डा. प्रमोद कुमार ‘अनंग’ की 12 कविताएं

( एक )
“मैं फिर आऊंगा”…
बादल आज भींगाने आया।
दिल की प्यास बुझाने आया।।
सूख रही फसलों को सींचा।
मन में प्रीत बढ़ाने आया।।
सींच दिया उसने घर आंगन।
रोम – रोम महकाने आया।।
अगर-मगर सब मौन हो गए।
डगर-डगर पिघलाने आया।।
सोच रहा है काम हो गया।
लेकिन प्यास बढ़ाने आया।।
क्यारी को बूंदों से भरकर।
सुंदर सुमन खिलाने आया।।
प्यास मिटाकर भूख बढ़ाकर।
अंदर से बहलाने आया।।
खनखन छनछन टनटन कनकन।
नव- संगीत सुनाने आया।।
गहरी निद्रा में छू -छूकर।
मन के भाव जगाने आया।।
आया हूं मैं फिर आऊंगा।
यह विश्वास जमाने आया।।………’अनंग’
(दो)
” छिपुली लेकर दौड़ा है “…
माई-माई कहकर बेटा , छिपुली लेकर दौड़ा है।
कई जून के बाद आज , चूल्हे में रोटी जोड़ा है।।
चूल्हे की रोटी का स्वाद गजब होता है,क्या होगा।
दो रोटी में डेढ़ खा गया , आधी ही बस छोड़ा है।।
भूख मिटाकर बच्चे ने,हंस मां को गले लगाया जब।
आंसू छलक उठे वह भूली,थाली में तो थोड़ा है।।
बच्चा भूख मिटाये कैसे,मां को काम नहीं मिलता।
घर का मालिक कई वर्ष से , तड़ीपार भगोड़ा है।।
बड़का दुआर के बाबूजी ही,अबकी बार विधायक हैं।
उन्हें फ़िक्र अब क्या करनी,हाथों में चाय पकौड़ा है।।
सभी पड़ोसी उसी तरह के , आंसू का सैलाब यहां।
सावधान सत्ता वालों , मृगनयनी हाथ हथोड़ा है।।
वृक्ष की तरह घर उसके, दिन -रात बड़े होते जाते।
खूनी लोग चैन कर रहे , हाथ व्हिस्की कौड़ा है।।…”अनंग “
(तीन)
“श्रद्धा की अधिकारी है “…
भोली है, वह सुंदर है, वह प्यारी है।
सृष्टि का उपहार तो सचमुच नारी है।।
जिसे चाहती पूर्ण समर्पण तक जाती।
सर्वोत्तम प्राणी वह कितनी न्यारी है।।
बनकर बहन बलैया लेती, अद्भुत है।
जन-जन कण-कण’मां’तेरा आभारी है।।
कुलद्वय की मर्यादा का रक्षण करती।
अनुपम स्वार्थहीन,उसकी बलिहारी है।।
दुनिया का इतिहास , रक्तरंजित उससे।
फिर भी भविष्य की पूरी जिम्मेदारी है।।
कुर्बानी -लाचारी -शौर्य कहानी से।
पाषाणों पर अंकित कारगुजारी है।।
व्यभिचारी सड़कों पर छुट्टा घूम रहे।
बेशर्मों ने की दावा , सरकारी है।।
आडंबर भयमुक्त समाज बताता है।
वो दलाल है, झूठा है , व्यापारी है।।
उसकी ममता के आगे दुनिया झुकती।
त्यागमूर्ति वह,श्रद्धा की अधिकारी है।।……”अनंग “
(चार)
” पैगाम “…
जीवन को संग्राम बनाए रखना है।
खास नहीं बस आम बनाए रखना है।।
जब तक मुक्त नहीं होते इस दुनिया से।
हरदम अपना नाम बनाए रखना है।।
जीवन जनहित के खातिर हम पाए हैं।
आयें सबके काम , बनाए रखना है।।
