मऊ के ऐतिहासिक स्थल

वर्षों से उपेक्षित है ऐतिहासिक बुद्ध स्थली गोंठा, UP के कैबिनेट मंत्री से अब भी आंस

(सचिन मिश्रा)

दोहरीघाट/ मऊ। कोई ऐतिहासिक स्थल इतिहास को अपने आस-पास समेटे हुए हो और शासन प्रशासन की उपेक्षा का शिकार हो तो कहीं न कहीं हम अपनी ऐतिहासिकता को भूलने व बिसरने का काम कर रहे होते हैं। इससे न सिर्फ स्थानीय विकास की गति का पहिया रूक जाता है बल्कि जिस इतिहास को जानने की दरकार हमें आपको होती है उन्हें हम भूलते जाते हैं। वैसे तो इस भूलते इतिहास का जिम्मेदार शासन व प्रशासन के साथ साथ स्थानीय जनप्रतिनिधि भी हैं जो खूद तो बदलते गये लेकिन ऐसे अमिट इतिहास के प्रति न तो अपना इरादा बदले और ना ही सोच। किंवदंतियां है कि दोहरीघाट का नाम ही दो हरियों के मिलन पर रखा गया है। सबसे बड़ी बात यह है की दोहरीघाट की ऐतिहासिकता भगवान राम के युग से जोड़ कर बतायी जाती है।
दोहरीघाट विकास खण्ड क्षेत्र में पर्यटन की अपार संभावनाओं के बावजूद विभाग की उपेक्षा के चलते यहां कोई क्षेत्र विकसित नहीं हो पा रहा है। इसमें प्रमुख गौतम बुद्ध की उपदेश स्थली गोंठा एक हैं। यहां पूर्व में पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्व. कल्पनाथ राय के प्रयास से पर्यटन विभाग ने एक मोटल तथागत के नाम से एक होटल खोला लेकिन इसके अलावा इस क्षेत्र को विकसित करने का कोई प्रयास आज तक दुबारा नहीं किया गया। बुद्ध स्थली गोठा में बने मोटल तथागत पर्यटन केंद्र में वर्ष भर विदेशी पर्यटक के साथ साथ भारतीय लोग भी आते रहते है। ईसा पूर्व जब भारत भू-भाग पर तथागत गौतम बुद्ध के संदेशों का प्रचार-प्रसार बौद्ध मठों के माध्यम से होने लगा तो उससे यह क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा। इस क्षेत्र में एक प्राचीन व एक आधुनिक बौद्ध केंद्र प्रकाश में आता है। प्राचीन केंद्र के रूप में गोंठा की विशेष चर्चा है। यह नगरी वाराणसी-गोरखपुर-कुशीनगर मार्ग पर सारनाथ से लगभग 130 किमी तथा मऊ जनपद मुख्यालय से 34 किमी दूरी पर स्थित है। इस गांव को भगवान बुद्ध की उपदेश स्थली होने का गौरव प्राप्त है। यहां तथागत ने अपने शिष्यों एवं भिक्षुओं को बौद्ध धर्म का संदेश दिया था।
तथागत ने बौद्ध गया बिहार में सिद्धि प्राप्ति के पश्चात परिभ्रमण की दृष्टि से पश्चिमी तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश के भागोें को प्राथमिकता दी, जिसमें वर्तमान का सारनाथ (स्पन मृगदाय) जहां पर मृग झुंड में रहते थे और गोंठा (गोसिज सालवनदाय) जिसका अर्थ है ऐसा स्थल जहां गायें झुंड में रहती हों तथा साल, सागौन व पलास के वन हों।गोंठा के उत्तर में (वर्तमान समय पावर हाउस के सामने व रिलायंस पेट्रोल पम्प के बगल में) एक भीठा पर प्राचीन मंदिर है, जिसे लोग नंद बाबा के मंदिर के रूप में जानते हैैं। आज भी गाय का दूध इस मंदिर में चढ़ाया जाता है। मंदिर के समीप पीपल का एक विशाल वृक्ष है। मंदिर के अंदर एक लाट पर बोधिसत्व के रूप में गौतम बुद्ध की मूर्ति स्थित है। अनुमानत: यह मूर्ति लगभग दो हजार साल पुरानी है।
पाली भाषा में ‘गोसिंग साल वनदाय’ स्थल का वर्णन बौद्ध ग्रंथ ‘मज्जिम निकाय’ 32 महागोसिंग सत (1-4) में मिलता है। इस स्थान पर भगवान बुद्ध द्वारा शिष्यों के साथ स्नान कर बिहार करने तथा उपदेश देने का उल्लेख मिलता है। यहां तथागत ने आयुष्मान नंद, आनंद, रेवत, अनिरुद्ध आदि शिष्यों को उपदेश दिया था। यहां बौद्ध भिक्षु चिंतन, मनन व गोष्ठी किया करते थे। गोष्ठी का जिक्र आज भी यहां होता है, वह आयुष्मान नंद, गौतम बुद्ध के भाई व सगी मौसी के लड़के थे। राजा सुयोधन की शादी राजा अंजान के पुत्र सपरबद्ध (देवदास महराजगंज) की लड़की महामाया से हुई थी। महामाया राजन की दूसरी सुपुत्री थी। बड़ी लड़की का नाम प्रजापति था। राजा सुयोधन ने प्रजापति से भी विवाह कर लिया था। महारानी महामाया से सिद्धार्थ तथा महारानी प्रजापति से एक पुत्री रूपनंदा एवं पुत्र नंद का जन्म हुआ था जो बाद में बुद्ध के शिष्य बने।नंद की ख्याति से जुड़ा यह क्षेत्र निश्चित रूप से प्राचीन काल में बौद्ध बिहार के रूप में विकसित रहा होगा। इस स्थल को एक प्रमुख बौद्ध केंद्र व पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है। पर्यटकों की सुविधा के लिए प्रदेश सरकार ने यहां आकर्षक ‘तथागत मोटल’ का निर्माण किया है, जो पर्यटकों के अनुकूल है। इसके अलावा यहां मंदिरों घाटो के लिए प्रसिद्ध दोहरीघाट, प्राचीन भवानी मंदिर मादी आदि प्रमुख स्थान हैं। जिन्हें पर्यटन के उद्देश्य से विकसित किया जा सकता है। वैसे तो वर्तमान में बिहार के राज्यपाल फागू चौहान कई दशक तक इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किए विधायक के साथ साथ वे सूबे में मंत्री भी रहे इतिहास समेटे गोंठा को उनसे काफी उम्मीदें थी लेकिन जनता को निराशा के अलावा कुछ हाथ नहीं लगा। ऐसे में वर्तमान में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री दारा सिंह चौहान स्वयं कर रहे हैं इस लिए लोग क्षेत्र के विकास की टकटकी लगाए हैं। देखना है अब दारा सिंह चौहान क्या कर पाते हैं।

