इस जन्म में नहीं ….जन्मों जन्मों तक

@ शब्द मसीहा केदारनाथ…

“अरे! कैसे अजीब दोस्त हो यार? कुछ मालूम तो रखना चाहिए दोस्तों के बारे में ।” वह अपने दोस्त पर झिड़कते हुए बोला।

“तू मेरा इतना पुराना दोस्त है , आज तुझे क्या हो गया और तू किसकी बात कर रहा है यार?” राजेश ने पूछा।

“राजे! मुझसे तो कुछ भी नहीं छिपा है । तुम्हें मधु से प्रेम था , भले फेस बुक की दोस्ती थी , मगर कुछ तो खास था तुम्हारे बीच ।” दोस्त बोला।

“हाँ, हम बहुत अच्छे दोस्त रहे । मैंने उसे कुछ समझाया तो उसने मुझे ख़ुद से अलग कर दिया । फोन ब्लॉक किया या फिर बदल लिया , ये भी मुझे पता नहीं । मैं कई महीनों से संवाद शून्य हूँ ।” राजेश बोला।

“मतलब ये की तगड़ी वाली गांठ है …हम्म ।”

“पता नहीं, सही कहना भी कई बार दोस्तों को बुरा लगता है। जबकि मैं तो उसे खुश ही देखना चाहता था।” राजेश बोला।

“कुछ पता भी है तुझे ? साले ! दोस्त कहता है तो कुछ खबर भी रखा कर । अबे! ब्लॉक कर देने से क्या दोस्ती खत्म हो जाती है ? औरत है, रही होगी कोई मजबूरी उसकी । वो कोई मर्द तो है नहीं की उस पर कोई कोई बँधन नहीं, औरत के कंधे पर तो कई जुए रहते हैं , और उस पर वह विधवा थी । ये बात तो सोचता तू ?” दोस्त बोला ।

“सब जानता हूँ मैं। पर हुआ क्या है उसे ?” राजेश ने पूछा।

“अस्पताल में है, कोई ऑपरेशन होना है। कल उसकी पोस्ट पढ़ी तो यहाँ चला आया तुझे बताने । मानता हूँ कि कभी मिले नहीं …. पर प्यार तो था न तुम्हारा ?” दोस्त बोला।

“पागल है क्या ? अबे ! पोस्टरों से भी भला कोई प्यार करता है? पसंद की बात सिर्फ इतनी है कि उसमें एक अच्छी दोस्त देखता था , जिससे बात कर सकूँ और सुख-दुख बाँट सकूँ। पर उसे समझाना पसंद नहीं था और मैं मजबूर कि इसका कोई बुरा न हो जाय । और यही हमारे बीच झगड़े का कारण है।”

“पर अब तू क्या करेगा ?”

“अबे! झगड़ा क्या करेगा ? उसका नंबर मेरे पास है, उसे मेरी जरूरत नहीं है , पर पैसे की जरूरत सबको होती है । कल ही पेंशन के पैसे आए हैं । तू तो दोस्त है यार , असा कर बीस हजार उसे अपने फोन से भेज दे । मैं तुझे नकद दे रहा हूँ ।” राजेश बोला।

“अच्छा …. तो मामला यहाँ तक भी है । चल नंबर बता ?”

“नंबर नहीं है । तू नंबर मांग उससे और पहले मुझे अनफ्रेंड कर।”

“साले! वो नफरत करती है और तू पैसे भेज रहा है ? पागल है क्या तू?” दोस्त आश्चर्य से बोला । और उसने मेसेंजर में नंबर कि रिक्वेस्ट की । कुछ देर बाद नंबर आ गया था।

“देख ले …. बीस हजार कम नहीं होते । जब तुझे पसंद ही नहीं करती तो पैसे क्यों भेज रहा है ? ज्यादा हैं तो मुझे दे दे भाई।” दोस्त हँसते हुए बोला।

“तू नहीं समझेगा रे । प्यार का बोझ सहना भी मुश्किल हो जाता है , जिसे कभी प्यार मिला न हो । बस उसने इतना ही कहा कि मैं विधवा हूँ और मुझे प्यार का हक़ नहीं है। तू पैसे भेज उसे ।” राजेश ने अलमारी से पैसे निकालकर देते हुए कहा ।

कुछ देर बाद पैसे भेज दिये और वे दोनों चाय पीने लगे । इसी बीच राजेश का फोन बजने लगा । कोई अंजान नंबर था ।

“हैलो! कौन बोल रहा है ?”

“अभी मम्मी को बीस हजार आपने भेजे हैं न? मम्मी आपसे बात करना चाहती हैं।” और फोन पर दूसरी आवाज़ सुनाई दी – “राजेश! क्यों करते हो ऐसा ? तुम नहीं जानते शायद की प्यार भी बहुत तकलीफ़ देता है । दोस्त से देवता मत बनो यार …..देवता पत्थर हो जाते हैं ….. मुझे माफ कर देना । बिना कहे तो भगवान भी नहीं सुनता ….और तुम तो नकारे हुए दोस्त हो ।” उधर से मधु की आवाज़ थी ।

“हाँ, नकारा हुआ कहो या नाकारा कहो, हूँ तो दोस्त ही । और दोस्ती आसान चीज नहीं है। पहले ठीक हो जा , फिर तुझसे बहुत झगड़ा करना है। विटामिन , फूट और जो तुझे खाना है , खा कर तगड़ी हो जा जल्दी से । अब की बार दोस्त बनी तो ब्लॉक मैं ही करूँगा तुझे।” राजेश बोला।

“अब तो बाल भी पक गए , ऐसा करते अच्छे लगोगे तुम ?”

“तुम्हें अच्छा लगा होगा न , तभी तो संबंध तोड़ दिया तुमने । नंबर ब्लॉक कर दिया । अपना दुख जो नहीं बाँट सकती , उससे मैं कभी दोस्ती नहीं कर सकता । ठीक हो जा , पूरी दुश्मनी निभाऊंगा तुझसे बदला लूँगा अपना …गिन गिन के ।” राजेश अपने आंसुओं को आस्तीन से पोंछते हुए बोला।

“तुम्हारी आवाज़ काँप रही है। रोना मत , अगर मैं मर जाऊँ । बस यही तो मैं नहीं चाहती थी । तू नहीं समझोगे कि प्यार के शब्दों की मार कैसे पड़ती है इस दिल पर । तुम्हारी हर मदद मुझे छोटा और छोटा करती जाती थी ….इसलिए …. ।”

“कान के नीचे जमाकर दूँगा अभी ।” राजेश गुस्से से बोला।

“तो आ जाओ न ….. बहुत पीट लिया ख़ुद को ….इस बहाने ही सही , तुम सामने तो आओगे । सकून से जी सकूँगी मैं ।”

“भाड़ में जा ….ज़िंदा रह । मैं नहीं आता । पहले ठीक हो , मुझे बहुत लड़ना है तुझसे । इस जन्म में नहीं ….जन्मों जन्मों तक। ” और राजेश बुरी तरह से बिलखने लगा ।

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