रचनाकार

ग़ज़ल : नीँद में नाम तुम्हारा ही पुकारा करते

डॉक्टर वसीमुद्दीन जमाली…

तुझ से, ख़्वाहिश है मेरी,इश्क़ दोबारा करते
तेरी उलझी हुई ज़ुल्फ़ों को सँवारा करते

बचती, नज़रों से सभी की,तुम मेरे पास आतीं
किसी कोने से, जब हम,तुम को इशारा करते

दोस्तों को मेरे, किस्मत पे मेरी, रश्क आता
जब भी हम उन से कभी, ज़िक्र तुम्हारा करते ।

बात तुम करतीं, जो भूले से ,किसी से हँस कर
इतनी सी बात भी हम कैसे गवारा करते ।

चुपके से ख़्वाबों में, अक्सर तुम चली आतीं मेरे
नीँद में नाम तुम्हारा ही पुकारा करते ।

तुम “जमाली” की निगाहों में बसी हो अब भी
वक़्त कटता है, तुम्हारा ही नज़ारा करते ।

शायर:डॉक्टर वसीमुद्दीन जमाली
सीनियर कंसलटेंट सर्जन मऊ

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