उत्तर प्रदेश

आजमगढ़ सांसदी की परीक्षा में निरहुआ पास धर्मेन्द्र यादव व गुड्डू जमाली फेल

@ आनन्द कुमार…

आजमगढ़ को निरहुआ पसन्द है, ढहा समाजवादी किला…

आखिरकार आजमगढ़ उपचुनाव के सियासत का परिणाम कशमकश लुका छुपी की तरह कभी मैं आगे कभी आप आगे में सांस ऊपर और नीचे, बीपी लो और हाई करते-करते वही आया जिसको सोचे कम लोग थे। विपक्षी पार्टी को गुरुर था कि वह जीत रही है और सत्ता पक्ष को अपने जीत पर भरोसा था। जब परिणाम आया तो किसी का गुरुर टूटा और किसी के भरोसा की जयकार हुई। इस जीत हार में किसी के लिए संजीवनी का काम किया तो मायावती की बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी गुड्डू जमाली ने, जो इतना दमदारी से लड़ें की यह साबित कर दिए कि हम किसी से कम नहीं। तभी तो मायावती का भी ट्वीट आ गया गया कि उप चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी ही विजेता होती है, बसपा मजबूती से लड़ी, कार्यकर्ताओं को और मेहनत करने की जरूरत है। लेकिन आजमगढ़ के उप चुनाव में अगर मुस्लिम समाज के वोटरों में सेंध नहीं लगता, और मुस्लिम वोटर सौ प्रतिशत गुड्डू जमाली की बात पर भरोसा किए होते तो गुड्डू तीसरे पर नहीं बल्कि पहले पायदान पर होतें। हां उनके मजबूती से चुनाव लड़ने और उनके वोटरों में कुछ बिखराव होने की वजह से निरहुआ का सांसद बनने का राह और आसान हो गया और समाजवादी पार्टी जीती बाजी हार गई। ऐसे में आजमगढ़ उप चुनाव में निरहुआ पास हो गया और समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव तथा बहुजन समाज पार्टी के गुड्डू जमाली फेल हो गए। जिस मायावती ने 2019 में अपना समर्थन देकर अखिलेश यादव को आजमगढ़ से सांसद बनने में अपना समर्थन दिया था वहीं मायावती उप चुनाव की घोषणा होते ही अपने निष्कासित नेता गुड्डू जमाली को पार्टी में वापस लेकर समाजवादी पार्टी के विरोध में न सिर्फ खड़ा किया बल्कि सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव को आजमगढ़ से सांसद होने में ना सिर्फ रोका बल्कि उनके हार के एक-एक कड़ी पर काम किया। जबकि धर्मेन्द्र के लोगों को पूर भरोसा था कि वे जीत रहे हैं। क्योंकि उनके साथ विधायकों व कार्यकर्त्ताओं की पूरी फौज खड़ी थी। और लोगों की जुबानी चर्चा को जनता ने बदल दिया वोट देकर, क्योंकि जुबानी जीत कोई और रहा था और वोटों की गिनती हुई तो जीत कोई और गया। जीत का सेहरा भले ही निरहुआ रिक्शावाला एक माथे बंध गया लेकिन इस जीत के पीछे बसपा प्रत्याशी की मजबूती से चुनाव लड़ना ही प्रमुख कारण है। वर्ना निरहुआ का राह आसान नहीं था।

जिस 2014 के मोदी के राजनीतिक सुनामी में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी का प्रत्याशी रमाकांत यादव नहीं जीत सके थे और 2019 में यही हाल हुआ कि सपा बसपा के गठबंधन में भाजपा प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ मुंह की खा गए, और 2022 के विधानसभा चुनाव में आजमगढ़ में एक-एक विधानसभा पर समाजवादी पार्टी का झंडा बुलंद रहा। ऐसे में 2022 के उपचुनाव में दिनेश लाल यादव निरहुआ का लोकसभा की सदन में जा कर बैठना, टेढ़ी खीर था। लेकिन भाजपा की मेहनत और उन वोटों की तरफ ध्यान देना जिधर कोई ताकना और झांकना नहीं चाहता की बदौलत मेहनत करते-करते तीसरी बार में मामूली ही अंतर से यह चुनाव जीत कर निरहुआ को बड़ा नेता बनाने का रास्ता साफ कर दिया। यह भाजपा की एक बड़ी उपलब्धि है और भाजपा के लिए राष्ट्रीय फलक पर एक यादव चेहरा मिल गया जो भाजपा के लिए देश में काम करेगा और सबसे बड़ी बात है कि निरहु ने मुलायम सिंह यादव व अखिलेश यादव परिवार के एक बड़े चेहरे धर्मेन्द्र यादव को परास्त किया है, इसके चर्चे भले ही यादवों के गढ़ आजमगढ़ में दबी जुबान हो लेकिन पूरे देश में खुल कर होनी शुरू हो गई। वैसे तो भाजपा की प्लानिंग निरहुआ को लेकर क्या है यह भविष्य के गर्त में है लेकिन सूत्रों की मानें तो एक निरहु के रास्ते यादव समाज की एक लम्बी रेखा आज नहीं तो कल भाजपा खींचना चाहती है। इसके लिए उसे मेहनत तो करना पड़ेगा, और भाजपा करेगी भी, क्योंकि भाजपा धैर्य बहुत रखती है तभी तो आजमगढ़ में स्थानीय प्रत्याशी के बिना भाजपा सफलता पाने में इन्तजार की और हिम्मत नहीं हारी और फल मिला भी। यादवों के गढ़ आजमगढ़ में समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव के परिवार के धर्मेन्द्र यादव को किनारे लगाने के लिए राजनीति के एक नये यादव चेहरे निरहु की बदौलत भाजपा ने सपा को ऐसा परास्त किया की आकलन और मूल्यांकन कोई चाहे जितना कर ले, लेकिन भाजपा बायां निरहु से मिले इस राजनैतिक दर्द को भूलना इतना आसान नहीं होगा।

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