अपना जिलातस्वीरों में मऊ

मऊ की गलियां पूछ रही यह खटर-पटर गुम सा क्यूं है

(मुहम्मद अशरफ)

मऊ। ’’ मैं बुनकर हूं साहब…’’ मैं ख्वाब, खुशियां, रिश्ते, जिंदगी सब बुन लेती हूं, इतना ही नहीं मैं सबका पेट भी पाल लेती हूं, लेकिन इन्हीं खुशियों को आज कोरोना ने ऐसे बुन दिया है कि सपने तो सब धरें के धरें रह गये, अब अपने परिवार का पेट चलाना भी मुश्किल हो गया है। मऊ ताने-बाने का शहर हैं यहां पर बुनकर काफी संख्या में निवास करते हैं और हर घर में आपको लूम दिखायी देंगे। जिससे दिन रात बुनकर लूम चलाकर साड़ी तैयार करते हैं और उन्हें अन्य जनपदों या दूसरे राज्यों में भेजने का काम करते हैं। मऊ की साड़ियां काफी दूर-दूर तक जाती है। लेकिन पूरे विश्व में फैली कोरोना वायरस (कोविड-19) के प्रकोप से भारत में भी पूरी तरह से लाॅकडाउन किया गया है उसमें लूम की रफ्तार बिल्कुल थम सी गयी है। मऊ ही नहीं आस पास के कोपागंज, अदरी, घोसी, पुराघाट आदि कस्बों के जिन गलियों में घुसते ही आपको यह खटर पटर की आवाज मऊ में होने का एहसास कराती थी इन दिनों उन गलियों में सन्नाटा और उदासी छायी हुयी है। आपके कदमताल से गलियां पूछ बैठती हैं कि कहां गये वह खटर पटर के संगीत जो हम सुबह, शाम व रात सुनतें थे वे गुम से क्यों है ? वह थमें से क्यों है?
न किसी के पास इसका जबाब है न उपाय कारण स्पष्ट है देश की रफ्तार रूकी हुयी है। गांव की पगडंडी हो या शहर की गलियां सब शांत हैं चुप हैं इन्तजार कर रहीं हैं अपने दिन बहुरने का।
मऊ जनपद में लाॅकडाउन होने से गलियों में सुनाई देने वाली लूम की खटर-पटर मधुर ध्वनि की आवाजें आज कानों में सुनाई नहीं दे रही है। जिससे साड़ी का कारोबार पूरी तरह से ठप हो गया। साड़ी का कारोबार न होने से बुनकर भूखमरी के कगार पर आ गये हैं। आखिर इनके दर्द को कौन सुनेगा। जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीज रोटी, कपड़ा और मकान है। इन्हीं में से एक कपड़ा तैयार कर लोगों का तन ढकने वाला बुनकर इस लाॅकडाउन में सरकार की तरफ आशा भरी नजरें लगाए बैठा है कि सरकार इन के लिए भी विशेष पैकेज की घोषणा करेगी। लेकिन अभी तक सरकार ने भूखमरी की मार झेल रहे बुनकरों का ध्यान नहीं दिया है। तैयार साड़ियों के पैसे भी मिलना मुश्किल हो गया है जिससे की इन के परिवार का भरण-पोषण हो सके और इनका जीवन खुद ताने-बाने में उलझ कर रह गया है। सरकार को इनकी समस्याओं के दृष्टिगत उचित कदम और योजनाओं का निर्धारण करने की आवश्यकता है। बताते चले सरकार हर जरूररतमन्दों के मदद के हर सम्भव तैयार है और उनकी मदद भी कर रही है। लेकिन सरकार की तरफ से मिल रही मदद, इन बुनकरों के लिए नाकाफी है। कहीं ऐसा ना हो कि सरकार की अनदेखी से इस महामारी के दौर में पूरा बुनकर समुदाय ही बर्बादी के कगार पर आ जाए।

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