देर तक छठ गीत गुनगुनाते रहे लोग
नदवासराय/मऊ। शरद ऋतु का आगमन, धूप में गुनने-नमें एहसासों के बीच मेला स्थित देवताल व सूर्यकण्ड में घाटों पर बढ़ती चहल-पहल के बीच बाजों के थाप पर बजते छठ के गीत। संगीत एवं वाद्य के स्वर वातावरण को गुंजायमान कर दर्शको को बरबस अपनी ओर खींच रहे थे। महिला कंठ से निससृत हो यह लोक संगीत ‘हे छठी मैया हमहूं अरधिया देवै’।‘कांचे रे बॉस के बहंगीयावा वहगिया लचकत जाय’। ‘सोनेला घाट छठी माई के छठी माई के लागल दरबार’ प्रमुख आकर्षण में है। घाट पर जाते समय तथा एवं वहां से लौटते समय उन गीतों के स्वर से सम्पूर्ण परिवेष अद्भुत होकर लोगों के मन-प्राणों को प्रभावित कर रहा था। एक लोकगीत की छठा देखे-
क्हवां की सूरज के जनमवां, कहवां ही होखे ला अंजोर। स्वर्ग में ही सूरज के जनमवा, कुरु खेते होखे ला अंजोर।