हंसना मना है!

प्लीज सरकार” कुछ करो ना, एक बार, “शराब” को, हमेशा-हमेशा के लिए, “लाकॅडाउन” कहो ना

मेरी कलम से…
आनन्द कुमार

बेचो सरकार…शराब
मौका अच्छा है…
मजबूरी भी है…
और कुछ लोगों के लिए जरूरी भी,
पर सरकार, कहीं शराब के साथ,
सम्मान भी ना बिक जाए……
बेचो, शराब शहर के हर चौक चौराहों पर
गांव के नुक्कड़ और राशन के भी दुकानों पर,
तुम्हे भला कौन रोकता है,
तुम्हे भला कौन टोकता है,
जी भर के बेचो, जितना चाहे उतना
क्योंकि तुम ही तो, सरकार हो,
और ये अधिकार तो तुम्हारा ही है
क्या बेचा और क्या खरीदा जाए
यूं तो बिकने को क्या नहीं बिकता
पर सरकारें सब कुछ नहीं बेचती
पर तुम बेचो शराब और सम्मान भी
और भूल जाओ तालियों की गड़गड़ाहट को
उस दीयों की रौशनी को
जिस तेल से गरीब परिवारों ने,
सब्जी ना बनाकर, तुम्हारें इरादों को रौशन किया
बेचो शराब, जितना चाहे बेचो
तब जब दुनिया महामारी से बेहाल है
लोग अपने घरों में रहने को मजबूर हैं
लॉकडाउन में लोगों के पास राशन नहीं
काम-धंधा सब चौपट है
आर्थिक तंगी मे पूरा परिवार है
तो मौके का उठाओ फायदा
और जितना जी चाहे,
तुम उतना शराब बेचो
क्योंकि ये तो तुम्हारा हक है,
किसकी हिम्मत, जो तुमसे सवाल करे
सब चुप हैं, या तुम्हारी ही भाषा बोल रहे
लोकतंत्र का चौथा खंभा भी
जिस पर नाज था कभी
जिसकी धार तलवार से भी ज्यादा तेजी थी,
पर तुम सरकार हो, और सब लाचार
फिर तुम्हे कौन रोके, कौन टोके
लेकिन, एक बात,
मेरी भी सुन लो,
और ठहर के जरा शराब से उजड़ चुकी,
उन जिंदगीयों के बारे में, थोड़ा सोच लो
पलटों जरा इतिहास के उन पन्नों को
शराब से बर्बाद हो चुके उन घरों में झांको
अबला के माथे की सिकन को समझो
निहारो, शराब पीकर हमेशा के लिए सो चुके,
उन बाप के बच्चों का भविष्य कैसा है
कहीं उन्हीं के बच्चें तो नहीं हैं
जो उन भट्टियों में शराब बना रहे
जिन्होंने इसी शराब की वजह से
अपने पिता की चिता जलाई थी
निहारों तो जरा जाकर,
उसके घर के चूल्हे चौके,
सुनसान, गुमनाम और वीरान पड़े
आंगन के शोर को,
एक बार जरा देखो तो,
एक, दो, तीन, चार, पांच नहीं,
सैकड़ों, हजारों लाखों नहीं,
करोड़ों की संख्या में,
शराब के नशे से,
अभिशप्त हो चुके,
परिवारों के मर चुके झनकार को,
जरा सुन तो लो तुम भी,
फिर बेचो ना,
जितना चाहे शराब बेचो,
तुम्हे रोकता कौन है,
तुम्हे टोकता कौन है,
तुम तो सरकार हो।
हां पता है, हमे
शराब के हर शीशी पर,
सरकार की स्पष्ट चेतावनी है,
की शराब पीना,
स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
हमे ये भी पता है कि तुम,
लोगों को जागरूक करने के लिए,
हर साल करोड़ों रूपए
मद्यपान निषेद्य पर खर्च करते हो,
यही बात तो तुम्हारी,
खनकती और ठनकती है,
आखिर क्यों, खर्च करते हो,
जागरूकता के नाम पर पैसे
क्या है तुम्हारा, असल इरादा…
क्या यही, पहले शराब बेचकर,
हमे रिझाते हो, फिर समझाते हो,
आखिर ये कैसी तुम्हारी, मनमर्जी है,
सच बताओ ना,
जनता की आंख में,
इस तरह सरकारी धूल झोंक,
धंधे के नाम पर,
शनैः शनैः मारते क्यों हो,
मत मानो कि तुम,
जिम्मेदार हो, इन मौतों का,
लेकिन सच में, शराब पीने से,
हुई हर एक मौत का तुम,
एक-एक पल के हिस्सेदार हो,
खजाना भरने की लालसा में,
मौत का खेल तो,
कम से कम मत खेलो।
खजाना भरने का,
कोई और रास्ता ढूंढो ना,
कुछ अलग सोचो ना,
कुछ नया करो ना।
केवल अपने अर्थ की ना सोचो,
तुम्हारे अर्थ के अर्थशास्त्र से,
किसी की अर्थी ना उठे यह सोचो,
कोरोना के नुकसान को भर लेना,
कोई अन्य स्रोत से,
शराब बिक्री को हमेशा के लिए,
तुम बंद कर दो ना ।
कोरोना से जो मौत होगी,
वो तो बहुत मामूली है,
शराब से हो रही,
अनगिनत मौतों को रोको ना,
जानते हो सरकार,
शराब पीने वाले की मौत तो होती ही है,
उसके मौत के बाद,
पूरा परिवार जिन्दा होकर भी,
मर जाता है।
कुछ ऐसा करो न सरकार,
तुम तो,
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ वाले हो,
तुम तो,
सबका साथ, सबका विकास वाले हो,
तुम विश्व विजेता बनने वाले हो,
तुम तो गांधी वाले हो,
तुम तो दिन दिन दयाल व मुखर्जी वाले हो,
तुम तो हिन्दुस्तान वाले हो,
क्योंकि तुम तो,
भगवा वाले हो,
तुम तो राष्ट्रवाद वाले हो,
तुम तो राम वाले हो,
आखिर तुम ही,
बताओ सरकार,
तुम न सुनोगे, तो कौन सुनेगा।
रोज “मन की बात” कहते हो,
एक बार “मन की बात” सुनो ना,
ये सिर्फ मेरा “मन” नहीं है,
किसी भीड़ में, किसी रैली में,
जैसे हाथ उठवा, उठवा कर,
पूछते हो ना,
वैसे पूछ लेना,
यही सबके मन की बात है,
यही तुम्हारे,
भाइयों बहनों की बात है,
यही तुम्हारे,
प्यारे देश वासियों की बात है,
“प्लीज सरकार” कुछ करो ना,
एक बार, “शराब” को,
हमेशा-हमेशा के लिए,
“लाकॅडाउन” कहो ना।

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