रक्त पिपासु घूम रहे हैं सड़कों पर।
हो ना कत्लेआम बचाए रखना है।।
पाना है मजबूत इरादों से मंजिल।
जीवन को अविराम बनाए रखना है।।
सबका साथ निभाने की आदत डालो।
साथ सुबह से शाम बनाए रखना है।।
धर्मपरायण रहकर जग में नाम करो।
मन -मंदिर में राम बसाए रखना है।।
रहे कहीं भी पर माटी से जुड़े रहे।
जन्मभूमि को धाम बनाए रखना है।।
रिश्तों की दुनिया से सदा जुड़े रहना।
आपस में ये झाम बनाए रखना है।।
अपना है परिवार जहां का हर प्राणी।
जिंदा ये पैगाम बनाए रखना है।।…….”अनंग “
(पांच)
“हम गरीब सब एक हैं “…
गोबर सिर पर ढोने वाले, शीश झुकाना छोड़ेंगे।
आज नहीं तो कल से वे,दरबार लगाना छोड़ेंगे।।
जैविक खाद बनाकर,खेतों को जीवन देने वाले।
खुद का जीवन है खतरे में,टाट बीछाना छोड़ेंगे।।
बेटे -बेटी संग चला वह , हरियाली उपजाने को।
तिनका-तिनका बीन रहे जो,कबतक दाना छोड़ेंगे।।
अधिकारी -नेता -मंत्री सब ,मस्त हुए मैखाने में।
चट्टी – चौराहों के हम , देशी मैखाना छोड़ेंगे।।
दिल में हम रखते थे तुमको,जान गए तिकड़म बाजों।
मत घबराओ जाग गए तो , बिल में भी ना छोड़ेंगे।।
जरा डरो मोटी रोटी , खाने वाले बलशाली हैं।
पेड़ा छीलके खाने वालों,बेकारी करना छोड़ेंगे।।
मूलभूत आवश्यकता भी,पूरी अगर नहीं करते।
भागो धूर्तों भागो अब, हम ना दौड़ाना छोड़ेंगे।।
जबतक सिरपर कफन नहीं बांधा,तबतक निश्चिंत रहो।
महल जला कर राख करेंगे , आग बुझाना छोड़ेंगे।।
गोबर-गोइठा करें कहां हम,कब्जा करके बैठे हो।
हाथ से हक ना जाने देंगे,अब बतियाना छोड़ेंगे।।
लोकतंत्र को बना लुगाई,मौज कर रहे रातों दिन।
बहुत हो गया छीनेंगे , अब रोना गाना छोड़ेंगे।।
मत भरमाओ जाति-पाति में,हम गरीब सब एक हैं।
दर्द – भूख ने एक किया , संबंध पुराना जोड़ेंगे।।……”अनंग”
( छ: )
” तुम्हारी क्या कीमत “
बेमौसम बरसात, तुम्हारी क्या कीमत।
होने वाली रात , तुम्हारी क्या कीमत।।
जब देखो तुम , हंसने- रोने लगते हो।
झूठे हैं जज्बात, तुम्हारी क्या कीमत।।
सोने की लंका का रावण, चला गया।
दिखा रहे औकात,तुम्हारी क्या कीमत।।
सच कहने वालों से,डरना सीखो अब।
आदर की है बात, तुम्हारी क्या कीमत।।
उगा रहे जो बीज , सृष्टि हैं -ब्रह्मा हैं।
तुम डाकू की जात,तुम्हारी क्या कीमत।।
असली नकली चेहरा,छुपता कहीं नहीं।
नजरों की सौगात , तुम्हारी क्या कीमत।।
क्या कर लोगे,पैसों वाली भीड़ लगाकर।
दिखावे की पांत , तुम्हारी क्या कीमत।।
चौपालों पर , गूंगे – अंधे – बहरे सब।
नकली है बारात,तुम्हारी क्या कीमत।।
ठग ना होते तो ,पहरे में क्यों रहते।
इतनी एहतियात,तुम्हारी क्या कीमत।।
महापुरुष की,गुरुजन की हरि भी सहते।
भृगु ने मारी लात , तुम्हारी क्या कीमत।।………”अनंग “

( सात )
” मन की अभिलाषा “…
जो अच्छा है,मैं उन सबका वरण करूं।
अच्छी बातों का सदैव,अनुसरण करूं।।
ततपर रहूं सदा ,चाहे जिसकी भी हो।
शोक और संताप,कष्ट का हरण करूं।।
अपना हृदय स्वतः ,निर्मल बन जाएगा।
जनहितकारी भाव जगा,आचरण करूं।।
कोई अनाथ रह जाए ना,इस धरती पर।
वंचित-शोषित जन का,पोषण-भरण करूं।।
नदियां प्यास बुझाने लायक , बन जाएं।
त्याज्य वस्तुओं का,बाहर ही क्षरण करूं।।
गौरवपूर्ण अतीत दबा , खंडहरों में।
ढूंढ-ढूंढकर उनका मैं,अनावरण करूं।।
वहम ,अहम ,लोभ, तृष्णा से दूर रहें।
हो जाऊं मैं शुद्ध , अंतःकरण करूं।।
नमन और वंदन , सदैव पूर्वजगण का।
कुछ भी करूं सदैव,उन्हें स्मरण करूं।।
स्वाभिमान की रक्षा में,मैं सफल रहूं।
वंदना पिता-माता के केवल चरण करूं।।…..”अनंग “
( आठ )
“भुने हुए आलू के खातिर“…
लुगरी ओढ़े कांप रहा है।
खूब व्यवस्था नाप रहा है।।
कब तक ठंडी रात बितेगी।
आसमान को ताक रहा है।।
खेत बचाने को पशुओं से।
दीवा-रात्रि वो हांफ रहा है।।
रामलला तुम कब आओगे।
गिन-गिन माला जाप रहा है।।
रखवाला बनकर वह बैठा।
बरसों से जो सांप रहा है।।
थाली छीन-छीनकर झूठा।
नोट रात-दिन छाप रहा है।।
भुने हुए आलू के खातिर।
बैठा बोरसी ताप रहा है।।
लौट गई बारात मरा जो।
बेटी का वह बाप रहा है।।
रिश्वत लेने को अधिकारी।
मातहतों को चांप रहा है।।
असुर बढ़ेंगे तुम आओगे।
शास्त्रों का आलाप रहा है।।…………”अनंग “
(नव )
“मुंह से आग उगलना होगा”…
“मुंह से आग उगलना होगा”
पूरा तो हर सपना होगा।
पर कांटों पर चलना होगा।।
सबके खातिर जीकर देखो।
कहीं तो कोई अपना होगा।।
चिंगारी हो निकलो बाहर।
बनकर आग दहकना होगा।।
आसमान पर छाना है तो।
बनकर चांद चमकना होगा।।
दीपक बाती बन जाओ तुम।
अंधेरों से लड़ना होगा।।
बैठे रहने से क्या होगा।
आगे -आगे बढ़ना होगा।।
काम बड़ा ना शूली चढ़ना।
जड़ से शूल कुचलना होगा।।
चुप रहने से मिट जाओगे।
मन से तुम्हें उबलना होगा।।
चट्टानों से कह दो जाकर।
अबतो तुम्हें पिघलना होगा।।
राजा अगर निरंकुश हो तो।
मुंह से आग उगलना होगा।।……….”अनंग “
(दस )
“जन्मभूमि वंदना “…
गांधिपुरी से गाजीपुर अब,यही तो ‘लहुरी काशी’ हैं।
वीर -सपूतों की धरती यह तपस्थली सन्यासी हैं।।
वेगवती गंगा निर्मल,कल कल निनाद कर बहती हैं।
धन्य ऋषि जमदग्नि कोप को,शिरोधार्य कर लेती हैं।
