यादवों के गढ़ में! कौन जीत रहा है आजमगढ़ का रण!

@ आनन्द कुमार…
आजमगढ़ लोकसभा के उपचुनाव का मतदान शुरू…
आजमगढ़ लोकसभा के उपचुनाव का आज मतदान शुरू हो गया है। वैसे तो इस सीट पर निगाहें पूरे देश की लगी हैं। राजनैतिक लोगों की निगाहें छोड़ दिया जाए तो बालीवुड और हालीवुड इण्स्ट्रीज में दिनेश लाल यादव निरहुआ को जानने वाले भी इस सीट पर नजर गड़ाए बैठे हैं कि क्या निरहुआ रिक्शावाला संसद में जाकर क्या माननीय बनेगा?
2014 में मुलायम सिंह यादव, 2019 में अखिलेश यादव के यहां से सांसद चुने जाने के बाद अब यह सीट वर्तमान की समाजवादी परिवार की परम्परागत सीट बनने के तिराहे पर खड़ी है। यहां पर सपा मुखिया अखिलेश यादव के चचेरे भाई पूर्व सांसद धर्मेन्द्र यादव अगर चुनाव जीतते हैं तो फिर यह सीट मुलायम सिंह यादव के परिवार की अपनी परम्परागत सीट हो जाएगी?

लेकिन भाजपा व सपा के नूराकुश्ती के खेल में जिस कछुए की चाल से बसपा के गुड्डू जमाली चुनाव लड़ रहे हैं, अगर मायावती का दांव सही पड़ा तो फिर आजमगढ़ की जनता को हाथी मेरा साथी की कहावत को चरितार्थ करने से कोई नहीं रोक सकता और पिछले अन्य लोकसभा के चुनावों में बसपा ने जिस तरीके सेंध लगाकर इस सीट पर कब्जा जमाई है, वह कहावत एक बार फिर चरितार्थ हो सकती है कि हाथी आजमगढ़ बायां पूर्वांचल एक्सप्रेसवे बायां दिल्ली की सदन में दस्तक दे दे?
वैसे कहने को तो आजमगढ़ लोकसभा के उपचुनाव में सपा, बसपा व भाजपा जीत सभी रहे हैं। सभी अपना-अपना दावा भी कर रहे हैं, लेकिन सच में कौन जीत रहा है यह जान पाना टेढ़ी खीर है? और इस खीर को सपा के लिए बेस्वाद बनाया है बसपा सुप्रीमो मायावती ने! तो भाजपा का काम बना सकते हैं बसपा प्रत्याशी गुड्डू जमाली। कुल ले देकर मायावती ने खेलब न खेले देईब, खेलिए बिगाड़ब की कहावत के तर्ज पर आजमगढ़ की राजनीति का तापमान इतना गर्म कर दी हैं कि इस भीषण गर्मी और सियासी तपिश में सपा व भाजपा को यह अंदाज ही नहीं लग पा रहा है कि वह आजमगढ़ की राजनीतिक परिपाटी में कितना फिट हैं और कितना अनफिट बैठ रहे हैं।

आजमगढ़ का परिणाम सिर्फ सेंध लग रहे वोटों की बदौलत…
आजमगढ़ लोकसभा के उप चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ हों या समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी धर्मेन्द्र यादव या फिर बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी गुड्डू जमाली हों। सभी अपने-अपने गणित में जीत रहे हैं। लेकिन यहां वही जितेगा जो दूसरे दल के प्रत्याशी के वोट में बढ़िया तरीके से सेंध लगा रहा होगा। अगर यह कहा जाए कि हर दल ने अपना-अपना उम्मीदवार भले ही उतारा है लेकिन सपा, बसपा व भाजपा तीनों ने उप चुनाव की घोषणा के साथ ही वोट में सेंध लगाने की राजनीति की है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। अब इसमें कौन पास है कौन फेल यह भविष्य के गर्त में!
पहला सेंध बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी उतार सपा के वोट बैंक को निशाना बनाने की कोशिश किया। तो सपा ने भी बनवारी बाबू के पुत्र की घोषणा कर दलित वोट पर नजर टिकाया तो जरूर लेकिन प्रत्याशी को कुछ घंटे में ही बदल दिया। सपा के दलित प्रत्याशी आते ही भाजपा ने यादव वोट बैंक में से कुछ वोट निरहुआ के नाम सेंध लग जाए प्रत्याशी बनाया तो जरूर, लेकिन सपा ने प्रत्याशी बदल धर्मेन्द्र यादव को मैदान में उतार आजमगढ़ में राजनैतिक हलचल और तेज कर दी। ऐसे में जीत के परिणाम में यह काफी मायने रखता है कि कौन किसके वोट में कितना सेंध लगा रहा है!

सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर व विधायक अब्बास भी हो सकते हैं किंगमेकर!
सुहलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर और मऊ सदर से सुभासपा के विधायक अब्बास अंसारी का कद आजमगढ़ का चुनाव परिणाम अगर साइकिल के पक्ष में आता है तो बढ़ना तय है। क्योंकि अब्बास किंगमेकर की भूमिका में बड़ा चेहरा साबित हो सकते हैं। भले ही यहां आजम खां प्रचार में आएं हैं उनका फैक्टर तो काम करेगा ही, लेकिन मुस्लिम युवाओं के बीच अब्बास ने जिस अंदाज में धर्मेन्द्र यादव के पक्ष में वोट मांगे हैं और लोकप्रिय हुए हैं वह धर्मेन्द्र यादव के लिए काफी मायने है। सूत्रों की मानें तो धर्मेन्द्र और अब्बास के बीच काफी मजबूत राजनैतिक रिश्ता भी बन चुका है। वहीं सुभासपा मुखिया ओमप्रकाश राजभर अगर राजभर वोटरों को सपा के पक्ष में और अब्बास अंसारी मुस्लिम वोटरों को सपा के तरफ मोड़ने में सफल रहे तो दोनों नेता आजमगढ़ के जीत के किंग मेकर के रूप में बड़ा चेहरा होंगे। तभी तो मऊ के सदर विधायक अब्बास अंसारी का यह कहना कि गुड्डू जमाली चाचा अचछें हैं लेकिन पार्टी गलत चुन लिए आज भी वोटरों के बीच चर्चा ए दौर में बनी हुई है।
गुड्डू जमाली की बसपा में वापसी भी एक इतिहास ही है!
वैसे तो बसपा सुप्रीमो मायावती द्वारा जिस प्रकार आनन-फानन में गुड्डू जमाली की वापसी कराई गई शायद बसपा के इतिहास में इस प्रकार से किसी की ही वापसी हुई हो। और यह आदेश स्वयं बसपा सुप्रीमो का हो और वापसी के साथ टिकट भी मिले तो गुड्डू का कद तो बढ़ा ही बढ़ा है!

आजमगढ़ लोकसभा के उपचुनाव का परिणाम चाहे जो भी आए, जीत का सेहरा अगय भारतीय जनता पार्टी के कमल को मिलता है, या फिर समाजवादी पार्टी के साइकिल की जीत हो, या यह जीत बहुजन समाज पार्टी के हाथी के गले में पड़े। आजमगढ़ के उप चुनाव का परिणाम किसी को खोने के लिए बहुत कुछ है और किसी को पाने के कुछ भी नहीं। मुलायम सिंह यादव के बाद अखिलेश यादव व अखिलेश के बाद धर्मेन्द्र यादव क्या आजमगढ़ की जनता के पसन्द बनेंगे। यहां सबसे ज्यादा प्रतिष्ठा समाजवादी पार्टी की ही फंसी हुई है। भाजपा के अगर निरहुआ जीतते हैं तो वे भाजपा में यादव समाज के बड़े चेहरे के रूप में उभरेंगे। और यहां से भाजपा निरहुआ को लेकर प्रदेश में राजनीति का नया पैंतरा शुरू करेगी जो उसके लिए काफी फायदेमंद होगा। और भाजपा अगर हारती है तो उसके पास खोने को कुछ नहीं है। बसपा की हाथी का क्या वह तो खेल बन गया तो वाह वाह नहीं तो बिगाड़ने की तो उसकी हर चाल किसी के लिए नाकों चना चबाने जैसा है। कुल ले देकर आजमगढ़ का परिणाम वोटों की सेंध की गणित में से ही आनी है। कौन किसके वोट में कितना सेंध लगा रहा है वह उतनी मजबूती से चुनाव लड़ रहा है।