Uncategorized

कहानी : पहचान परख

शब्द मसीहा केदारनाथ…

“आज तो तू ख़ुश है न , छुटकारा मिला उस ज़ालिम से ।” कोर्ट से तलाक मिलने पर उसकी सहेली ने पूछा । लेकिन वह चुप रही ।

“अरे कोई सबक लिया इस से या नहीं ।” सहेली ने फिर पूछा ।

“हाँ, बहुत बड़ा सबक लिया है ।”

“वो क्या है ?”

“यही कि आदमी का अहंकार बहुत भयानक राक्षस है। आदमी भले ज़िन्दा रहे पर अहंकार सारे रिश्तों को खा जाता है ।”

“अब क्या फ़ायदा इस सब का ।” सहेली ने कहा ।

“अभी तक मैं औरत थी उसकी , आज मैं उसकी दोस्त बन गई हूँ । हम दोनों ने बहुत कुछ सीखा है …झेला है और पहचाना भी कि हमारा दोस्त कौन और दुश्मन कौन , शायद हम पहले ही अपनी-अपनी अकड़ से बाहर निकल बात कर लेते तो तलाक नहीं होता हमारा । ज़िंदगी के कई साल बर्बाद नहीं होते।”

“अब आगे क्या सोचा है ?”

“हम शादी कर रहे हैं फिर से …और हाँ, तय कर लिया है कि अपनी बातें किसी और से सुलझाने को कहने के बजाय ख़ुद बैठ-बोलकर हल निकालेंगे।”

“और भी कुछ?”

“हाँ, और यह भी कि जिन दोस्तों को पहचान परख लिया है उनके अलावा कोई नया दोस्त नहीं बनाएँगे । मतलब ये कि भड़काने वाले दोस्तो को बाय बाय ।” और ऐसा कहते हुए आगे बढ़ गई ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *