रचनाकार

शब्द मसीहा की लद्युकथा : किस ऑफ गॉड

फोटो साभार सोशल मीडिया

@ शब्द मसीहा केदारनाथ…

अंजना के पति अपने शिप पर दूर समंदर के बीच हिचकोले खा रहे थे। बेटी सुरम्या की तबीयत अचानक से खराब होने लगी थी। अंजना कॉन्वेंट की पढ़ी लिखी थी। उसने ऋषि से प्रेम विवाह किया था। अंजना को यह भी मालूम था कि उसका पति उसके साथ लंबे समय तक नहीं रहेगा, और उसका काम ऐसा है कि उसे ज्यादा समय घर से बाहर ही रहना पड़ेगा।

शादी के समय दोनों के बीच में यह बात तय हो गई थी अंजना अपने परिवार के साथ और अपनी ससुराल दोनों में ही रहेगी अपनी सुविधा के अनुसार ताकि दोनों परिवारों की देखभाल भी हो सके, और दोनों परिवारों का प्रेम भी यथावत बना रहे। अंजना के ससुर भी नेवी ऑफिसर थे, और रिटायर होने के बाद उन्होंने अपनी पत्नी के साथ ही रहने का निर्णय लिया था। अक्सर समंदर के बीच रहते हुए उनको अकेलापन लगता था और उस अकेलेपन को दूर करने के लिए उन्होंने संगीत का सहारा लिया था। अपने आप को फिट रखने के लिए वह योगाभ्यास और अपने मनपसंद गानों पर नृत्य भी किया करते थे।

न जाने कौन-सी गलतफहमी पैदा हो गई थी उनके बीच में कि अंजना ने अपने ही घर में रहना शुरू कर दिया। इधर वे दोनों पति-पत्नी अकेले रह गए ससुराल में । दोनों पति-पत्नी के बीच में बहुत गहरा प्रेम था, यही कारण था कि अंजना के ससुर अपनी पत्नी को अपने से दूर नहीं होने देना चाहते थे। वह अक्सर अपनी पत्नी को किसी प्रेमिका की तरह बार-बार छेड़ते थे, उसके साथ हँसी मजाक करते थे, और जब वह खाना भी बना रही होती थी, तब भी उसके साथ रसोई में ही उनका हाथ बँटाते थे। अंजना को उनकी यह हरकतें अच्छी नहीं लगती थीं। उसे लगता था कि जैसे उसके सास-ससुर उसके अकेलेपन का मजाक उड़ा रहे हैं। उसने अपने मन के अंदर इस गाँठ को बहुत ही गहराई से बांध लिया था। इस बात ने ही उसे अलग रहने पर मजबूर कर दिया था।

समय गुजरता रहा और अंजना भी एक बेटी की माँ बनी। ऋषि जब भी मिलने के लिए आता तो वह अपने माँ बाप से भी मिलता और पत्नी के साथ रहकर अपना समय गुजारता। उसने काफी कोशिश भी की कि अंजना उस गलतफहमी से बाहर निकले, लेकिन अंजना उस गलतफहमी से बाहर निकलना ही नहीं चाहती थी जैसे। साल 2019 आया तो अपने साथ कई परेशानियां भी लेकर आया। कोरोना अपने चरम पर था, और इसी बीच ऋषि की माँ की तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गई। पत्नी को अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा और कोरोना उन्हें निगल गया। पत्नी की मौत के बाद ऋषि के पिता जी के पास घर में रुकने का कोई कारण नहीं था, वह अपने घर को छोड़कर महीनों महीनों के लिए पहाड़ों में निकल जाते, जहाँ भी उन्हें कोई साधु संत मिलता उसके साथ रहने लगते। उनके हालात और हुलिए को देख कर कोई कह नहीं सकता था कि यह व्यक्ति कभी नेवी में एक बड़ा अफसर भी रहा होगा। दूर से देखने पर तो बिल्कुल ऐसा प्रतीत होता था जैसे कि कोई लंबा तगड़ा भिखारी हो।

