कविता : मैं निरन्तर चलती रहूँगी

@ अनुष्का उन्मुक्ता….
तंग, सुनसान हो या भिड़-भाड़ वाली गली हो
मैं हर गली में चलने से डरती हूँ
जानती हूँ कि कोई ना कोई
भेड़िया
अपने शिकारी नजरों से जरूर देख रहा होगा
नज़रें झुकाए चलती जाती हूँ
इन गलियों में
क्योंकि मुझे मालूम है कि अगर मैंने नज़रें मिलाईं
इन भेड़ियों से तो ये मुझे दबोच खाऐंगे
मैं निरन्तर चलती रहूँगी
बिना डरे इन भेड़ियों से
क्यों कि मेरा चलना अब इन रास्तों पर
बहुत जरूरी है।
रचनाकार, बीएचयू ग्रेजुएशन सेकंड ईयर की स्टूडेंट हैं