खास-मेहमान

सर वर्दी उतारने का मन ही नहीं हो रहा, मन कर रहा, वर्दी पहनकर ही सो जाऊं

पांच साल पुरानी बात अब भी नई सी लगती है…

वरिष्ठ IPS अधिकारी नवनीत सिकेरा अपने फेसबुक वॉल पर आज एक आरक्षी के बारे में अपनी बातें लिखी है। श्री सिकेरा ने लिखा है की कैसे पुलिस की नौकरी में जीवन के अधिकांशतः समय पुलिस कर्मी की समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाते निभाते बीत जाती है। आइए पढ़ते हैं पूरी बात श्री सिकेरा के शब्दों में…

कहना था हमारे आरक्षी श्री कैलाशपति जी का जिनको अभी हाल में ही पदोन्नति मिली । 40 साल की नौकरी के बाद एक सितारा उनके कंधे पर लगा और वह रोने लगे । पूरे जीवन के चालीस साल बिताने के बाद एक प्रमोशन। आकर कहा कि सर सिर्फ एक महीना ही सितारे लगी वर्दी पहन पाउँगा तो लगता है की अब इसे उतारूँ ही न । मैं उसकी भावनाओं को समझ रहा और समझ नहीं पा रहा था कि क्या कहूँ। हालांकि मैंने पूरी कोशिश की कुछ हद तक सफलता भी मिली । वर्ष 2004 में विशेष श्रेणी के प्रमोशन हुए और लगभग 30 हज़ार से ज्यादा पुलिस कर्मियों का प्रमोशन भी हुआ। हज़ारो सपने पूरे हुए हज़ारों नई उम्मीद जगीं। लेकिन बाद में वह योजना बंद हो गयी।
आप सोचें एक पुलिस वाला जो साल भर काम करता है बिना किसी छुट्टी के त्योहारों पर दुगनी मेहनत, अपने सामाजिक दायित्व भी पूरे नहीं कर पाता, पूरा सप्ताह कम से कम 12 घंटे की ड्यूटी , उसका भी परिवार है माँ पिता है पत्नी बच्चे है क्या दे पाता है उनको, पूरी नौकरी में अगर एक प्रमोशन भी मिल जाये तो ख़ुशी से पागल हो जाता है
ज्यादातर सिपाही अपने गाँव से सिपाही भर्ती होते हैं और सिपाही ही रिटायर हो जाते है।

कैलाशपति जी को समय से प्रमोशन तो नहीं दिला पाया पर सम्मान से विदा करना हमारे हाथ में था । पूरे सम्मान से हमने अपने प्रिय कैलाशपति जी को उनके रिटायरमेंट की विदा दी
परंपरा के अनुसार बड़े अधिकारीयों को उनकी गाडी में बिठाकर , सम्मान स्वरुप कार को मिलकर धक्का लगाकर विदा किया जाता है
श्री कैलाशपति जी को भी गाडी में बिठाकर हम सभी ने गाडी को धक्का देकर उनको विदा किया। जाते समय उनकी आँखों में आंसू थे जो बहुत कुछ बयां कर गए थे।

सच में सोशल मीडिया पर अखबारों में नवनीत सिकेरा जीके जब अलग और अनोखे अंदाज में कार्यों की बातें सुनने को मिलती है तो अच्छा लगता है भारत के टॉप आईपीएस अफसरों में से नवनीत सिकेरा ऐसा अफसर जब किसी आरक्षी सिपाही के लिए दर्द रखता है तो जरूर उस सिपाही दरोगा या अन्य पुलिसकर्मियों के अलावा समाज के अन्य लोगों की आंखें आंखों से भर्रा जाती होगी वास्तव में ऐसे अवसर उन कर्मियों के लिए देव तुल्य होते हैं।

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