रचनाकार

शिक्षा और शिक्षा सहगामी क्रियाओं द्वारा रोक सकते हैं महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार

@ श्रीमती जया उपाध्याय…

4 मई 2023 मणिपुर में 2 महिलाओं को निर्वस्त्र कर परेड कराने एवं ठीक उसी तर्ज पर मेरठ के किठौर थाना क्षेत्र में एक किशोरी के साथ दुष्कर्म की घटना के वीडियो वायरल होने से संपूर्ण विश्व हिल चुका है, एक के बाद तुरंत एक दूसरी घटना के सामने आने का अर्थ बिल्कुल साफ नजर आने लगा है कि अभी लोगों के अंदर सजा का कोई खौफ नहीं है, और हो भी क्यों ? क्योंकि इतने बड़े कुकृत्य करने के बाद भी अपराधी किसी न किसी तरीके से बच निकलते हैं। और हम कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाते हुए हार थककर मायूस हो बैठ जाते हैं।
महिलाओं और बच्चों के खिलाफ बढ़ती अपराधिक घटनाओं को देखते हुए सुरक्षा के लिए प्रभावी कदम उठाए जाने की जरूरत अब संपूर्ण देश महसूस कर रहा है। हम जिस तेजी से विकास की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं उससे भी अधिक तेजी से हमारा नैतिक पतन हो रहा है। हम कहते हैं कि शासन खराब है मगर समाज की भी तो कुछ जिम्मेदारी बनती है यह कोई नहीं सोचता। यह कैसा समाज है जहां नारी एक तरफ तो देवी का अवतार है तो दूसरी तरफ मात्र शरीर।
हिंदुस्तानी औरतों के लिए 26 अक्टूबर 2006 एक यादगार तारीख बनी क्योंकि इसी दिन भारत के संसद द्वारा औरतों के दुखों को दूर करने की कोशिश को अमलीजामा पहनाया गया, जो अपनों से ही छला जाना, प्रताड़ित होना, बात बात पर घर से निकाले जाने की धमकी सुनना यह सब औरतों के साथ होता रहता है। घरेलू हिंसा एक्ट लागू होने के बाद भी औरतों को इससे छुटकारा मिला क्या? औरत आज भी चारदीवारी के अंदर घुटन महसूस नहीं करती? वर्तमान में हमारे देश में कई संगीन अपराधों के लिए मृत्युदंड तक का प्रावधान है फिर भी इस तरह के अपराध होते रह रहे हैं। ऐसे जघन्य अपराध की सजा सिर्फ और सिर्फ मौत होनी चाहिए और वह भी बिना किसी देरी के।
अब प्रश्न यह खड़ा हो रहा है कि आखिर इस पर लगाम कैसे लगाया जाए। इस संबंध में मेरा मानना है कि यदि हम समाज को अपराध मुक्त बनाना चाहते हैं तो हमें अपराधी प्रवृति वाली मानसिकता पर अंकुश लगाना होगा। लोगों के मन मस्तिष्क में अपराधी प्रवृति का बीजारोपण ना हो सके इसके लिए आवश्यक है कि बचपन से ही बच्चों में मानवीय मूल्यों के विकास हेतु शिक्षा की व्यवस्था की जाए। क्योंकि आज के बच्चे ही कल के भविष्य है। कोई भी समाज देश, परिवार, संगठन अपने आप में अच्छा या बुरा नहीं होता बल्कि वह अपने सदस्यों, नागरिकों के आचरण के कारण अच्छा या बुरा बनता है। हमारे देश का भविष्य कैसा होगा इसका निर्धारण आज के बच्चे करेंगे।
यदि हम सचमुच चाहते हैं कि हमारा देश अपराध मुक्त हो तो हमें अपने बच्चों के हर गतिविधियों पर नजर रखने होंगे। आज हम ऐसे दौर में पहुंच चुके हैं जहां ऊपरी चमक-दमक आदर्शवाद का मुखौटा पहने हुए तथाकथित संभ्रांत लोगों की भीड़ है जो अंदर से पशु से भी गए गुजरे हैं। भारत में महिलाओं को घर की शोभा समझ कर उनके सपनों को कुचल दिया जाता है। यह वह भाग्यविधाता है जिन्हें उन्हीं कमजोर महिलाओं ने जन्म देकर यह अधिकार दिया कि दुनिया में आकर उन्हीं पर अत्याचार करें ? महिलाओं के साथ छेड़छाड़, अश्लील हरकतें एवं दुराचार की घटनाएं भारतीय समाज में बदलते परिवेश और मूल्यों का सूचकांक है।

मेरा विश्वास है कि- स्त्रियों के साथ होने वाले दुराचार, दुर्व्यवहार और यौन हिंसा को रोकने के लिए स्त्री सशक्तिकरण आंदोलन को सशक्त करना ही पर्याप्त नहीं है। बल्कि नारी सशक्तिकरण के साथ-साथ नन्हे-मुन्ने बालकों के कोमल मन, स्वच्छ मस्तिष्क और सच्चे हृदय में अच्छे संस्कार, विचार, अनुशासन और अच्छी भावनाओं इत्यादि का संचरण करना आवश्यक है। अच्छे विचारों से बालकों और तरूणाई को अभिसिंचित करने के लिए पढ़ाई और पाठ्य सहगामी क्रियाओं को सशक्त माध्यम बनाया जा सकता है।पढ़ाई के साथ पाठ्य सहगामी गतिविधियों जैसे खेल-कूद, चित्रकला, संगीत, योग मार्शल आर्ट आदि के शिक्षण प्रशिक्षण द्वारा सामाजिक उत्तरदायित्व, नैतिक मूल्यों और बेहतर नागरिक बनने का बोध कराया जा सकता है। बच्चे जब संगीत साधना में लीन हो जाएंगे, खेलने हेतु बैट बल्ला एवं चित्रकारी हेतु पेंसिल उठा लेंगे तो निश्चित रूप से कोई भी अपराध करने के लिए हथियार, पिस्टल, बंदूक आदि शस्त्र उठाने की कल्पना नहीं कर सकते। क्योंकि-संगीत, साहित्य, खेल-कूंद और और अन्य कलात्मक गतिविधियों में गोते लगाने वाले बालकों में सृजनात्मक, रचनात्मक चेतना का जागरण तथा सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगता हैं। इस तरह हम उचित शिक्षा और शिक्षा सहगामी क्रियाओं द्वारा बालकों का चरित्र निर्माण कर सकते हैं एवं सामाजिक पतन, नैतिक पतन और उत्तरोत्तर बढ़ते सांस्कृतिक प्रदूषण को रोक सकते हैं। है अन्यथा हम ऐसे ही हर दिन हर क्षण शर्मसार होते रहेंगे एवं हर गली, मुहल्ले, कस्बे, शहर, चट्टी चौराहे, सड़क और गांव-गिरांव में किसी न किसी द्रौपदी का चीरहरण होता रहेगा। एक तरफ जहां हम आज हम चांद पर तिरंगा फहराकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ चीरहरण का शिकार होती द्रौपदी की चीखों और चीत्कारों से हमारी गौरवशाली सभ्यता और संस्कृति कलंकित हो रही है।

लेखिका- श्रीमती जया उपाध्याय, नागाजी सरस्वती विद्या मंदिर अखनपुरा रसड़ा बलिया में संगीत शिक्षिका हैं।

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