मऊ के लाल ने लिखा था…रणबीच चौकड़ी भर-भरकर
लेखक- अभिजीत पाठक, वरिष्ठ पत्रकार हैं
दास्तान-ए-मऊ: आजादी की लड़ाई में जब ‘हल्दीघाटी’ ने भरी हुंकार!
आजादी का अलख जगाने में जो भूमिका मुख्य धारा के आंदोलनों की रही, वही हिंदी साहित्यकारों की भी थी। मऊ के डुमरांव में जन्मे श्यामनारायण पांडेय ने हल्दीघाटी जैसी अमर रचना से आम लोगों को आंदोलित किया। महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन से पहले पूर्वांचल के लोगों की जुबान पर हल्दीघाटी की लाइनें इस बात का प्रमाण है।
हल्दीघाटी की कुछ पंक्तियां तो भारत में हर बच्चे के जुबान पर आज भी सुनी जाती हैं.
रणबीच चौकड़ी भर-भरकर
चेतक बन गया निराला था।
राणा प्रताप के घोड़े से
पड़ गया हवा का पाला था।
राणा प्रताप की वीरगाथा से बहुतेरे लोग आजादी के लिए प्रेरित हुए। अंग्रेजी हुकूमत ने इन वैचारिक आंदोलनों को रोकने के लिए भरसक प्रयास किये। लेकिन पूर्वांचल की माटी से फूटी हुंकार ने घुटने नहीं टेके। हल्दीघाटी से पहले प्रेमचंद की किताब सोजे वतन ने अंग्रेजों का सिरदर्द बढ़ाया, सोजे वतन पढ़कर लोग आजादी की लड़ाई में कूदने लगे। मजबूरन 1910 में अंग्रेजी कलेक्टर ने सोजे वतन की सारी प्रतियां जला दीं। लेकिन आजादी की ये अलख बुझने वाली नहीं थी। 29 साल बाद श्यामनारायण पांडेय जी ने लोगों का स्वतंत्रता के लिए अलख जगाने को हल्दीघाटी प्रकाशित करवाया। जिस समय श्यामनारायण पांडेय ने हल्दीघाटी प्रकाशित कराई, उस समय की उनकी उम्र 30 साल थी। लेकिन हल्दीघाटी बच्चे-बूढ़े और जवान तक ऐसे पहुंची, जैसे बादल बारिशों के रूप में लहलहाते खेतों में गिरता है। देखते ही देखते हल्दीघाटी की कविताएं कब लोगों में आजादी के लिए प्रेरणा जगाने लगी पता ही नहीं चला। हल्दीघाटी की प्रेरकता से आजादी की एक नई लहर फूट पड़ी।
मिसाल के लिए उनकी कुछ पंक्तियां देखिए-
बकौल श्याम नारायण पांडेय-
जब तक स्वतंत्र यह देश नहीं,
है कट सकता नख केश नहीं।
मरने कटने का क्लेश नहीं,
कम हो सकता आवेश नहीं।
हल्दीघाटी रचना में महाराणा प्रताप की वीरगाथा है। जिसे पढ़कर लोगों में आजादी की चेतना जाग उठी। श्याम नारायण पांडेय जी आर्य संस्कृति से जुड़े हुए थे। उन्होंने हिंदी साहित्य में भारतेंदु हरिश्चंद, माखनलाल चतुर्वेदी, सुभद्राकुमारी चौहान की साहित्यिक विरासत को आगे बढ़ाने का भी काम पूरी जिम्मेदारी से निभाई। हल्दीघाटी और जौहर जैसी रचनाएं राष्ट्र प्रेम जगाने वाली कविताएं हैं। शादी के 4 साल बाद जब श्यामनारायण पांडेय की पत्नी का निधन हुआ तो उन्होंने अपनी पत्नी के संस्मरण में शुभे नामक शोकगान लिखा। जो उनके भावप्रधानता को दर्शाती है।