मऊ के ऐतिहासिक स्थल

क्या आप मऊ के प्रसिद्ध वनदेवी मंदिर के बारे में जानते हैं

VANDEVI MANDIR MAU 2

जानिए मऊ के प्रसिद्ध वनदेवी मंदिर के बारे…

जनपद मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर दूर दक्षिण पश्चिम दिशा में प्रकृति के मनोरम एवं रमणीय परिवेश में स्थित है. जगत जननी सीता माता का मन्दिर वनदेवी।

आज यह स्थान श्रद्धालुओं के आकर्षण का केन्द्र बिन्दु है। वनदेवी मन्दिर अपनी प्राकृतिक गरिमा के साथ-साथ पौराणिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों का प्रेरणा स्रोत भी है।

जनश्रुतियों एवं भौगोलिक साक्ष्यों के आधार पर यह स्थान महर्षि बाल्मिकी की साधना स्थली के रूप में विख्यात रहा है। महर्षि का आवास इसी स्थान के आस-पास कहीं रहा होगा।

 

कहा जाता है कि माता सीता ने भी अपने अखण्ड पतिव्रत धर्म का पालन करते हुए यहीं पर अपने पुत्रों लव-कुश को जन्म दिया था। यह स्थान साहित्य साधना के आदि पुरुष महर्षि बाल्मिकी एवं सम्पूर्ण भारतीयता का प्रतीक भगवान राम तथा माता सीता से जुड़ा हुआ है।

जनश्रुति के अनुसार नर्वर के रहने वाले सिधनुआ बाबा को स्वप्न दिखाई दिया कि देवी की प्रतिमा जंगल में जमीन के अनदर दबी पड़ी है। देवी ने बाबा को उक्त स्थल की खुदाई कर पूजा पाठ का निर्देश दिया। स्वप्न के अनुसार बाबा ने निर्धारित स्थल पर खुदाई प्रारम्भ की तो उन्हें मूर्ति दिखाई दी।

बाबा के फावड़े की चोट से मूर्ति क्षतिग्रस्त भी हो गयी। बाबा जीवन पर्यन्त वहाँ पूजन-अर्चन करते रहे। वृद्धावस्था में उन्होंने उक्त मूर्ति को अपने घर लाकर स्थापित करना चाहा लेकन वे सफल नहीं हुए और वहीं उनका प्राणांत हो गया।

बाद में वहाँ मन्दिर बनवाया गया। वनदेवी मन्दिर अनेक साधु-महात्मा एवं साधकों की तपस्थली भी रहा है। इस क्षेत्र में रहे अनेक साधु-महात्माओं में लहरी बाबा की विशेष ख्याति है। यहाँ श्रद्धालुओं को मानसिक एवं शारीरिक व्याधि से छुटकारा मिलता है।

यहाँ के साधकों के तीसरी पीढ़ी में बाबा दशरथ दास का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। ये अपनी अपूर्व एवं आलौकिक सिद्धियों के कारण विशेष चर्चित रहे है। एक बार यहाँ आये दर्शनार्थियों का एक बालक कुएँ में गिर गया और उसकी मृत्यु हो गयी।

मृत बालक के शव को लेकर रोते-बिलखते उसके माता-पिता व अन्य लोग बाबा दशरथ के पास पहुँचे। बाबा ने अपने तपोबल से उसे जीवित कर दिया। बाबा ने यहाँ बलि प्रथा बंद करायी तथा धार्मिक एवं सामाजिक सुधार के बड़े महत्वपूर्ण कार्य कराये।यहाँ श्रद्धालुजन वर्ष पर्यन्त आते रहते हैं लेकिन अश्विन एवं चैत्र नवरात्रि में जन सैलाब उमड़ पड़ता है।

चैत्र राम नवमी के अवसर पर यहाँ विशाल मेले का भी आयोजन होता है जो कई दिनों तक चलता रहता है। माँ वनदेवी का पवित्रधाम आजकल सामूहिक विवाह संस्कार केन्द्र के रूप में विशेष ख्याति अर्जित कर रहा है।

यहाँ प्रतिवर्ष सैकड़ों युवक-युवतियाँ माँ वनदेवी के आशीर्वाद की छाँव में अपना नवजीवन प्रारम्भ करते है। लगन के दिनों में यहाँ का दृश्य देखने लायक होता है।

बाह्य आडम्बर एवं तड़क-भड़क से दूर श्री माँ के चरणों में नवजीवन की शपथ लेने वाले नवयुवकों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

सामाजिक-वानिकी एवं वन विभाग ने यहाँ मनोरंजन पार्क बनाकर इसे और आकर्षक बना दिया है। यहाँ एक छोटा चिडि़याघर भी है जो बच्चों को सहज ही आकर्षित करता है। पर्यटन की दृष्टि से इसे और विकसित किया जा सकता है।

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