हमेशा रंग बदलने की कलाकारी नहीं आती, बदलते दौर की मुझको अदाकारी नहीं आती: वशिष्ठ अनूप
वाराणसी। राजभाषा पखवाड़े के अन्तर्गत रेलवे के वाराणसी मंडल पर हुए विभिन्न आयोजनों एवं काव्य गोष्ठी में गुरुवार को कवियों ने राजभाषा के संदर्भ में अपनी रचनाओं का वाचन किया । इस क्रम में नागेश शांडिल्य ने हिन्दी थी माथे की बिन्दी कभी-कभी खून सनी तलवार थी हिन्दी। हिन्दी थी माटी की गंध कभी-कभी माता का नेह दुलार थी हिन्दी पढ़ा। धर्मप्रकाश मिश्र ने भारत माता की है बिटिया ,अलबेल बड़ी वरदान है हिन्दी तो श्रीमती श्रुति मिश्रा रोम-रोम पीड़ित है,निर्मम मृत्यु गीत है व्याप्त, क्या गाऊँ मैन गान आज हर माँ का हिय आक्रात। भूषण त्यागी ने एैसे घुट-घुट के नहीं अपनी सुबहो शाम करो,आइने मक्कार हैं,पत्थर का इन्तजाम करो। प्रो0 वशिष्ठ अनूप ने हमेशा रंग बदलने की कलाकारी नहीं आती, बदलते दौर की मुझको अदाकारी नहीं आती, जिसे तहजीब कहते हैं वो आते-आते आती है, फकत दौलत के बलबूते रवादारी नहीं आती। श्रीमती रंजना राय ने न मैं बस दूद ऑंचल का न ऑंखो का मैन पानी हूँ, न बेटी माँ बहन केवल न बस दासी न रानी हूँ । सत्यमवदा शर्मा ने मैं इस जीवन के हर-पल के बदलते रुप का दर्पण,कोई जो कह नहीं पाया मैं एक ऐसी कहानी हूँ। कवियों की रचनाओं पर लोगों ने खूब तालियां बजायी। इसके पूर्व राजभाषा अधिकारी ध्रुव कुमार श्रीवास्तव ने समारोह में पधारे सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए राजभाषा के पखवाड़े के अन्तर्गत वाराणसी मंडल पर हुए विभिन्न आयोजनों एवं क्रियाकलापों से सबको परिचित कराया और प्रत्येक क्षेत्र में राजभाषा के प्रयोग पर बल दिया । काव्य गोष्ठी का संचालन श्री चन्द्रभूषणपति त्रिपाठी उर्फ भूषण त्यागी एवं धन्यवाद ज्ञापन राजभाषा अधिकारी ध्रुव कुमार श्रीवास्तव ने किया।