उत्तर प्रदेश

पिछडों, दलितों की हकमारी कराने के बाद जगा स्वामी का ज़मीर : लौटनराम निषाद

ओबीसी, एससी का हक मारा जाता रहा, तब शिखण्डी बन सत्ता की मलाई खाते रहे नीलवर्ण श्रृंगाल सरीखे पिछड़े नेता

लखनऊ। स्वामी प्रसाद मौर्या द्वारा मंत्री पद से इस्तीफा देकर सपा सुप्रीमो से मुलाकात पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव चौ. लौटनराम निषाद ने कहा कि यह सिर्फ निजस्वार्थ में लिया गया निर्णय है, न कि वर्गीय हित की भावना में। उन्होंने कहा कि स्वामी प्रसाद मौर्या अपने व बेटे की राजनीति के लिए गिरगिट की तरह रंग बदलकर राजनीतिक नाटक कर रहे हैं। उनका यह कथन हास्यास्पद है कि पिछडों, दलितों, किसानों की अनदेखी के कारण मंत्री पद से इस्तीफा दिया हूँ। जब पिछडों, दलितों की हकमारी हो रही थी जब इनका ज़मीर नहीं जागा, तब तो मौनी बाबा बनकर मौन धारण किये हुए थे। जब मंत्री पद आचार संहिता लगने के बाद गौण हो गया, तब इन्हें पिछडों, दलितों,किसानों की चिंता हुई। स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान आदि अवसरवादी नेता हैं, इनकी कोई साफ सामाजिक न्याय की विचारधारा नहीं है।” अपना भला भला जगमाही” वाला चाल चरित्र है स्वामी प्रसाद मौर्या व दारा सिंह चौहान आदि जैसे शिखण्डी व नीलवर्ण श्रृंगाल सरीखे तथाकथित पिछड़े वर्ग के नेताओं का।
स्वामी व दारा तब क्यों चुप थे, जब पिछडों, दलितों के साथ सामाजिक, राजनीतिक अन्याय हो रहा था? जब निजी मेडिकल, इंजीनियरिंग आदि में ओबीसी, एससी, एसटी का कोटा योगी सरकार ने खत्म किया, तब इनकी जुबान पर ताला क्यों लगा था? ओबीसी विद्यार्थियों की शुल्क प्रतिपूर्ती व छात्रवृत्ति वितरण में सौतेला व्यवहार हो रहा था, तब क्यों मौन धारण किये हुए थे? जब कौशाम्बी, लखीमपुर, औरैया, फर्रुखाबाद, बदायूँ, जौनपुर आदि स्थानों पर कुशवाहा, मौर्य, शाक्य, गोरखपुर, ग़ाज़ीपुर, इलाहाबाद, अयोध्या, देवरिया में दर्जनों निषाद, बिन्द व 476 यादवों की हत्या के साथ राजभर, चौहान, पाल, विश्वकर्मा, प्रजापति, लोधी आदि तमाम अति पिछड़ों की हत्या की गई,तब इनका वर्गीय स्वाभिमान व संचेतना कहां चली गयी थी?
श्री निषाद ने कहा कि जब गोरखपुर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर भर्ती में ओबीसी, एससी की हकमारी हुई तब गूंगे बहरे बनकर मौनी बाबा बन गए थे ये अवसरवादी नेता। 69,000 शिक्षक भर्ती, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर भर्ती, अशासकीय महाविद्यालय प्राचार्य भर्ती,बाँदा कृषि संस्थान आदि में जब पिछडों, दलितों के आरक्षण की हकमारी हुई, तब इनकी बोलती बन्द थी। 2017 से पिछडों,दलितों के साथ सामाजिक अन्याय, हत्या, पुलिसिया जोर-जुल्म व अत्याचार हो रहा था, तब इनका ज़मीर नहीं जागा, तब तो सत्ता की मलाई खाने में मस्त थे।
इस तरह के नेता नीलवर्ण श्रृंगाल के चरित्र के हैं। वीआईपी पार्टी के संस्थापक मुकेश साहनी व निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद भी सपा से गठबंधन की जुगत बिठा रहे हैं। 13 जनवरी को मुकेश साहनी व संजय निषाद भी सपा के पाले में आने की कवायद में जुटे हुए हैं। जिसमे भाजपा की कूटनीतिक चाल है। ये दोनों नेता राजनीतिक सौदेबाज़ हैं। इनका निषाद समाज से कोई मतलब नहीं, गठबंधन में जो सीट मिलेगी, उसे माफियाओं, अपराधियों को मोटी रकम लेकर बेंचेगे, समाज को कुछ मिलने वाला नहीं। एआईएमआईएम प्रमुख ओबैसी व मुकेश साहनी भाजपा की बी टीम हैं।

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