शरीर पर बेतरतीब से पहने हुए कपड़े, खुले बाल, कई कई दिनों तक न नहाना, न धुले हुए कपड़े पहनना। कानों के ऊपर एक हेडफोन चढ़ा होता था और उसमें कोई न कोई गीत बज रहा होता था। जहाँ भी दिल करता कभी पेड़ को पकड़कर गाने लगाते तो कभी पेड़ के साथ नाचने लगते। राह चलते किसी के बच्चे को पकड़ कर उसके सिर के ऊपर हाथ फिरा देते या कभी उसे चूमने लगते। कई बार लोगों ने बुरा भला भी कहा उन्हें लेकिन वह किसी की बात का बुरा नहीं मानते और हमेशा मुस्कुराते हुए वहाँ से हाथ जोड़कर चले जाते। किसी से भी उलझने में जैसे उन्हें बहुत बुरा लगता था। एक दो बार लोगों ने उनके ऊपर हाथ भी उठा दिया था, लेकिन उन्होंने कभी प्रतिकार नहीं किया था।

अंजना की बेटी की तबीयत खराब हुई और घर वालों ने उसे अस्पताल में शिफ्ट करने के लिए कहा। उनके फैमिली डॉक्टर ने भी यही कहा था कि बेटी को बड़े अस्पताल में शिफ्ट कर दिया जाय क्योंकि घर के अंदर इलाज की सारी सुविधाएं जुटाना मुश्किल होगा। अंजना अपनी बेटी को अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करती थी। जब बेटी को कोविड वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया, तब अंजना को भी उसे बाहर से ही देखने की इजाजत मिली थी। लेकिन जब बेटी की तबीयत ज्यादा ही खराब होने लगी तब उसे अस्पताल के आई सी यू के अंदर नहीं आने दिया जाता था। वह केवल व्हाट्सएप पर ही अपनी बेटी को बेड पर लेटे हुए देखती थी वार्ड अटेंडेंट की मदद से।

जब अंजना बेटी सुरम्या की इस बीमारी से टूटने लगी तब उसने अपने पति ऋषि को फोन किया।

“ऋषि! हमारी बेटी की तबीयत बहुत खराब है। उसे अस्पताल में भर्ती कराया हुआ है। उसे सांस लेने में बहुत ज्यादा तकलीफ हो रही है। मैं नहीं चाहती कि मैं तुम्हें परेशान करूं लेकिन अब मेरी हिम्मत जवाब दे रही है। अगर हो सके तो तुम जल्दी से वापस लौट आओ।”

“ओ के। घबराने की कोई बात नहीं है, हमारी शिप के ऊपर भी कुछ लोगों को कोरोना हुआ था। अभी हमें लैंड पर पहुंचने में 15 से 20 दिन का समय लग सकता है। मैं वहाँ से हवाई जहाज से आने की कोशिश करता हूँ। ईश्वर पर भरोसा रखो, बेटी को कुछ भी नहीं होगा।” ऋषि ने कहा।

“अब मैं यहाँ पर बिल्कुल अकेली हूँ। तुम तो जानते ही हो कि मम्मी और पापा की तबीयत भी आजकल ठीक नहीं रहती है, इसलिए उनकी देखभाल का काम भी मुझे ही संभालना है।” अंजना ने कहा।

“मेरे पापा की कोई खबर? क्या उन्होंने कभी तुम्हें फोन किया?” ऋषि ने पूछा।

“नहीं, मम्मी की डेथ के बाद उन्होंने शायद अपने पास फोन रखना ही छोड़ दिया है। मैंने कई बार कोशिश की थी। लेकिन जब मैं उनसे मिलने के लिए घर पर गई तो घर पर ताला लगा हुआ था। पड़ोसियों ने ही बताया था कि अब उनकी हालत पागलों जैसी हो गई है। कहीं भी किसी को भी पकड़ कर उसके बच्चे को चूमने लगते हैं। लेकिन एक अजीब कहानी सी वाली बात थी, जो मैं तुम्हें बताना चाहती हूँ।” अंजना ने कहा।

“इस से अजीब कहानी और बड़ी क्या बात हो सकती है कि मेरे और तुम्हारे रहने के बावजूद भी मेरे पिताजी पागलों की तरह अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं।” ऋषि ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा।

“नहीं, यह बात बिल्कुल अलग है। जहाँ तुम्हारा घर है उसके पास ही एक कच्ची बस्ती है। वहाँ पर तुम्हारे यहाँ काम करने वाली सुशीलाबाई रहती है। उनकी पोती को मेनिनजाइटिस की शिकायत हो गई थी, जिसकी वजह से उनकी पोती का एक हाथ और पैर खराब हो गया था। बहुत सारे इलाज के बाद भी वह लड़की ठीक नहीं हो रही थी। डॉक्टरों ने भी मना कर दिया था कि उसके शरीर का यह हिस्सा अब पहले की तरह कभी भी काम नहीं कर पाएगा। दिमाग का जो हिस्सा शरीर के मूवमेंट को कंट्रोल करता है वह खराब हो चुका है। उसे पूरी जिंदगी इसी तरह से अपाहिज रहना होगा।”

” हाँ, मुझे याद है याद है। सुशीलाबाई हमारे यहाँ काम करती थी। उन्होंने हमारे यहाँ बहुत साल काम किया था और बहुत ही अच्छी थीं। जब उनसे काम नहीं हो पाता था तब एक रोज पापा ने ही उनको घर में काम करने से मना कर दिया था, और उनको कई साल की सैलरी एक साथ ही दे दी थी यह कहते हुए कि अब तुम्हारा शरीर काम करने लायक नहीं रहा है। अपने मन को और अपने शरीर को एक हो जाने दो। मन मारकर काम करना मुझे पसंद नहीं है। मेरे पापा उसे अपनी बड़ी बहन की तरह मानते थे। जब पापा अपनी ड्यूटी पर होते थे, तब मेरी माँ की सबसे अच्छी दोस्त सुशीलाबाई ही होती थी। मेरी माँ को वह हमेशा बेटी ही कहती थी। माँ भी उनकी बहुत इज्जत करती थी।” ऋषि ने बताया।

” हाँ , उन्हीं सुशीलाबाइ की पोती की बात बता रही हूँ। एक रोज पापा जी घूमते हुए वहाँ पहुँच गए थे। जब उन्हें पता लगा कि सुशीलाबाई की पोती को जिंदगीभर ऐसे ही रहना पड़ेगा तब उनकी पोती को गोद में लेकर वह बहुत देर तक रोते रहे थे। फिर अपने पागलपन में न जाने उन्हें क्या हुआ था कि उन्होंने अपने आंसुओं को अपनी हथेलियों पर लेकर उसके सिर को सहलाना और भिगोना शुरू कर दिया था। उसके सिर को अपने हाथों में लेकर न जाने क्या-क्या बड़बड़ाते रहे थे। और जब वे वहाँ से उठकर गए तब …… ।” अंजना कहते हुए रुक गई थी।

“हाँ, बताओ तब क्या हुआ फिर, जब पापा वहाँ से उठकर गए तो क्या हुआ उस लड़की के साथ?” ऋषि ने पूछा।

“पापा के हाथों से न जाने उस लड़की को क्या मिला था कि जब वे वहाँ से जाने लगे तब वह लड़की अपने दोनों पैरों पर खड़े होकर उनके पीछे दौड़ने लगी थी। शुशिलाबाई, उसकी बहू और बेटा तीनों ही हैरान थे। जिस लड़की को मेडिकल साइंस ने मना कर दिया था कि वह कभी भी अपने पैरों पर चल नहीं पाएगी, वह लड़की पापा के पीछे दौड़ रही थी।” अंजना कहते हुए सुबकने लगी थी।

