“चलो गांव की ओर” एक सशक्त आंदोलन की आवश्यकता

( डा. गंगा सागर सिंह “विनोद” )
हमारा गांव, यह शब्द सुनते ही हमारे देश के लोगों को बचपन की यादें ताजा कर देती हैं क्योंकि हमारे देश के लगभग 90% लोगों का सम्बन्ध गांवों से है। कुछ लोग पूरा /कुछ लोग अल्पकालिक बचपन गांवों में गुजारे होंगे। ग्रामीण अंचलों में पले-बढ़े एवं प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त बुध्दिजीवियों ने शहरीकरण को बढ़ावा देकर गांवों के साथ बहुत अन्याय किया है। रिटायर्मेंट के बाद इक्का-दुक्का लोगों को छोड़कर सभी लोग अपने प्रिय गांव को छोड़कर शहर में बस गये हैं।बहुत लोगों ने गांव की सम्पूर्ण सम्पत्ति बेचकर गांव हमेशा के लिए छोड़ दिए हैं। आज अपने गांव जाने पर अजीब सन्नाटा देखने को मिलता है।लेकिन खेतों, बागों एवं घरों के सामने लगे वृक्षों की छटा आज वैसे ही मन मोह लेती हैं। आज एक सशक्त आंदोलन “चलो गांव की ओर” की आवश्यकता महसूस हो रही है। वैसे भी स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से आज शहर बिल्कुल रहने लायक नहीं रह गये हैं। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, ट्रैफिक जाम में फंसी जिन्दगी एवं ट्रैफिक जाम में बर्बाद होते जीवन के अनमोल छड़ आदि शहरों के लोगों को एक दिन सोचने को मजबूर कर देंगे कि पुनः चलो गांव की ओर। जिस तरह तेजी से इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास, ग्रामीण अंचलों में निर्बाध बिजली, कुकिंग गैस, पीने के पानी सड़कों का जाल बिछाने की प्रक्रिया को गति दिया जा रहा है हमें आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि निकट भविष्य में शहरीकरण पर ब्रेक जरूर लगेगा एवं शहर छोड़कर पुनः लोग गांवों को गुलजार करेंगे। गाँवों की एक मुख्य एवं जटिल समस्या रोजगार का सृजन है। जिसके लिए आम लोग शहर की तरफ भागते हैं। आपने गांव की महत्ता लाकडाउन में देखा होगा कि कैसे लोगों का पलायन गांव की तरफ तेजी से हुआ था। गांव में सरकार सुविधाओं को सुसज्जित कर दे तो हर व्यक्ति गांव को शहर इतना तवज्जो देगा। इस समस्या पर जल्द ही ग्रामीण अंचलों में विकसित हो रहे इन्फ्रास्ट्रक्चर से प्राप्त हो जायेगा। सरकार से अनुरोध है कि नये उद्योग धन्धों को ग्रामीण अंचलों में ही लाइसेंस दे।


