एनबीएआईएम के वैज्ञानिकों ने सहरोज में किसानों को बताए कृषि में बढ़ती लागत को कम करने व रसायनों के अधिकाधिक उपयोग से होने वाले खतरे से बचने का उपाय
मऊ। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो में संचालित परियोजना द्वारा एक कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन सहरोज गांव के पंचायत भवन में शनिवार को किया गया जिसमें आसपास के चार गांव के सौ से अधिक प्रगतिशील एवं उन्नतशील किसानों की सहभागिता रही। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य गांव एवं आसपास के उन्नतशील किसानों में कृषि में बढ़ती लागत और कृषि पारिस्थितिकी में रसायनों के अधिकाधिक उपयोग से होने वाले नुकसान के विषय में सचेत करना एवं उन्हें वर्त्तमान में उपलब्ध सूक्ष्मजीव आधारित कृषि पद्धतियों के विषय में समुचित जानकारी प्रशिक्षण एवं प्रदर्शन के माध्यम से उपलब्ध करना था। साथ ही कार्यक्रम वर्तमान में उपलब्ध सूक्ष्मजीव आधारित कृषि पद्धतियों को अपनाने एवं कृषि अपशिस्टों को बायोकम्पोस्ट में परिवर्तित करके इसे आजीविका का साधन तैयार करने पर भी केंद्रित था जिससे उन्नतशील किसान अपनी फसलों एवं मिट्टी के स्वास्थ्य के साथ साथ स्वयं के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर कृत्रिम रसायनों के बढ़ते दुस्प्रभाओं के प्रति सजग हो सकें।
इस कार्यक्रम में तकनिकी प्रशिक्षण हेतु किसानों को तकनिकी पुस्तिका और ट्रेनिंग किट के साथ ही साथ विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीव अनुकल्प निशुल्क रूप से प्रदान किया गया। साथ ही उद्यमिता हेतु बायोकम्पोस्ट उत्पादन करने में इच्छुक एवं तत्पर किसान समूहों में बायोकन्वर्शन किट का भी वितरण किया गया जिससे गांव के किसान इन पद्धतियों को तत्परता के साथ आने वाली रबी की फसल में सफलतापूर्वक उपयोग करके योजना का अधिकाधिक लाभ ले सकें।
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मऊ जनपद के मुख्य विकास अधिकारी आशुतोष कुमार द्विवेदी थे तथा अध्यक्षता ब्यूरो के निदेशक अनिल कुमार सक्सेना ने किया। इस अवसर पर श्री आशुतोष द्विवेदी ने कहा कि परिदृश्य सरकार के द्वारा अतिशय ध्यान दिए जाने की बात कही और साथ ही यह भी कहा की किसान संपोषणीय खेती की तरफ अधिकाधिक ध्यान दें जिससे आने वाले समय में मृदा स्वास्थ्य के संरक्षण के साथ ही प्रकृति की भी सुरक्षा हो सकेण् उन्होंने ब्यूरो द्वारा उच्चीकृत तकनीकियों को किसानों के बीच ले जाने के प्रयासों की सराहना की और साथ ही गांव वासियों से भी आवाहन किया की वे स्वच्छ भारत अभियानए और खुले में सोच से मुक्ति जैसे कार्यक्रमों में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करने को कहाए जिससे सरकार के प्रयासों को बल मिल सकेण् अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में ब्यूरो के निदेशक डॉ अनिल कुमार सक्सेना ने बताया की ब्यूरो ने कई सारे सूक्ष्मजीवों पर आधारित कृषि तकनीकियों का विकास करने में सफलता पायी है और अब उसका उपयोग करने हेतु किसानों को प्रेरित किये जाने की आवश्यकता है जिसे हम इस प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रमों के द्वारा कर रहे हैं। परियोजना के प्रमुख अन्वेषक डॉ. डी.