शब्द मसीहा की कहानी : मकसद
@ शब्द मसीहा केदार नाथ…
जब मैंने उसे चाय के साथ बिस्किट रखते हुए देखा और इस बात को नोटिस किया कि उसने कुछ बिस्किट बचा लिए हैं तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। अब बात इतनी छोटी थी कि इस तरह से पूछकर मैं उसका अपमान भी नहीं कर सकता था । उसके साथ रहने वाले रूम पार्टनर से बुलाकर मैंने पूछा – “अरे! तुम लोगों के साथ कोई भी आ गया है क्या ?”
“नहीं, साहब ! वो अजय का भाई आया है दिल्ली में काम की तलाश में । उसके साथ उसका बेटा भी आया है । बड़ा ही अच्छा बच्चा है ।” महेश ने बताया ।
“तब तो घर में रौनक आ गई है।” मैंने कहा और मुस्कुरा दिया जबकि मेरे मन में कई ख्याल चल रहे थे ।
“हाँ, साहब! उसके आने से तो दिन भी कट जाता है । हमने तो केबल भी कटवा दिया था । अजय कहता था कि उसका खर्चा बढ़ गया है , इसलिए फालतू खर्च कम करना पड़ेगा ।” महेश ने कहा ।
अब मेरे सामने पूरा दृश्य घूम गया था । अजय की मजबूरी को कुछ-कुछ समझ गया था मैं ।
“कितने साल का है बच्चा ?” मैंने पूछा।
“साहब छह साल का है । गाँव से आया है तो शाम को जब हम जाते हैं तो सभी चीजों को बहुत गौर से देखता है । कई बार जिद भी करता है चीज खाने की , पर अजय को तो गाँव में भी पैसे भेजने पड़ते हैं ….सो बच्चे की हर मांग तो पूरी नहीं कर सकते न ।” महेश बोला ।
“अरे! महेश, मैंने तुम्हें इसलिए बुलाया था कि मुझे भी कुछ सामान मंगवाना था केंद्रीय भंडार से । तुम्हारे साहब तो मीटिंग में हैं । तुम मेरा सामान ला दोगे ?” मैंने कहा ।
“साहब! मैं जरा गंगा सिंह को बता दूँ । अगर साहब जल्दी आ गए तो वो उनको अटेण्ड कर लेगा । मैं अभी आता हूँ ।” और महेश बाहर निकल गया।
मैंने कागज लिया और उस पर बिस्किट, नमकीन , टॉफी, केक और कई सामान लिख दिये । महेश पर्चा लेकर केंद्रीय भंडार से सामान ले आया तो मैंने उसे अलमारी में रख दिया ।
शाम को जब ऑफिस से छुट्टी का समय हुआ तो मैंने अजय को बुलाया और पूछा -“अरे! तुम्हारा भतीजा आया है और तुमने बताया ही नहीं । क्या नाम है उसका ?”
“हाँ, साहब ! मेरा भाई आया है काम की तलाश में तो भतीजा भी आ गया । उसके बिना वो रहता नहीं है ।” अजय बोला ।
“तब तो खूब मजे ले रहे हो तुम बच्चे के साथ खेलने के । समय भी बढ़िया कट जाता होगा ।” मैंने कहा तो अजय चुप ही रहा ।
“मुझे महेश ने बताया था । मैंने उसके लिए कुछ सामान मंगवाया है , उसे अपने साथ ले जाना ।”
“साहब! माफ कर दो । गलती हो गई । बच्चे के प्यार में पड़कर ।” अजय बोला ।
“अरे! कैसी गलती ? प्यार और गलती में फ़र्क न कर पाऊँ ऐसा इंसान नहीं हूँ । पागल हो तुम …. मुझसे सीधे भी तो कह सकते थे । अब चुपचाप ये सब ले जाओ और कमरे से तुरंत बाहर हो जाओ ।”
ऐसा कहकर मैं जैसे ख़ुद रूआँसा हो गया था । मैं उसकी स्वीकारोक्ति को अपराध में नहीं बदलना चाहता था । अजय के प्यार को जिताना ही मेरा मकसद था ।