“तुम मुझे यह कहानी क्यों सुना रही हो ? तुम्ही ने तो कहा था कि पापा पागल हो गए हैं। मुझे मालूम है कि मेरे पापा आध्यात्मिक रूप से बहुत अलग तरह के इंसान हैं। उन्हें बहुत पहले से ही जानवरों और पेड़-पौधों से बेहद लगाव था। वह हमेशा कहा करते थे कि इन सब में भी जान है, अगर हम इन्हें अपना दोस्त बना लेते हैं तो हमारी दुनिया और खूबसूरत हो सकती है। बेशक मेरे पापा फौज में थे लेकिन उन्हें खून खराबे से हमेशा परहेज होता था। उनकी एक आदत और भी है जो तुम्हें नहीं मालूम। मेरे पापा को अपनी जेब में पैसे बहुत बुरे लगते थे। वह अक्सर कहते थे कि उनका टिकट चेक करने के लिए कोई नहीं आएगा, उन को घूमने के लिए पैसे के टिकट की जरूरत नहीं है। वह अपनी जिंदगी के कोपैसेंजर कहीं भी ढूंढ सकते हैं। उन्होंने अपने जीने के नियम हमेशा अपनी तरह से ही बनाए, लेकिन मेरी माँ को उनसे कभी कोई शिकायत नहीं होती थी। माँ भी अक्सर कहा करती थी कि तेरे पापा को पता नहीं मेरे मन की बात कैसे पता चल जाती है। माँ और पापा गार्डन में घंटों अकेले बैठे रहते और एक-दूसरे को देख कर मुस्कुराते और हंसते भी थे, मगर उनके बीच में कोई बात नहीं होती थी। पता नहीं कैसे पापा माँ के मन की बात को जान लेते थे।” ऋषि ने बताया।

“पता नहीं क्यों तुम्हारी बातों पर मुझे भरोसा नहीं हो रहा है। उनका जो फोन नंबर मेरे पास था मैंने कई बार कोशिश की कि मैं उस नंबर पर उनसे बात कर सकूं, लेकिन मेरी बात नहीं हो पाई।” अंजना ने ऋषि को बताया।

“तुम एक काम करो।”

“बताओ मुझे क्या करना है?”

“पापा की कोई तस्वीर तुम्हारे पास है?”

“हाँ , हमारी शादी के एल्बम में पापा की तस्वीरें हैं। बताओ उसका क्या करना है?” अंजना ने पूछा।

“उनकी तस्वीर को एल्बम से बाहर निकालो और पूजा घर में रख दो। उसके सामने बैठकर उनसे बात करो। पापा को बताओ कि उनकी पोती की तबीयत ठीक नहीं है। कम से कम दिन में तीन बार ऐसा ही करो। मुझे पूरा भरोसा है कि पापा पोती के पास पहुंचने की कोशिश करेंगे। ” ऋषि ने कहा।

“क्या फालतू की बातें कर रहे हो, ऐसा भला कैसे हो सकता है? उनके पास ऐसी कौन सी चीज है जो मेरे यहाँ बोलने से ही मेरी आवाज को सुन लेंगे?” अंजना ने आश्चर्य से कहा।

“जब तक तुम्हारे सामने यह बात साबित नहीं हो जाती, तुम इस पर विश्वास नहीं कर सकोगी। और इसका कारण यह है कि पापा ने मुझे पहले ही बता दिया है कि मेरी बेटी की तबीयत ठीक नहीं है।” ऋषि ने अंजना को बताया।

“तो क्या उन्होंने तुम्हें फोन किया था?” अंजना ने पूछा।

“नहीं, उन्होंने मुझे फोन नहीं किया था। जब मैं सोया हुआ था, तब मैंने महसूस किया था कि पापा मेरे पास ही बैठे हुए हैं और मुझे वापस लौट जाने के लिए कह रहे हैं। उन्होंने ही मुझे बताया कि मेरी बेटी मुझे बहुत याद कर रही है। मैंने पापा से पूछा भी था कि क्या मेरी बेटी का टिकट खत्म हो गया है, तो पापा ने हँसते हुए कहा था कि तुम्हारी बेटी को अभी बहुत लंबा जीना है, मेरे साथ उसे खेलना है अभी। तुम्हारी पत्नी को तुम्हारी जरूरत है।” ऋषि ने अंजना को अपने सपने के बारे में बताया।