पी. सिंह ने कहा कि सीमित होते खेत, सिकुड़ती जमीन की माप, कम होते संसाधन, आर्थिक अभाव, बिगड़ती पर्यावरण और मिट्टी की सेहत पौधों के संरक्षण और सुरक्षा का बढ़ता बोझ बीज जैसे संसाधनों की उच्च गुणवत्ता एवं अनुपलब्धताए और उसमे भी समग्र रूप से समय पर विषयगत जानकारी की कमी, ये कुल ऐसे कारक सिद्ध हो रहे हैं जिसने कृषि को और उसमें किसानों की रूचि को बुरी तरह प्रभावित किया है। इन समस्त कारकों ने वास्तव में कृषि पर आधारित किसानों और उनके परिवारों की आर्थिक रीढ़ को भी नुकसान पहुँचाया जिससे उनकी समस्याएं अधिकाधिक जटिल होती गयीं और आलम ये है कि भावी पीढ़ी कृषि पर ही जीवन यापन से कतराने लगी हैण् उन्होंने निदेशक के हवाले से बताया कि समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किये गए आवाहन जिसमें किसानों की आय में गुणात्मक वृद्धि करने का प्रयास किये जाने का संकल्प लिया गया है। अपने आप में एक स्वागतयोग्य और प्रशंसनीय कदम है जिसके लिए ब्यूरो सतत प्रयत्नशील है। कार्यक्रम में ब्यूरो की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रेनू ने बताया कि स्वस्थ मिट्टी न होने की वजह से कई बार पौधों को व्यापक रूप से पोषक तत्व उपलब्ध नहीं होतेण् साथ ही कई बार मृदाजनित या बीजजनित जीवाणुओं और फफूंदों के कारण अंकुरण बुरी तरह से प्रभावित होता है। ब्यूरो के वैज्ञानिक और परियोजना के सह.अन्वेषक डॉ. प्रमोद साहू ने कहा कि कृत्रिम रासायनिक खादों या कीटनाशक दवाओं के उपयोग में व्यवहारिक समस्या होती है और अधिकाधिक निर्भरता से दुष्प्रभाव सामने आते हैंण् आज वास्तव में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अनियंत्रित उपयोग के दुष्प्रभाव मिट्टी, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर परिलक्षित होने लगे हैं। समय आ गया है कि हम अब वैकल्पिक उपायों पर गौर करके उन्हें कृषि पद्धतियों में उचित स्थान दें जिससे कृषि रसायनों पर किसानों की निर्भरता कम की जा सकेए साथ ही खेती पर आने वाली लागत पर नियंत्रण पाया जा सके और पर्यावरण के स्वास्थ्य, जिससे खुद का स्वास्थ्य भी जुड़ा है। की रक्षा की जा सकेण् ब्यूरो के ही वैज्ञानिक डॉ. उदय भान सिंह ने तकनिकी सत्र में बताया कि सूक्ष्मजीवों के अनुकल्पों के सावधानीपूर्वक उपयोग से फसल उत्पादन में बेहतर लाभ लिया जा सकता है। इस अवसर पर बंस गोपाल सिंह ने उद्यानिक फसलों द्वारा किसानों को लाभों से अवगत कराया और शैलेश कुमार ने किसानों को मशरुम की खेती के विषय में बताया जिससे उन्हें वैकल्पिक संसाधनों से भी आय प्राप्त हो सके।
ग्राम प्रधान श्री योगेश राय ने अतिथियों का अपने गांव की ओर से स्वागत किया और इस कार्यक्रम पर प्रसन्नता व्यक्त की। राघवेंद्र राय शर्मा ने कार्यक्रम के अंत में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज गाँव में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जिस तरह से किसानों को समझाने और उन्हें प्रेरित करने का कार्य किया है वो एक समग्र और सराहनीय प्रशिक्षण और प्रदर्शन कार्यक्रम है। उद्धाटन सत्र का संचालन डॉ प्रमोद साहू तकनीकी सत्र का संचालन डॉ. डी. पी. सिंह एवं प्रदर्शन सत्र का संचालन डॉ. रेनू ने किया। तथा सजीव प्रदर्शन के समय डॉ. विवेक सिंह, रबिन्द्र, अजय, राम अवध आदि से तकनिकी जानकारी लिया।
उन्नतशील कृषि तकनीकियों को आत्मसात करके ही किसान आगे बढ़ सकते हैं। आशुतोष कुमार द्विवेदी मुख्य विकास अधिकारी सूक्ष्मजीवों की कृषि में उपादेयता के प्रति लोगों को जागरूक किया जाना अति आवश्यकहै। डॉ. अनिल कुमार सक्सेना निदेशक कृषि अपशिष्ट जैव.उत्परिवर्तन से रोजगार.अर्जन भी संभव है। डॉ. डी पी सिंह
सूक्ष्मजीव आधारित कृषि पद्धतियां पर्यावरण सह वैकल्पिक उपाय है। डॉ. रेनू ने पादप रोगों का जैविक नियंत्रण एक प्रभावी उपाय बताया।