चर्चा में

है हिम्मत तो… कल्पनाथ बनो…

(आशीष कुमार गुप्ता)

कल्पनाओं में ‘कल्पनाथ’ बनने वालों,

हकीकत से कब रूबरू होगे,

उनके सपने बेचकर,

अपने सपने सजाने वालों,

उनके पद चिन्हों पर चलना,

ऐसे कैसे ​सीख पाओगे,

आसान नहीं है कल्पनाथ बनना ?

तपना पड़ता है, गिर-गिर कर चलना पड़ता है,

धूप, छांव और बारिश की परवाह किये बिना,

हर कीमत पर बढ़ना पड़ता है।

सिर्फ कल्पनाओं में कल्पनाथ तो बन सकते हो,

लेकिन धरती पुत्र कल्पनाथ बनने के लिए,

हर मुश्किल से लड़ना पड़ता है।

राजनीति की रोटी सेंकने के लिए,

कल्पनाथ के सपनों को धूमिल मत करो,

है हिम्मत तो कल्पनाथ बनो।

कल्पनाथ के अधूरे सपनों का,

नये सिरे से शंखनाद करो,

करो कल्पनाओं से परे कल्पना,

है हिम्मत तो… कल्पनाथ बनो…

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