“ऐसा कैसे हो सकता है? मुझे तो बिल्कुल भी भरोसा नहीं हो रहा है कि उन्होंने तुम्हें फोन भी नहीं किया और सारी बात भी बता दी जबकि पापा जी को मैंने कभी भी अपनी तरफ से कुछ भी नहीं बताया है। ऐसा होना नामुमकिन है….एकदम इम्पॉसिबल।” अंजना आश्चर्य से बोली।

“मैंने कहा न, तुम इस बात को नहीं समझ पाओगी, जैसा मैंने कहा है तुमसे, तुम वैसा ही करो। मैं भी कोशिश करता हूँ। हो सकता है पापा तक हमारी बात पहुंच जाय।” ऋषि ने अंजना को समझाते हुए भरोसा दिलाया।

” तुम कह रहे हो तो मैं यह भी करती हूँ, लेकिन मुझे ऐसा करना बेवकूफी लगता है।”

अचानक से फोन कट गया था। अंजना ने कई बार फोन लगाने की कोशिश की, लेकिन उसका फोन दोबारा नहीं लगा। हारकर अंजना ने अपनी शादी के एल्बम को निकाला और उसमें से पापा जी की फोटो को निकाल कर अपने पूजा घर में रख दिया। वह भगवान के सामने अपनी बेटी की सलामती की दुआ माँगने लगी। अपने ससुर की तस्वीर को देखते हुए मन ही मन उसने उनसे लौट आने की प्रार्थना की, और बताया कि आपकी पोती की तबीयत ठीक नहीं है।

उधर अस्पताल में अंजना की बेटी सुरम्या अपने बेड पर लेटी हुई थी। उसके चेहरे पर ऑक्सीजन मास्क चढ़ा हुआ था। उसके सिरहाने पर लगा हुआ मॉनिटर उसके दिल की धड़कन, उसका बी पी और शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा को दर्शा रहा था। और भी दूसरे बेड के ऊपर मरीज लेटे हुए थे। बाहर गहरा सन्नाटा छाया हुआ था। उस सन्नाटे को चीरती हुई जब कोई एंबुलेंस गाड़ी आती थी तब इस कोविड वार्ड की अटेंडेंट की आँख खुल जाती थी। वार्ड को उसने अंदर से बंद किया हुआ था और चाबी उसकी टेबल पर रखी हुई थी।

कुछ देर पहले ही बाहर से कोई एंबुलेंस गई थी, शायद किसी मरीज को लेने के लिए। वार्ड अटेंडेंट की उस एंबुलेंस की आवाज़ से नींद खुल गई थी। जब उसने वार्ड में अपनी नजर दौड़ाई तब उसने देखा कि बेड नंबर 107 के पास कोई बैठा हुआ है। उस व्यक्ति को देखकर वह चौंक गई थी। बेड पर जो लड़की रात तक ऑक्सीजन मास्क लगाए हुए लेटी हुई थी वह लड़की अब हँस-हँसकर बातें कर रही थी उस आदमी से। वार्ड अटेंडेंट को लगा कि इस वार्ड में जरूर कोई भूत का साया है, जो उस लड़की के पास मौजूद है। वह डर के मारे वार्ड का दरवाजा खोलकर बाहर भी नहीं जा रही थी। अभी सूरज निकलने में समय बचा हुआ था। अपने डर को काबू करके उसने अपना सिर अपनी टेबल पर झुका कर उसे न देखने के इरादे से नीचे कर लिया था। वह मन ही मन भगवान से अपनी रक्षा की प्रार्थना कर रही थी। इस बीच फिर से उसकी आँख भी लग गई थी।

