रचनाकार

पापा अब आपकी याद आने लगी है…

घर का बड़ा बेटा…
पंकज शुक्ला (आवारा)

सारे नियमों से बंधा सारे नियम तोड़ चुका था
जब घर संभालने वाला बड़ा बेटा घर छोड़ चुका था
जिससे घर में सवेरा होता था आज अंधियारी छाई थी
सब बर्बाद हो गया ऐसी भयानक आंधी आई थी
सारे ग़म को सह गया पर जीवन कलंक न मिटा पाया
जीवन जिनसे पाया था उन्हें न मै बचा पाया
नासमझ से अचानक समझदार बन कर रह गया
पिता के जाने से जब बेटा बाप बन कर रह गया
क्या उनको भूल कर जीवन का स्वाद लिया जाए
या गलती के पश्चाताप पर सब सुख त्याग दिया जाए
सवालों के ढेर से खुद को निकालने चला था
देखो पैसे उड़ाने वाला बंदा कमाने चला था
झूठी हसी और छोटी छोटी ख्वाहिशों को दफन रखता था
घर की खुशियों के लिए व्यक्तिगत खुशियों पर कफन रखता था
रोटी दाल की कीमत अब समझ आने लगी है
सच कहूं पापा अब आपकी याद आने लगी है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *