रचनाकार

सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध, है यशोधरा के बुद्ध…

शब्द मेरे मीत…
डा. महिमा सिंह

…है क्यों यह बेहद जरूरी
हम क्यों नहीं मानते
होता वही जो विधाता ने रच दिया है, फिर क्यों तर्क और कुतर्क है जरूरी?
गौतम आए इस धरा पर
रचने नयी कहानी
यशोधरा ने धरा धैर्य और
सिद्धार्थ को दिया संबल
यशगान हुआ और
सिद्धार्थ बने बुद्ध ।
पूजता समूचा जग जिसे है!! महात्मा बुद्ध में छुपी
कही न कही यशोधरा
खुद जली और दिया
उजाला सिद्धार्थ को
हुई धन्य बोधगया की
धरा जहां पाया ज्ञान
और बन गए सिद्धार्थ
से महात्मा बुद्ध
हुआ नाथ बुद्ध के
ज्ञान का सार लिए
हुई धन्य सारनाथ की
रज, पवन जहां गूंजे उनके उपदेश प्रथम
सदियों पुरानी नीति कहती यही है हर बात अधूरी, हर कार्य अधूरा, जिसमें दोनों साथ नहीं। साथ सदा दोनों का कतिपय साथ रहना या साथ चलना ही नहीं होता ,वह साथ तब भी होता है जब दोनों अलग-अलग चलते हुए भी एक हो दोनों का त्याग असीम हो अनंत हो दोनों का लक्ष्य मंजिल को पाना हो । नए कीर्तिमान लिखना हो ,रचना हो या गढ़ना हो ।
तो फिर यह कैसे
नापते हम तुम
किसका त्याग बड़ा
और किसका त्याग छोटा ।
हो चाहे राम या जानकी
हो चाहे बुद्ध या यशोधरा
दोनों ने लिखी निज त्याग
और तपस्या की अनोखी
कहानी ।
क्यों ? फिर क्यों देखते हो उनको अलग-अलग ? वह है एक, एक ही है कार्य ।
है काज पूरा तभी
जब दोनों की ही आहुति
यज्ञ में हो समर्पित।
इस यज्ञ में तपकर ही मिले
जग को राम से मर्यादा पुरुषोत्तम राम ।
सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध ।
है यशोधरा के बुद्ध
है जानकी के राम
नारी है सदा से संबल
अपने पुरुष की
कभी मुखर हो गई
तो कभी प्रखर हो गई
या तो मूक सहचरी ।
दीया यही संदेश
जगत को लक्ष्य है अगर पाना नवीन कुछ निर्मित है अगर करना, तो त्याग जरूरी है, निज स्वार्थ, निज सुख की आहुति
इस यज्ञ में। इसलिए तुम समझो तुम जानो यशोधरा उतनी ही बुध के लिए जरूरी है जितना गौतम बुध के लिए यशोधरा।
है !अधूरी यह कहानी
एक दूजे के बिना ।
यह जानते थे दोनों बस फर्क इतना की राह पर एक दूजे का हाथ पकड़ के ना चल कर वह चले तन्हा तन्हा और किया जग के लिए महान त्याग।
है नमन दोनो को ही
जिनके बिना है अधूरी
यह कहानी बात करो ,
तो करो यह कि
ना जाए त्याग व्यर्थ
उन दोनों का ।
आओ अपनाएं उनके महान उपदेश और बनाए जग को सुंदर से सुंदर तम।।

लेखिका लखनऊ की निवासी हैं।

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