शब्द श्रद्धांजलि… संस्कार भारती के राष्ट्रीय महासचिव स्व. अमीर चंद जी की स्मृति में

■ ओमा The अक्©
“वो हर बार ख़ुद ही मुझे फोन करते थे… मेरी बहुत सी तारीफ़ करते थे और फिर बहुत से प्रश्न पूछते थे… उनके और मेरे बीच बहुत बड़ा वैचारिक-गह्वर था… परन्तु वो घाटों के महत्व को बखूबी जानते थे और साथ ही जानते थे उसकी बीच बहती “एक ही नदी” के धार को… उन्हें मुझसे प्रेम था और वह इस बात को बहुदा जताते रहते थे… मैं उनकी “स्वीकार्य भावना” के चलते पसन्द करता था… वह जब भी मिले हँसते मिले… जब भी मिले जिज्ञासा लिए मिले… जब भी मिले भोजन की थाली सजा कर मिले… मुझे याद नहीं की मैंने किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति के समक्ष उसकी विचारधारा की इतनी आलोचना की हो और तब भी वह बार बार मेरी बात सुनने को आकुल रहा हो… कदाचित उन्हें “आलोचना और सृजन” के गहरे सम्बंध की खूब जानकारी थी… वह घुम्मकड़ थे… और पर्वोत्तर भारत के प्रेमी… मुझे रह रह कर उकसाते थे कि मैं कभी पूर्वोत्तर भारत जाऊं… मैं हिमालय के सुदूर इलाकों में जाना चाहता था और वह भिंडी खाना चाहता था जिसे खा कर उन्होंने अपना वर्षो पुराना “मधुमेह” ठीक कर लिया था… वह.. कॅरोना काल मे वह मेरे लिए “आयुर्वेदिक काढ़ा” ले आए थे… एक सुंदर शाल… और बहुत सा प्रेम…. मैं भूल नहीं सकता हूँ उनका हर बार फोन रखते हुए यह कहना कि– “देखिए! आप अपने को बचा कर रखिये… आप संसार के लिए एक धरोवर हैं… हम लोग तो आते जाते रहेंगे किन्तु आप बहुत बड़ा सौभाग्य हैं देश का…मुझे आपकी चिन्ता रहती है.. आप शरीर को ले कर लापरवाह हैं… आप स्वामी हैं पर मैं आपसे उम्र में बड़ा हूँ इस लिए डांट कर कह सकता हूँ कि आपको अपने को बीमार करने का कोई अधिकार नहीं है..!”…. उफ़्फ़! आज दिल कह रहा है कि मैं कहूँ – “आप मुझसे बहुत बड़े थे परन्तु आपको कोई अधिकार नहीं था इतनी जल्दी देह छोड़ कर जाने का … अभी इस देश को और इसके संस्कार को आपके पोषण की बहुत आवश्यकता थी “अमीर चंद जी”….!
सच आज भारत ने एक बहुत अमीर-दिल को शांत होते देख लिया है…!!💐💐💐
16 ओक्टुबर 2021