खेल-खिलाड़ी

अब पढ़ने से नहीं खेलने से बनेंगे नवाब

पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे होगे खराब. बिल्कुल नई पीढ़ी को छोड़े दें तो बहुत कम ही लोग ऐसे होंगे. जिन्होंने अपनों से बड़ों के मुंह से ये कहावत नहीं सुनी होगी. या फिर अपनों से छोटे को ये कहावत नहीं सुनाई होगी. हमारे देश में खेलने को बहुत लंबे समय से पाप समझा जाता रहा है. ऐसा लगता है कि खेलना कोई गुनाह है. अगर गलती से किसी बच्चे ने पढ़ाई से ज्यादा खेल में रूचि दिखा दी तो उसकी तो शामत है. भईया से लेकर दीदी और अंकल, मम्मी, पापा, दादा, दादी सब एक साथ पिल पड़ते हैं. हद तो तब हो जाती है. जब पड़ोसी आग में घी डालने का काम कर देते हैं. और टीचर भी पढ़ाई में ही उज्जवल भविष्य के सपने दिखाते हैं.

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