रचनाकार

लद्युकथा : प्यार का धागा

( शब्द मसीहा केदारनाथ )

सुबह-सुबह बहू को चिल्लाते सुना तो दर्शन लाल रज़ाई से बाहर निकले।

“तुम्हें अपना हर काम याद रहता है, तुम्हें पता था कि आज मैं नीले रंग कि शर्ट पहनकर जाऊंगा । दो टांके मशीन से लगाए नहीं गए । और बेटे की निकर का भी यही हाल है। मेरी माँ को ही देख लो ….हम पांचों को पाला है।” बेटा चिल्ला रहा था।

“वो नौकरी नहीं करती थीं …बच्चे पालती थीं , घर चलाती थीं । मेरी नौकरी भी है और घर भी मुझे ही देखना है ….. मुझसे और नहीं होता । रख लो कोई काम वाली । दस हजार रुपया महिना भी देना, और खाना गंदे बर्तनों में …. औरत हूँ मैं भी , कोई मशीन थोड़े ही हूँ ।” पत्नी ने भी टन्न से जवाब दे दिया ।

वैसे तो दर्शन लाल बहू-बेटे के बीच नहीं पड़ते थे, लेकिन आज माहौल खराब लग रहा था, सो पहले खाँसे और फिर बोले – “क्या हुआ वे गधे के बच्चे ? सुबह-सुबह कैसे बहू से लड़ रहा है । ला ….क्या फट गया है तेरा ।”

बेटा पिताजी की आवाज सुनकर चुप और उनके साथ -साथ रसोई से अपने कमरे में कमीज लेने चला गया। दर्शन लाल ने तब तक सिलाई मशीन का कपड़ा हटाकर उसे साफ किया । वे नीला धागा ढूँढकर उसमें डालने लगे , मगर नजर कमजोर थी, सो धागा जा ही नहीं रहा था मशीन की सुई में ।

“पापा जी ! मैं धागा डाल देता हूँ ।” बेटे ने कहते हुए मशीन में धागा डाल दिया।

“सीखा कुछ ?” पापा जी ने पूछा।

“क्या ?” बेटा आश्चर्य से बोला।

“बिना धागे के इस मशीन को कितना भी चलाओ कपड़ा नहीं सिला जा सकता । सुई में धागा डालने के लिए उसे पैना और बारीक करना पड़ता है। ऐसे ही हमारा जीवन है । प्यार का धागा पैना और बारीक होना चाहिए । बहू अपनी जगह सही है । आज शाम को टी वी देखते हुए सुबह के लिए सब्जी काटकर रखना और सुबह के लिए अपने ,बहू के कपड़े खुद प्रेस करना । तुम पांचों को पालने के लिए मैंने भी किया था ऐसा । तभी गृहस्थी को जोड़ सका । ये ले …. पहन ले कमीज और मुन्ने की निकर भी दे ….और हाँ, बहू से सॉरी कहकर जाना । आपस में माफी मांगने से प्यार मजबूत होता है ।” दर्शन लाल बोले।

“पहला सॉरी आपको पापा ….सुबह-सुबह आपने ख़ुद को गधा कहा मेरी वजह से ।” बेटा बोला।

“हा हा हा …. मैं सह सकता हूँ , इसलिए बोला। रसोई से सिर्फ कुक्कर की सीटी की तेज़ आवाज आनी चाहिए …बहू की नहीं । प्यार का धागा तेज़ आवाज से टूटता है, जब दवाब आए तो धागे को दोहरा कर लो , जिंदगी का बोझ उठाने के लिए।” दर्शन लाल ने कहा।

“सॉरी पापा , एक बात और बता दो , आप माँ को कैसे खुश रखते थे ?” बेटे ने मुस्कुराते हुए पूछा।

“वैरी सिम्प्ल …प्यार का गिफ्ट । औरत को गहने, कपड़े से ज्यादा पति का वक़्त चाहिए । जा जाकर खाना पैक कर उसके साथ और रास्ते में उसे छोड़ते हुए जाना उसके ऑफिस तक …जा लपेट ले प्यार के धागे में ….हा हा हा ।” पापा का इशारा वह समझ चुका था और रसोई में अमल जारी था।

One thought on “लद्युकथा : प्यार का धागा

  • Dr Gulabchand Patel

    हार्दिक बधाई एवं शुभकामना बहुत ही उम्दा कहानी

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