रचनाकार

आज है साहित्य संगम संस्थान की स्थापना का छठवीं वर्षगांठ

शब्द मेरे मीत…
डा. महिमा सिंह, लखनऊ

मानव एक सामाजिक प्राणी है समाज में रहते हुए वह नित् नये कर्म करने का प्रयास करता है अपने गुणों के अनुसार। ठीक आज से 6 वर्ष पूर्व कुछ ऐसा ही प्रयास साहित्य के कुछ पुरोधाओ ने आरंभ किया था और एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया कुछ साथी जुड़े और सिलसिला चल पड़ा। विगत वर्ष स्थापना वर्ष अत्यंत धूमधाम से चार दिवसीय आयोजन करके मनाया गया था। जिसमें लगभग 500 कवियों ने काव्य पाठ किया था। महाकाव्यमेध वार्षिकोत्सव संस्थान ने अभी गत माह ही मनाया है। लेकिन आज का यह पुण्य दिन भी अत्यंत खास है । 05 जुलाई को स्थापना दिवस की छठवीं वर्षगांठ है। आज मंच पर अपना योगदान देने वालों को संस्थान मंच से संगम गौरव सम्मान से सम्मानित करेगा।।

आज के खास दिन पर मेरी कुछ पंक्तियां

पड़ी थी शुभ नींव आज के ही शुभ दिन।
था पुण्य सलिल दिन वह साथी जुड़े थे कुछ नए। सृजित करने को साहित्य के मोती।
चली मुहिम साहित्य के संगम की जुड़े काव्य पथिक व्हाट्सएप के तट पर साहित्य सागर मंथन नित चला निर्बाध।
फलित पुण्य कर्म हुए बीते दिन मास वर्ष।
बना सजा मंच एक और मुख किताब पर (फेसबुक) ठानी थी हमने गागर में सागर भरना है।
दधीचि से पुण्य तप किए अथक ,
चुनचुन साहित्य परागकण जोड़े अनगिनत।
करी तैयार सुवासित बगिया साहित्य की।
लो आज हुए पूर्ण 6 वर्ष उस शुभ दिन के।
पुण्य कर्म के एक एक मनके जोड़े साहित्य की सुंदर माला पिरोई फलित हुआ पुण्य कल्पतरु वृक्ष,
साहित्य संगम संस्थान । दिन दिन बढ़ता गया अब है पल्लवित कुसुमित चौबीस इकाइयां सालाए कुल दस।
लगता इस साहित्य संगम के तट पर साहित्य के, पुरोधाओं का मेला हर दिन। नित्य नए लक्ष्य फलित होते, साहित्य के कुछ पुरोधा ना रुकते ना थकते करते चिंतन प्रयास निरंतर अविराम और ढूंढ निकालते नित नए आयोजन करते नित नए महायज्ञ काव्य अग्नि में तप कर निकलते साहित्य के मोती नवीन।
समृद्ध शाली मंच ने रचा इतिहास ,
आकार बढ़ा प्रकार बढ़ा हुआ कुटुंब अति विशाल।
लगता है इस साहित्य संगम तट पर साहित्य महाकुंभ प्रतिवर्ष काव्य की पावन सरिता में चारों दिशाओं से गुणीजन आकर डुबकी सहर्ष लगाते।
कलम को अपनी और सुवासित करते।
मंच यही नहीं रुकता करता प्रतिक्षण को निष्पादित ।करता हर एक लघु प्रयास को सम्मानित ।
सृजन होता नित्य नवीन अविराम।
गढ़ते नित साहित्य के अविरल मोती।
खुले हृदय कपाट यहां सभी के आओ सीखो छंद, दोहा, गजल ,संस्मरण, लघु कथा या पत्र नाम लो हर विधा यहां बसती है।
स्थापना दिवस मनता लगता साहित्य कुंभ होते सैकड़ों काव्य पाठ।
निज नैनों से देखा महाकाव्यमेध को रचते नए मानक गढ़ते रोचक इतिहास ।
जो भी आया उसका स्वागत खुले ह्रदय से करता मंच। सुंदर सम्मान से हुए सभी अविभूत अर्चन वंदन साहित्य का होता यहां अविराम ।
जैसी साहित्य की सेवा वैसा ही मेवा तुम पाओगे। खुरपेची जन इस मंच को नहीं सुहाते झट बाहर का रास्ता पदाधिकारी उनको दिखलाते।
है सब सजग सिपाही और साधक साहित्य के नहीं दूजा कोई काम।
जितने चाहे शब्दों का ताना-बाना बुन लो इसकी महिमा का गुणगान अल्प ही है। देती है महिमा शुभकामना पावन मंच को स्थापना की छठवीं सालगिरह की।

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