जब दोबारा उसकी आँख खुली तब उसने देखा कि बाहर दिन निकल आया है। सुबह आठ बजे तक उसकी ड्यूटी थी। उसने अपनी टेबल पर पड़ी चाबी उठाई और वार्ड का दरवाजा खोला। उसकी निगाह सबसे पहले उसी लड़की के बेड के ऊपर गई। बेड नंबर 107 पर अब दूसरा कोई और नहीं था। वह हिम्मत जुटाकर बेड नंबर 107 पर गई।

“गुड मॉर्निंग डॉक्टर।” लड़की ने उठते हुए कहा।

“अरे तुमने अपना ऑक्सीजन क्यों हटाया?” वार्ड अटेंडेंट ने लड़की से पूछा।

“अब मुझे कोई परेशानी नहीं है, देखिए मैं पूरी तरह से ठीक हूँ। पता है रात को मेरे दादाजी आए थे, उन्होंने मुझसे कहा है कि अब मैं घर जा सकती हूँ।” लड़की ने हँसते हुए कहा।

“तुम्हारे दादा जी यहाँ आए थे, पर मैंने तो किसी को भी वार्ड में आते हुए नहीं देखा था।” वार्ड अटेंडेंट ने कहा।

“हाँ , क्योंकि मेरे दादा जी को कोई भी ताला रोक नहीं सकता है, ऐसा मेरे दादाजी ने मुझे बताया। पता है, मुझे साँस लेने में बहुत तकलीफ हो रही थी। मैंने अपने दादा जी को बताया तो मेरे दादाजी ने अपने दोनों हाथ मेरे सीने पर रख दिए और मेरे मुँह से ऑक्सीजन का मास्क हटा दिया। उन्होंने मुझसे कहा है कि आज मुझे घर में मिलने के लिए आएंगे। आप मेरी छुट्टी कर दीजिए। अब मैं पूरी तरह से ठीक हूँ। आप चाहें तो मेरा टेस्ट भी कर सकती हैं। आज शाम को मुझे दादाजी के साथ खेलना है, दादा जी ने भी हाँ कहा है ।” लड़की ने कहा।

” लेकिन उन्होंने तुम्हारे साथ ऐसा क्या किया जो तुम पूरी तरह से ठीक हो गई हो?” वार्ड अटेंडेंट में पूछा।

“आप मुझे मेरी मम्मी से बात करवा सकती हैं? मैं अपनी मम्मी को बताना चाहती हूँ कि दादा जी मुझसे मिलने आए थे। उन्होंने मेरे माथे पर अपने होठों से किस किया और मुझसे बहुत सारी बातें भी कीं।” लड़की ने मुस्कुराते हुए कहा।
वार्ड अटेंडेंट को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, मगर उसने अपना फोन निकालकर लड़की के हाथों में दे दिया। लड़की ने फोन पर अपनी माँ का नंबर डायल किया।

“हेलो! मम्मा, मैं सुरम्या बोल रही हूँ। अब मैं बिल्कुल ठीक हो गई हूँ, रात में मुझसे मिलने के लिए दादा जी आए थे।”

“पर तुम्हारे पास तो किसी को आने की इजाजत नहीं है, फिर दादा जी कैसे पहुंच गए ?” अंजना ने आश्चर्य से पूछा।

“मुझे नहीं पता। उन्होंने मेरे माथे पर किस ऑफ गॉड किया, और मैं अब पूरी तरह से ठीक हूँ। आप मुझे लेने आ जाओ। और पापा को फोन लगाकर बता देना कि उनको परेशान होने की जरूरत नहीं है, ऐसा दादा जी ने उनसे कहने के लिए कहा है।” लड़की ने कहते हुए फोन काट दिया था।

अंजना की निगाह मंदिर की तरफ गई, उसे लगा कि जैसे मंदिर में रखी हुई उसके ससुर की फोटो मुस्कुरा रही है। उसके मुँह से भी अचानक ही निकला…. किस ऑफ गॉड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *