समाज सुधार एवं अनुशासन
( डा. गंगा सागर सिंह विनोद )
अनुशासन किसी व्यक्ति,परिवार, समाज एवं राष्ट्र के विकास का मूल सूत्र है। अनुशासित रहना अधिकांश प्राणियों में देखने को मिलता है। झुंड बनाकर अनुशासित ढंग से अधिकांश जंगली जीव भी रहते हैं।छोटे जीवों में चीटियों और मधुमक्खियों के अनुशासन को देखकर मनुष्य को सीख लेना चाहिए। अनुशासन व्यक्ति की स्वतंत्रता को बिल्कुल प्रभावित नहीं करती है।अगर समाज या राष्ट्र का हर व्यक्ति अनुशासित ढंग से जीवन यापन कर रहा है तो तो आपसी टकराव लगभग नगण्य होंगे एवं अभूतपूर्व संस्कारित समाज का निर्माण होगा। स्वतंत्रता से मिलता-जुलता एक शब्द है स्वछंदता है। अनुशासन स्वछंदता पर अंकुश लगाता है। इस अंकुश को तथाकथित मानवाधिकार कार्य कर्ता मानवाधिकार का उल्लंघन की संज्ञा देते हैं जो सर्वथा गलत एवं आत्म घाती है। अनुशासन मनुष्य में गुणों का विकास एवं अवगुणों को छोड़ने का एक सशक्त माध्यम है वहीं स्वछंदता अवगुणों के विकास एवं गुणों मे गिरावट लाता है। अनुशासन ही देश की सीमाओं एवं आंतरिक सुरक्षा, कानून व्यवस्था तथा प्रशासनिक कार्यों की गुणवत्ता का मूल आधार है । वैसे किसी भी ब्यक्ति में अनुशासित रहना किसी भी उम्र में सिखाया जा सकता है लेकिन बचपन में माता-पिता एवं शिक्षण संस्थानों द्वारा सिखाया गया अनुशासन का पाठ आसानी से बच्चे सीख लेते हैं तथा फिर जीवन के जिस क्षेत्र में वे जाते हैं वहां अनुशासित वातावरण बनाये रखकर उस संस्थान के विकास में अभूतपूर्व योगदान देते हैं। अनुशासन लागू करने वालों के व्यवहार में तानाशाही की बू कत्तई नहीं आनी चाहिए अन्यथा अनुशासन हीनता एवं बिद्रोह की ज्वाला कभी भी भड़क सकती है। बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि आज चारो ओर अनुशासन हीनता चरम सीमा तक व्याप्त है। स्वछंदता, स्वतंत्रता को मुंह चिढ़ा रही है। अपनी हजारों वर्ष पुरानी संस्कृति एवं सभ्यता को तिलान्जलि देने में लोग गर्व महसूस कर रहे हैं एवं अपने को एडवांस एवं अपनी पुरानी संस्कृति, सभ्यता एवं रीति-रिवाज पालन करने वाले को बैकवर्ड कहकर मजाक उड़ाते हैं। बड़ी अजीब परिस्थिति चल रही है सब स्वतंत्रता को स्वछंदता में परिणित कर “अपनी अपनी दफली, अपना अपना राग” अलाप रहें हैं। इसका विरोध करने वालों का जीना हराम कर दे रहे हैं। अब तो भगवान् श्रीकृष्ण के गीता के उपदेश “जब जब इस पृथ्वी पर धर्म का क्षय होता है और असुर,अधर्मी एवं अभिमानियों का बोल बाला हो जाता है। तब तब भगवान विष्णु मनुष्य शरीर धारण कर पृथ्वी पर अवतरित होकर पृथ्वी को उनके अत्याचारों से मुक्त कराते हैं” पर ही भरोसा रह गया है। कलियुग में “भगवान् कलि” का अवतार कब होगा एवं सत् युग का आगमन होगा यह तो भगवान् विष्णु ही जानें। अतः अंत में मेरा विचार है की अनुशासन प्राणीमात्र के सुखमय जीवन का एक मूल सूत्र है। इसके अनुपालन में ही विश्व का कल्याण निहित है।