अपना जिला

मेरी कलम से… आनन्द कुमार

मित्र दिसम्बर,तुम हो तो,
मैं हूं और मेरा स्वागत है…

क्या कहा, मैं बदल रही हूं,
नहीं तो, ऐसा तो कुछ भी नहीं,
तू दिसंबर तो मैं जनवरी,
रिश्ता काफी नजदीक का है,
बस दूरी है है तो साल की।
तुम बिन कैसे रह सकती मैं,
तुम बिन कैसे जी सकती मैं,
तू अंत है तो मैं शुरुआत हूं,
तू प्रेम है, मै जज्बात हूं।
यह मायावी दुनिया तेरे जाने,
और मेरे आने की बात करती है,
उसके बाद फरवरी, मार्च, अप्रैल,
मई, जून व जुलाई में उलझती है।
थोड़ा सम्भलती है अगस्त, सितम्बर,
अक्टूबर नवम्बर में मचलती है।
जब आता है माह-ए दिसम्बर,
आकर वहीं अटकती है।
सच कहूं, हम-तुम इतने खुशनसीब हैं कि,
साल में दो बार खूब याद किये जाते हैं।
एक बार जब मेरे आने की बेचैनी होती,
दूसरी बार जब तेरे जाने की बेताबी होती।
सच कहूं तो दिसम्बर,
भले ही मेरे आने की खुशिया है।
लेकिन मेरा वंदन व अभिनन्दन,
नववर्ष की पूर्व संध्या पर ही किया जाता है।
उमंग-तरंग व जोश से डूबे लोग,
तेरे द्वार पर कदम रख, मेरे आंगन आते हैं।
मैं तो बस माध्यम होता हूं, लेकिन,
तारीख में गवाह तुम बनते हो।
इसलिए मित्र दिसम्बर, तुम हो तो,
मैं हूं और मेरा स्वागत है,
तुम हो तो नववर्ष है, जनवरी है,
तुम हो तो हर साल ये खुशियां है।।

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