साल इसे बस और खींच दिया था, वरना अब से दस बरस पहले इसे तभी बंद हो जाना था, जब मिल का जूनियर स्कूल बंद हुआ था.

उस दिन बूढ़े हो चुके प्रिंसिपल साहब ने आंखों में आंसू भर देर तक स्कूल की जर्जर इमारत को निहारा और फिर सेठ को चाभी सौंप वापस अपने गांव चले गये. यह स्कूल सेठ के बाबा ने अपने पिता जी के नाम पर मिल के कर्मचारियों के लिये खोला था.
स्कूल में गदहईया गोल से कक्षा आठ तक पढ़ाई होती थी, मिल में रहने वाले पढ़े- लिखे लड़के- लड़कियां इसमें पढ़ाते थे. कुल डेढ़ – दो सौ बच्चों की चहक इसे भरे रहती थी. सुबह आठ बजे मिल के भोंपू की आवाज के एक घंटे बाद स्कूल की घंटी बजती और फिर दौड़- भाग शुरू.

जब राधा ने सुना स्कूल हमेशा के लिये के लिये बंद हो रहा तो वह अपने को रोक नहीं पायी और बंद होने के एक दिन पहले शाम को अपनी बरसों पुरानी यादों से जैसे फिर से एक मुठ्ठी दाना भरने के लिये स्कूल में चली गयी.

वही दरवाजे, वही कमरे, वही ब्लैकबोर्ड, हां पंखे कुछ बदले लग रहे थे. उसने अपनी आठवीं कक्षा जो कैंटीन के बगल में पड़ती में रखी पुरानी लकड़ी की आलमारी के पीछे देखा तो हंस पड़ी. उसका और जमुना का नाम आज तक कुरेदा पड़ा था, उपर मधु मैम का धुंधला सा कार्टून बना हुआ था. उस साल वार्षिकोत्सव की तैयारी के समय जमुना ने मधु मैम का यह कार्टून आलमारी के पीछे छिपाकर बनाया था.

अचानक राधा को लगा बाहर कोई है, वह धीरे से बाहर आयी तो सामने मधु मैम थीं, इनके पति कोई पांच बरस पहले मिल में हुयी दुर्घटना में मारे गये थे, मैम ने वापस अपने गांव जाने से मना कर दिया था, तबसे मैम मुफ्त में स्कूल में पढ़ा रहीं थीं.
राधा मैम के पास गयी, पैर छूकर प्रणाम किया. मैम कुछ बोल नहीं रही थीं, बस उनकी आंखों में आंसू थे. राधा ने कहा मैम मैंने सुना है आपको तो बगल के सर जॉन स्कूल से भी अॉफर है आप वहीं चले जाईये पढ़ाने के लिये.

मैम ने धीरे से राधा को देखा फिर क्लास की ओर देखकर बोलीं, ” बेटा इस स्कूल में बस मिल के बच्चे नहीं आते थे, तुम्हें तो पता है न एक रूपये फीस में पढ़ने के लिये आस-पास के सभी गरीब बच्चे यहां आते थे, मैं तो कहीं भी चली जाऊंगी पर ये बच्चे अब किस स्कूल में जायेंगे.
स्कूल बिजनेस या दूकान नहीं होता यह मंदिर होता है, बड़ी तपस्या से मां सरस्वती प्रसन्न होती हैं तब जाकर वह स्वयं यहां आती हैं और हमें रास्ता दिखाती हैं, इन बच्चों से उनका मंदिर छिना जा रहा है बेटा.”

इतना बोल मैडम चली गयीं, और राधा को लगा जैसे जमुना ने अचानक उसकी छोटी उंगली खिचीं और क्लास में भागते हुये बोली, ” पकड़ मुझे राधा, कर दूंगी तुझे आधा”

अगले दिन जब वह आलमारी निकाल कर कबाड़गाड़ी पर रखी जाने लगी तो राधा रो पड़ी और तभी ऐसा लगा बहुत से बच्चों के रोने की आवाज उस जर्जर इमारत में गुंजने लगी. इतने में किसी ने स्कूल की घंटी को गाड़ी में फेंका और जोर से टन-टन की आवाज आयी. सब लोग चुप हो गये, यह स्कूल की आखिरी घंटी थी.

 

लेखक- सुमित उपाध्याय, वीथिका ई पत्रिका के प्रबंध सम्पादक हैं। यह उभरते हुए युवा साहित्यकार हैं।

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