सरकार को गोठा की ओर ध्यान देना चाहिए: ई. रामजन्म गुप्ता

क्षेत्र के गोंठा ग्राम प्रधान श्रीमती वन्दना गुप्ता के प्रतिनिधि व पूर्व ग्राम प्रधान ई. रामजन्म गुप्ता कहते है कि इस स्थान को बौद्ध विहार के रूप में विकसित होने से यहां की महत्ता और बढ़ जाती। ग्रंथों में इस स्थल का उल्लेख है जो गोंठा वासियों के लिये कॉफी गौरव की बात है। यह क्षेत्र सारनाथ, कुशीनगर व कपिलवस्तु लुम्बिनी के करीब व मुख्य बिन्दु पर स्थित है। इसलिए इसका और महत्व बढ़ जाता है। इस ओर सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वे पहले भी सरकार को पत्र लिखें है पुनः लिखेंगे। उनका लक्ष्य गोंठा को विश्वस्तरीय मानचित्र पर उसकी ऐतिहासिकता की पहचान दिलाना है।

क्षेत्र के वेद प्रकाश मिश्रा का कहना है कि इस स्थान का सुंदरीकरण होने से क्षेत्र वासियों को काफी फायदा होगा।छोटे छोटे दुकान लगा कर लोग अपना जीवन यापन सुगमता से कर पाएंगे।इस बुद्ध स्थली का सुंदरीकरण होने से पर्यटक ज्यादा आएंगे।पर्यटकों को आने से इस क्षेत्र का और ज्यादा विकास होगा।

दोहरीघाट कस्बे के पंकज मध्देशिया का कहना है कि यह क्षेत्र मंदिरों घाटो के लिए प्रसिद्ध दोहरीघाट, प्राचीन भवानी मंदिर मादी आदि प्रमुख स्थान हैं। जिन्हें पर्यटन के उद्देश्य से विकसित किया जा सकता है।यह क्षेत्र धार्मिक दृष्टि से बहुत ही अधिक प्रसिद्ध है।

फरसरा खुर्द गांव के हेमन्त राय ने कहा कि इस बुध स्थली का सुंदरीकरण कराने से आस पास के लोगो को रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे। वही क्षेत्र का खोया हुआ गौरव वापस आ जायेगा।राज्य सरकार को इस उपेक्षित स्थल को विकसित कराया जाना चाहिए।यह स्थान अपने आप मे बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

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