गुस्सा बहुत आता है, मंच से कोई नेता, मैं कल्पनाथ बनूँगा चिल्लाता है

डा. राहुल राय…

गुस्सा बहुत आता है
किसी मंच से जब कोई नेता
मै कल्पनाथ बनूँगा चिल्लाता है
तुम गए तुम्हारी आदत थी
वृहद् जो इतनी विरासत थी
बचपन से कल्पनाथ सुना
मै कहा किसी को जान रहा
मुझे लगा की नेता सब तुम जैसे
नेता मतलब कल्पनाथ,
मुझे अपने नेता पर अभिमान रहा कितने आये कितने
चले ग
ए
मै गिनती भी अब भूल रहा
जो भी आये वो यही कहे
मै कल्पनाथ बन जाऊंगा
वक़्त बीता बुद्धि बढ़ी ,
दुनिया देखी मैं समझ गया
मै तुमसा अब न पाउँगा

एक ईंट भी जो ना रख पाये
ओ कल्पनाथ कल्पनाथ सब चिल्लाए
एक घड़ी यहाँ कचहरी में
जो सबको दिखलाती है
वक्त भी रुक जाता है,
जब कोई कल्पनाथ चला जाता है
गुस्सा बहुत आता है
किसी मंच से जब कोई नेता
मै कल्पनाथ बनूँगा चिल्लाता है
रचनाकार- डा. राहुल राय, एमबीबीएस एमडी हैं और मऊ के निवासी हैं।