लद्यु कथा – अंतर्मन पाकिस्तानी
केदारनाथ (शब्द मसीहा) की कलम से…
ठंडी हवा बह रही थी जो हाड़ों को भेद रही थी . पूरा कस्बा ही उमड़ उठा था जैसे . शहीद के शव को उसके गाँव लाया जा रहा था .सभी लोग भावुक थे . घर के और सम्बन्धी लोग मातम कर रहे थे .
“अरे! जरा यहाँ पर कुर्सियां और कुछ लोगों के बैठने का इंतजाम करो . हमारे नेता जी आ रहे हैं .”
कुछ लोग आनन्फा-नन में नेता जी के लिए कुर्सियाँ और दूसरे इंतजाम करने लगे .
“भारत माता की जय ….वन्दे मातरम .” हवाओं में नारे गूंजने लगे. लोगों का कोलाहल अचानक से बढ़ गया था . ऐसा लगता था कि शव पहुँच गया था और लोग नारे लगा रहे थे .
इसी समय नेता जी भी अपने चमचों के दल बल के साथ पहुँच गये . चमचों ने उनके लिए पहले ही इंतजाम किया हुआ था . शव को उतारा जाने लगा तो नेता जी भी आगे बढे . केमरे नेता जी पर फोकस किये हुए थे. धडाधड क्लिक होने लगे . नेताजी खुद को राष्ट्रभक्त साबित करने का कोई मौका नहीं छोडना चाहते थे . आखिर चुनाव जो आ रहे थे . शव को उतार कर दर्शनों के लिए चौक में रख दिया गया .
लोग आते और नेता जी को सम्मान देते फिर शहीद की तरफ बढ़ जाते . ऐसा लग रहा था जैसे नेता जी ही शहीद हुए हों. नेता जी कुर्सी पर शान से बैठे थे अपना अधिकार जमाये . मिडिया के लोग उनकी बाइट्स ले रहे थे . पाकिस्तान को कड़ा सबक देने की बातें कर रहे थे . ईंट का जवाब पत्थर से दिये जाने का जुमला बार-बार बोला जा रहा था .
“साहब ! ये हैं शहीद के पिता जी .”
“आप घबराइए मत . हम सब आपके साथ हैं . आपके बेटे की शहादत व्यर्थ नहीं जायेगी . आप हमारे ऑफिस आइये हम आपकी पूरी मदद करेंगे !”
“आप और मदद करेंगे ! कितने चक्कर लगाए हैं मैंने आपके साइन के लिए . आपके चमचे पैसा मांगते हैं . आप गाँव को सड़क देना चाहते थे ..कहाँ है सड़क ? कहाँ है पानी ? कहाँ बना स्कूल ?”
“वो हम दिन रात लगे हुए हैं मगर विरोधी लोग हर बार टांग अड़ा देते हैं पर आप भरोसा रखिये जल्द ये काम पूरा होगा . हम घोषणा करते हैं कि शहीद स्मारक भी बनेगा आप के बेटे के नाम का उनकी कुर्बानी बेकार नहीं जायेगी .”
“बस कीजिये ! वादे…वादे और सिर्फ़ वादे . आपका कौन मरा है ? खोया हमने है…अपना बेटा . आप यहाँ से ये मजमा हटाइये …कम से कम शहीद और शहादत का शो मत बनाइये . आपको वोट चाहियें …लोग दे ही देंगे …एक चोर चुनने की मजबूरी जो है सब की . ”
नेता जी अंदर तक तिलमिला उठे थे . अचानक से अंतर्मन पाकिस्तानी हो गया था उनका।
(लेखक दिल्ली रेलवे विभाग में इंजीनियर है)