आस्था

गणेश “विसर्जन” क्या सिखाता है हमें ?

( वर्षा )

“जन्म होता है हमारा माँ की कोख से और “विसर्जन” भी होता है हमारा माँ की गोद में”

हम गणेश जी को हर साल बड़े हो धूमधाम से अपने घर में लेकर आते है। गणेश जी कहीं एक, तीन,पांच या दस दिनों तक बैठाया जाता है। गणेश जी को हम बिलकुल अपने घर के सदस्य की तरह सेवा करते है गणेश जी को कोई अपना बेटा मानता है, कोई उसे अपना छोटा भाई और कोई उसे अपना दोस्त कहता है ये सब लोगों की उनके प्रति उनकी श्रद्धा होती है रिश्ता चाहे कोई भी गणेश जी का उनके साथ पर वो सबका मंगल ही करते है। उनके बहुत से नाम है पर हम उन्हें प्यार से “बप्पा” कहते है। इस दौरान दस दिनों तक गणेश पंडालों में काफी रौनक होती है इसी बहाने सब लोग एक जगह मिलते है और साथ में मिलकर इस त्यौहार को मनाते है। इन दस दिनों में पूरे शहर का वातावरण भक्तिमय हो जाता है ।

गणेश उत्सव मनाने की शुरुवात…

जैसा की हम सब जानते है की गणेश जी हिन्दुओं के अराध्य देव है। कोई भी धार्मिक उत्सव, पूजा हो या फिर विवाह उत्सव हो या किसी भी शुभ अवसर सबसे पहले गणेश जी की ही पूजा सर्व प्रथम की जाती है। कहा जाता है की महाराष्ट्र में सात वाहन, राष्ट्र कूट, चालुक्य आदि राजाओं ने गणेश उत्सव की प्रथा चलाई थी। छत्रपति शिवाजी महाराज गणेश जी की उपासना करते थे। इतिहास में ये वर्णन मिलता है की बाल्यकाल में उनकी माँ जीजाबाई ने पुणे के ग्रामदेवता कसबा गणपति की स्थापना की थी। तभी से यह परम्परा चली आरही है। उसके बाद पेशवाओं ने यह परम्परा को आगे बढाया।

वर्षा

पहले सिर्फ घरों में होती थी गणेश पूजा…

ब्रिटिश काल में लोग किसी भी संस्कृत कार्यक्रमों या उत्सवों को साथ में मिलकर या एक जहग इकठा होकर नहीं मना सकते थे। इसलिए लोग घरों में ही गणेश जी पूजा किया करते थे। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने पुणे में पहली बार सार्वजनिक रूप से गणेश उत्सव मनाया। आगे चलकर उनका यह प्रयास एक आन्दोलन बना और स्वतंत्रता आन्दोलन में इस गणेश उत्सव ने लोगों को एक जुट करने में अहम् भूमिका निभाई है। इस तरह गजानन राष्ट्रिय एकता के प्रतिक बन गये। पूजा को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे केवल उसे धार्मिक कर्म कांडों तक ही सिमित नहीं रखा गया बल्कि गणेश उत्सव को आजादी की लड़ाई, छुआछुत दूर करने और समाज को संगठित करने तथा आप आदमी का ज्ञानवर्धन करने का जरिया भी बनाया गया। गंगाधर तिलक ने १८९३ में गणेश उत्सव का सार्वजनिक पौधारोपण किया था जो आज एक विराट वत वृक्ष का रूप ले चुका है।

गणेश जी मूर्ति कैसी होनी चाहिए और क्यूँ ?

