पुण्य स्मरण

कई दशक पत्रकारिता में गुजारने के बाद, एक टुकड़ा जमीन तक न खरीद सके अर्जुन सिंह

(आनन्द कुमार)

मऊ। श्रद्धांजलि अश्रुपूरित नयनों से पत्रकारिता के उस शख्सियत को जिन्होनें मऊ जनपद में पत्रकारिता के सेवाकाल में नाम और शोहरत तो खूब बटोरी लेकिन खूद व बच्चों के लिए एक टुकड़ा जमीन तक नहीं खरीद सके। अपनी सादगी और बानगी के कलमकार अर्जुन सिंह पत्रकारिता के साथ-साथ राष्ट्रधर्म के प्रर्ति अपनी जिम्मेदारी निभाने में कभी पीछे नहीं हटे, बल्कि एक मजबूत सिपाही बनकर निडरता व निर्भिकता के साथ डटे रहें।
मऊनाथ भंजन जो मात्र एक नगर हुआ करता था ऐसे शहर में सन् 1957 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक के रुप में श्री अर्जुन सिंह का पदार्पण लखनऊ से मऊनाथ भंजन नगर के लिए हुआ। संघ के द्वारा दी गयी जिम्मेदारी को बखूबी निर्वहन करने बाद श्री सिंह ने मऊ में पत्रकारिता की नींव के रूप में सन 1980 में वनदेवी साप्ताहिक अखबार का प्रकाशन शुरू किये। साथ ही श्री अर्जुन सिंह ने जब हिन्दी समाचार पत्र पूर्वांचल सन्देश की सन् 1990 में आधार शिला रख मऊ का पहला दैनिक पत्र होने का गौरव बनाया तो उस अविस्मरणिय पल के साक्षी बने तत्कालिन राज्यपाल बी. सत्यनारायण रेड्डी। वह पल मऊ के पत्रकारिता के इतिहास का सुनहरा पल हुआ। यही नहीं पत्रकारिता का कारवां चलता रहा तो अर्जुन सिंह ने हिन्दी समाचार पत्र के साथ उर्दू पत्रकारिता में कदम रखा और बाग़े मश़रिक नामक उर्दू अखबार निकाला जिसको तत्कालिन रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव ने मऊ की सरजम़ी पर आकर बिधिवत लांचिंग की।
इस दौरान अर्जुन सिंह के साथ अखबार को निखारने में शतानन्द उपाध्याय, प्रकाश चन्द्र सिंह सतेन्द्र मिश्रा,ओम प्रकाश गुप्ता, विष्णु लाल गुप्त, अब्दुल अजीम खान, आनन्द राय, आदि ने कदम-कदम पर साथ दिया।
पत्रकारिता के उस क्षण में तत्कालिन केन्द्रीय मंत्री कल्पनाथ राय रहे हों, या उनके राजनैतिक विरोधी राजकुमार राय या उस दौर में मऊ जनपद की राजनीति में भाग्य आजमाने के लिए भाजपा के अवतरित नेता मुख्तार अब्बास नकवी रहे हों। इसके अलावा हर दल के नेता व जनप्रतिनिधी रहे हों उनकी सियासत पूर्वांचल संदेश और अर्जुन सिंह की टीम के लेखनी के बिना ना चल सकती थी और नाहीं टीक सकती थी। यह भी कहने में अतिश्योक्ति नहीं होगी की पूर्वांचल संदेश की भूमिका मऊ की सियासत में अहम रोल रखती थी।
वह शख्सियत मऊ पत्रकारिता का वह सितारा जो अपनी व अपनी टीम के साथ कलम की बदौलत मऊ को संवारने व निखारने का जुनून रखता था, और जब भी कलम के साथ आगे बढ़ा तो हर बार, बार-बार सिर्फ मऊ के लिए सोचा। मऊ को जिले के रुप में देखने के लिए लेखनी की बदौलत समाज को आन्दोलित किया।
विडम्बना यह रही की कई दशक पत्रकारिता में गुजारने के बाद, अर्जुन सिंह अपने लिए या भविष्य में बच्चों के लिए एक टुकड़ा जमीन तक खरीद न सके। जबकि एक बार तत्कालिन एसडीएम द्वारा उन्हें आवास के प्रदत्त भुखण्ड को उन्होनें शिक्षा के लिए एक विद्यालय को दान कर दिया। हम सभी पत्रकारों की तरफ से अर्जुन सिंह को विनम्र श्रद्धांजलि।

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