लिंचिंग के खिलाफ “सजा-ए-मौत” प्रावधान तलाशने की जरूरत : अतुल अंजान
मऊ। अफवाहों, संकीर्ण, धार्मिक सोच एवं स्वार्थों ने हाल के 5 वर्षों में भारतीय संविधान और दुनिया में भारत की छवि को गहरी चोट दी है। कई घटनाओं में एक निश्चित उद्देश्य के द्वारा या अफवाहों के माध्यम से बेगुनाह लोगों को भीड़ के द्वारा घेर कर मारने की घटनाएं संविधान सम्मत साधारण नागरिक के लिए और एक सभ्य समाज के लिए चुनौती के रूप में उभर कर सामने आया है। महाराष्ट्र के पालघर में गडचिंचोली गांव में दो निर्दोष साधुओं और उनके ड्राइवर की भीड़ द्वारा अफवाहों की बुनियाद पर की गई हत्या एक सभ्य समाज के लिए शर्मनाक है। इससे पहले भी संकीर्णताओं की बुनियाद पर पिछले चार-पांच वर्षों में देश के विभिन्न राज्यों में “मॉब लिंचिंग” हो चुकी है। वक्त का यह तकाजा है कि अब इसके विरुद्ध सख्त न्यायिक कार्रवाई की जरूरत आन पड़ी है। उक्त विचार व्यक्त करते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय सचिव अतुल कुमार अनजान ने पालघर में हुई घटना पर गहरा दुख और शोक व्यक्त करते हुए केंद्र सरकार से मांग की है इस विषय पर राज्यों से चर्चा करें केंद्रीय विधि आयोग “लॉ कमीशन” को इस विषय पर गहन अध्ययन के बाद सीआरपीसी, आईपीसी में संशोधन कर “सजा-ए-मौत” के प्रावधान को भी तलाशने की जरूरत है। ताकि इस तरह की घटनाएं भारतीय लोकतंत्र पर कलंक का टीका न बनने पाए।