चलिए हमने गणेश उत्सव की शुरुवात कैसे और कब हुई ये तो जान गये अब दिमाग में ये सवाल है की गणेश की मूर्ति किसकी बनाई जाए क्यूँ की मंदिरों में जो मूर्तियाँ स्थापित की जाती है वो पत्थरों की बनी होती है इस तरह की मूर्तियों को तो हम गणेश उत्सवों में नहीं विराजित कर सकते क्यूँ की इन उत्सवों में हम दस दिनों तक ही गणेश जी की पूजा करते है और फिर उसका विसर्जन करते है इसलिए इस समय जो गणेश जी की मूर्तियाँ बनाइ जाती है वो मिटटी की होती है ताकि उसे जब हम विसर्जित करे तो वो आराम से पानी में घुल जाए। लेकिन आजकल मिट्टी की जगह प्लास्टर ऑफ़ पैरिस की मूर्तियाँ बनाई जा रही है इसकी बनी मूर्तियाँ पानी में नहीं घुलती जिसके कारण पानी प्रदूषित होता है और मूर्तियाँ जैसी की वैसी ही रह जाती जो जो बहकर हमारे पैरों के निचे तो कभी बहकर गंदें पानी में चली जाती है और इस तरह भगवान् का अपमान होता है। इस तरह की मूर्तियाँ काफी कीमती होती है साथ ही परियावर्ण को नुकसान भी पहुचाती है। इसलिए हमें हमेशा मिट्टी से बनी मूर्तियाँ ही खरीदनी या बनानी चाहिए ताकि वो पानी में आसानी से घुल जाए और कोई नुकासान भी न हो। इस बार कई जगहों पर फिटकरी से बनी गणेश जी की प्रतिमायें भी बनाई गई है। फिटकरी से गणेश जी प्रतिमा बनाने का उद्देश्य ये था की जब इन मूर्तियों का विसर्जन हम पानी में करेंगें तो वो पानी को साफ़ करेगा और इससे कोई नुकसान भी नहीं होगा।

विसर्जन शब्द का अर्थ…

हमने जान लिया की गणेश उत्सव की शुरुवात कैसे हुई और किस तरह मिट्टी की बनी गणेश जी की प्रतिमायें प्रकृति के लिए अच्छी होती है। पर कभी हमने इस बात पर गौर किया है की विसर्जन शब्द का वास्तविक क्या अर्थ होता है,

हम पानी में ही मूर्तियों को क्यूँ विसर्जित करते है ?

ये धर्म और विश्वास की बात है की हम गणेश जी को आकार देते है लेकिन ऊपर वाला तो निराकार है और सब जगह व्याप्त है लेकिन आकार को समाप्त होना ही पड़ता है इसलिए विसर्जन होता है। जन्म का त्याग करना पडेगा विसर्जन हमें ये सिखाता है की इंसान को अगला जन्म पाने के लिए इस जन्म में अपने इस शारीर का त्याग करना पडेगा। गणेश जी मूर्तियाँ बनती है, पूजा होती है फिर उसका विसर्जन कर दिया जाता है ताकि अगले बरस आने के लिए उनको इस साल विसर्जित होना होता है। जीवन भी यही है इस जन्म में अपनी जिम्मेदारियां पूरी कीजिये और समय समाप्त होने पर अगले जन्म के लिए इस जन्म को छोड़ दीजिये।

इस उत्सव को और उपयोगी कैसे बनाए ?

दस दिनों तक ये उत्सव हम बड़े ही धूमधाम से मनाते है काफी सारे रंगारंग कार्यक्रमों का भी आयोजान करते है। हम इस उत्सव को और भी कैसे उपयोगी बना सकते है ?हमें इस बात पर भी जोर देना चाहिए। हम इस उत्सव में जरूरत मंदों को उनके जरूरत की वस्तुएं दान दे सकते है, मिट्टी की मूर्तियों को किस तरह अपने घर में कैसे विसर्जित करे? हमें तालाबों या नदियों में मूर्तियों को विसर्जित करने की अपेक्षा कृतिम तालाब बनाकर उसमे विसर्जन की प्रकिया शुरू करनी चाहिए। इस समय काफी झाकियों का भी जगह–जगह आयोजन होता है उन झाकियों में रामयण की कथा आदि बताने से अच्छा ज्ञान वर्धक कहानियां या साफ सफाई से जुडी बातें शिक्षा, खेल या विज्ञान से जुडी उपलब्धियों को इन में प्रदर्शित किया जाए ताकि बच्चों और लोगों को जानकारी मिल सके। हम सब जानते है मुंबई में लालबाग के गणपति काफी फेमस है इस बार यहाँ पंडाल में चन्द्रयान-२ के बारे लोगों को जानकारी मिल सके इस तरह यहाँ इस पंडाल को सजाया गया है। हमें विसर्जन बहुत शालीनता के साथ करना चाहिए इस वक्त शराब आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। इस तरह हम इस उत्सव को और भी बेहतर बना सकते है। जाते-जाते यहीं कहना चाहूँगीं गणपति बप्पा मोरियाँ, अगले बरस तू जल्दी आ

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