सर्वधर्म समभाव यहां पर , यहीं तो भारतवासी हैं।।
विश्वामित्र संग आए जब ,राम लखन इस धरती पर।
नल राजा ने विचरण की थी ,कथा सूत्र दमयंती पर।
पवहारी संग- साथ विवेकानंद रहे , त्रैमासी हैं।।
शेरपुर के वीर सपूतों ने , परचम फहराया था।
टैंकफूंक अब्दुलहमीद ने,पाक को धूल चटाया था।
भारत मां ये शीश चढ़ाने को, आतुर अभिलाषी हैं।।
गांधी,सुभाष,टैगोर यहां आए,जन-जन को जगा गए।
महासदन में गाजीपुर का गौबर ले , गहमरी गए।
बड़े -बड़े हैं गांव यहां के , गहमर में बल -राशि हैं।।
कामाख्या ,भुड़कुड़ा -तीर्थ , महाहर मौनी-धाम यहां।
राही मासूम,कुबेर,विवेकी,शिवप्रसाद का नाम यहां।
घाटों का यह नगर तीर्थ , नागा बाबा अविनाशी हैं।।
सूत्रधार- सन्यासी -सहजानंद , किसानों के नेता।
सीमा पर कितने जवान,कितने ही नेता अभिनेता।
उर्वर धरती पर कितने ही, नदियों की जल राशि हैं।। ……”अनंग “
( ग्यारह )
“लिखी-पढ़ी लड़कियां”…
पढ़ने जाने की जिद में अड़ी लड़कियां।
पंक्तियों में खड़ी वो बड़ी लड़कियां।।
कितनी सुंदर समझदार लगती हैं वे।
अपनी पुस्तक संभाले खड़ी लड़कियां।।
सांवले रंग की वो चोटियों में सजी।
संस्कृति को संभाले बढ़ी लड़कियां।।
अनगिनत बोझ ढोती हुई जिंदगी।
वे तिरस्कार सहती पड़ी लड़कियां।।
सर्वदा कुल के दीपक रहे सांवरे।
मर्यादा दो-कुल की कड़ी लड़कियां।।
जाहिलों छोड़ आधी आबादी हैं वे।
चौखटों बीच हरदम जड़ी लड़कियां।।
बलशाली हों,अफसर सी सुंदर लगें।
कंगन छोड़ बांधे घड़ी लड़कियां।।
अब वे सबला हैं,औकात में ही रहो।
खूबसूरत हैं,लिखी-पढ़ी लड़कियां।।………” अनंग “ब
( बारह )
” मत छेड़ो “…
मत छेड़ो, संग्राम अभी हो जाएगा।
बेमतलब ही नाम,अभी हो जाएगा।।
तेरे मन की , गहराई का पता नहीं।
बेमतलब बदनाम अभी हो जाएगा।।
उसके भोलेपन की तो मत पूछो तुम।
सचमुच ही गुलफाम अभी हो जाएगा।।
जाने कितना प्यार है उसकी आंखों में।
लखन लाल वो राम अभी हो जाएगा।।
बनने की है खास नहीं ,आदत उसको।
तेरे खातिर , आम अभी हो जाएगा।।
थोड़ा सा पुचकार उसे दो तुम केवल।
तेरा सारा काम अभी हो जाएगा।।
उसे बदलने की आदत ही नहीं रही।
प्यार करो नीलाम अभी हो जाएगा।।
दिलो जान न्योछावर कर देगा पल में।
छलो नहीं परशुराम अभी हो जाएगा।।
जनता है “अनंग”भारत की इसी तरह।
छेड़ दिए तो , जाम अभी हो जाएगा।।…….”अनंग “
लेखक परिचय… डॉ. प्रमोद कुमार श्रीवास्तव ‘अनंग ‘
प्रोफेसर हिंदी
स्वामी सहजानन्द पी जी कॉलेज, गाजीपुर(उ.प्र.)
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मो.न. 9450725810