रचनाकार

लद्यु कथा ! क्या करूँ?

“अरे बाबू लाल ! कैसे हो भाई ? बिटिया तो सुखी है अपने घर में ?” कई साल बाद पूरन चंद मिले तो दोस्त का हालचाल पूछा।

“काट रहे हैं दिन ।” संक्षिप्त -सा उत्तर दिया बाबू लाल ने ।

“और बेटी का नहीं बताया कुछ । सगाई तो नौकरी में रहते ही कर दी थी तुमने उसकी ।” पूरन चंद ने पूछा।

“हाँ, लड़के का रिजल्ट आ गया था कि क्लास फोर में सलेक्शन हो गया है, सो सगाई कर दी थी पर …. ।” बाबू लाल कहते हुए रुक गए।

“पर क्या भैया ? क्या हुआ ?” पूरन चंद ने उत्सुकता से पूछा।

“पर यही कि ज्वाइननिंग अभी तक नहीं हुई । लड़के के गले बेटी बांध दूँ तो क्या खाएगी बेचारी । काम धंधा कुछ है नहीं , परीक्षा पास हो तो कभी रिजल्ट रुक जाता है , कभी परीक्षा का पेपर लीक हो जाता है …. चार साल हो गए इंतजार करते ।” बाबू लाल ने अपनी परेशानी बताई।

“तो कोई अपना काम क्यों नहीं कर लेता वो।” पूरन चंद बोले।

“वो भी किया था , पर किस्मत खराब थी ….. पुलिस के लोग आए और ठेली उठाकर ले गए , फिर हफ्ता भी बंध गया , तो म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन वाले आ गए , और उनका हफ्ता भी बंध गया , फिर हालत ये हो गई कि ठेली का बोरिया बिस्तर बंध गया ।” बाबू लाल बोले।

“तो लड़का निठल्ला निकला …हम्म ।” पूरन चंद ने अफसोस जताते हुए कहा।

“लड़का तो मेहनती है , आजकल चुनाव प्रचार में नारे लगाता है । थोड़ा बहुत कमा लेता है अपने लिए …आजकल तो धार्मिक भी हो गया है। लड़के को क्या दोष दूँ ….दोष तो जिनका है ….वो वादों की बरसात कर रहे हैं …. अट्ठाईस का हो गया …. अब सोचता हूँ कि कोई और वर देखूँ बेटी के लिए ।” बाबू लाल ने उदास सी आवाज में कहा।

“और बिटिया क्या कर रही है ?”

“घर में ब्यूटी पार्लर का काम करती है, अच्छा कमा लेती है …पर मर्द की इज्जत कैसे कर पाएगी …यही सोचकर शादी नहीं कर रहा हूँ । मर्द खाली बैठे खाये ये कब तक चलेगा । अब तुम ही बताओ …क्या करूँ?” बाबू लाल ने कहा।

पूरन चंद खामोश है …. धार्मिक नारे लगाते लोगों की उन्मादी भीड़ आ रही है…वह अस्थाई रोजगारों को देख रहा है …जो चुनाव के बाद बेरोजगार होने वाले हैं।

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