राष्ट्रपति चुनाव: कुशल रणनीतिकार के रूप में उभरे योगी

@ यशोदा श्रीवास्तव…
राष्ट्रपति चुनाव में यद्यपि सत्ता रूढ़ दल के उम्मीदवार द्रोपदी मुर्मू का चुना जाना तय है फिर भी विपक्ष ने अपना उम्मीदवार मैदान में उतार कर खुद की मौजूदगी दर्ज कराने की कोशिश की। लेकिन वह सत्ता पक्ष के मुकाबले न केवल कोसों दूर है, विपक्षी एकता जैसा भी कुछ नहीं दिखा। विपक्ष के सारे सहयोगी दल अपनी डफ़ली अपना राग लेकर किनारे हो लिए और एनडीए समर्थित उम्मीदवार के पक्ष में खड़े हो गए।
राष्ट्रपति पद की सत्ता पक्ष की उम्मीदवार के पक्ष में विपक्षी दलों या उसके कुछ विधायक या सांसदों के खड़े होने के अपने अपने तर्क व स्वार्थ हो सकते हैं वहीं यूपी में सपा गठबंधन की प्रमुख सहयोगी सुभासपा का मुर्मू के पक्ष में आना ओमप्रकाश राजभर की सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से नाराजगी बताया जा रहा है। हालांकि राजभर ने यह भी कहा कि मुर्मू के समर्थन का मतलब यह नहीं कि वे सपा का साथ छोड़ रहे हैं। इसके पहले वे राज्यसभा व विधानपरिषद के चुनाव में उनसे राय मशविरा न करने को लेकर अखिलेश से अपनी नाराज़गी जता चुके हैं। जानकारों का मानना है कि राजभर और अखिलेश में जैसी तल्खी है उससे दोनों के लंबे वक्त तक एक साथ रहना संभव नहीं जान पड़ता।

इसी के साथ यह भी चर्चा तेज है कि सुभासपा को अखिलेश से अलग करने के पीछे सीएम योगी का दिमाग है। यह सच है कि मौजूदा विधानसभा में योगी सरकार को बहुमत या संख्या बल के लाले नहीं है लेकिन 2017 के मुकाबले भाजपा या उसके सहयोगी दलों के विधायकों की करीब 57 सीटें जो कम मिली है उस गैप को कम करने की कोशिश जरूर है। ओम प्रकाश राजभर की पार्टी पर योगी या भाजपा की मेहरबानी के पीछे यही है। लखनऊ राजनीतिक गलियारों में खबर यह है कि ओम प्रकाश राजभर को और सपा मुखिया के चाचा शिवपाल सिंह का भी एनडीए की उम्मीदवार के पक्ष में राजी कर लेना सीएम योगी की रणनीतिक विजय है। भले ही इस रणनीति को भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से जोड़ कर देखा जा रहा हो लेकिन यह बिना योगी के शायद संभव न हो पाता। इसके पहले बसपा और राजा भैया ने एनडीए उम्मीदवार द्रोपदी मुर्मू के पक्ष में मतदान की घोषणा कर ही दी थी।
बाकी प्रदेशों के गठबंधन दल अपने अपने कारणों से विपक्ष के उम्मीदवार से किनारा कर लिए। महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी की सरकार नहीं है लेकिन गठबंधन के बरकरार रहने का दावा जारी है। लेकिन यहां शिवसेना ने एनडीए उम्मीदवार मुर्मू का समर्थन कर यहां विकास आघाड़ी गठबंधन के औचित्य पर सवाल खड़ा कर दिया। इसी तरह झारखंड में कांग्रेस के गठबंधन से चल रही शीबू सोरेन की सरकार के मुखिया शीबू सोरेन ने भी मुर्मू मैडम का समर्थन किया। उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने इसलिए एनडीए उम्मीदवार का समर्थन किया क्योंकि वे उड़ीसा की हैं। यह तो खुल्लमखुल्ला था। कई प्रदेशों में विपक्ष के विधायकों ने राष्ट्रपति के लिए एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में वोट डाला। इनमें कांग्रेस और एनसीपी के विधायक भी शामिल रहे।
यूपी में सपा विधायक शिवपाल का विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को वोट न देने का तर्क बहुत मजबूत व दमदार रहा। शिवपाल ने निश्चित ही अपने तर्क से अखिलेश का मुंह बंद कर दिया। मुलायम सिंह यादव के रक्षा मंत्री रहते उनपर आईएसआई से जुड़े होने का जो आरोप यशवंत सिन्हा ने लगाया था उस आधार पर उनका समर्थन न करने का शिवपाल का ऐलान कहीं से भी अनावश्यक नहीं था। “चाचा” का यह व्यवहार भले ही अखिलेश को नगवार लगा हो लेकिन ऐसा कर शिवपाल ने यूपी में लाखों मुलायम वादियों के दिलों तक जगह बना ली है। अखिलेश चाहते तो यशवंत सिन्हा की उम्मीदवारी तय होने के वक्त अपने पिता पर लगाए आरोपों के प्रयाश्चित स्वरूप उनसे सारी बुलवा सकते थे। यह अखिलेश की बड़ी चूक है जिसे शिवपाल सिंह यादव ने कैच कर लिया। अब अखिलेश यादव लाख कहें कि चाचा ने भाजपा के इशारे पर गड़ा मुर्दा उखाड़ा है,इसे कौन सुन रहा है।
निःसंदेह विपक्ष के गठबंधन में सेंधमारी कर योगी के रणनीतिक कुशलता से सभी भौंचक हैं। सच कहें तो यह विपक्षी दलों के एक से एक अनुभवी और कथित कुशल रणनीतिकारों पर तमाचा है। ऐसा कर उन्होंने यूपी में 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के भारी विजय की भी इबारत लिख दी। लोकसभा चुनाव को लेकर यहां कांग्रेस लगभग हताश हैं। विधानसभा चुनाव के नतीजों ने उसे बहुत डरावना सबक दिया है। हाल ही संपन्न लोकसभा के दो उपचुनावों में भाजपा ने सपा की जीती हुई सीटें छीनकर उसे भी हतोत्साहित कर दिया है। राष्ट्र पति चुनाव में यदि योगी की रणनीति पर गौर करें तो बिल्कुल साफ है कि इस चुनाव के बहाने उन्होंने लोकसभा चुनाव की भी बिसात बिछा दी है जिस पर फिलहाल अभी तक कोई दमदार मुकाबला नहीं दिख रहा।