राष्ट्रीय कवि बेबाक जौनपुरी की कविता : कुत्ते और इंसान की सोच
एक आदमी ने दूसरे आदमी को,
कुत्ते के सामने कुत्ता कहकर बुलाया!
कुत्ते को यह बात पसंद नही आई,
वह कुत्ता बोलने वाले आदमी पर गुर्राया!!
मानो कह रहा हो साहब खाल में,
रह कर बात कीजिये!
अपने शब्दों को अभी तुरंत,
वापिस लीजिये!!
क्षमा कीजिये मुझे आपकी बात पर,
घनघोर आपत्ति है!
आदमी को आदमी रहने दीजिये,
कुत्ता नाम हमारी सम्पत्ति है!
हम जिसका खाते है,
उसके आगे दुम भी हिलाते है!
अहसान मानते है मालिक का,
उसके नमक का कर्ज चुकाते है!
लेकिन तुम मनुष्य कर्म से,
सच कहूं तो खोटे हो!
कुत्तो से तुलना छी:तुम हरकतें देखो,
हम कुत्तो से कितने छोटे हो?
हमारे दो चार गुण अगर,
मनुष्य तुम सीख जाते!
सच भौंकता हूं तुम भी,
सच बोलना सीख जाते!
सुनो हम पहरेदार है,
वतन के चोर नही है!
कचरा खा लेते है जीने के लिए,
पर साहब हम घूसखोर नही है!
हमारे समाज में उसूल की,
आज भी पुरातन कीमत है!
कुत्ते भले साहब पर,
इंसानियत तुमसे अधिक जीवित है!!
इंसानियत तुमसे अधिक जीवित है!!
राष्ट्रीय कवि बेबाक जौनपुरी जी
दिल्ली (भारत)
प्रस्तुति-बेख़बर देहलवी