रचनाकार

जनसुराज या जनधोखा?”

मेरी कलम से…

आनन्द कुमार

— बिहार की बदलती सियासत पर…

बिहार बदलने की कोशिश में,

कहीं खुल ना जाए राज की पोल।

शांत दिखते प्रशांत किशोर,

अब क्यों हैं इतने अनमोल?

साज़िश के शिकार हैं या

किसी सौदेबाज़ी के यार?

युवाओं के भरोसे को

कहीं न लग जाए घातक वार!

अगर हो गई कोई चूक,

तो अब भी संभल जाइए।

राजनीति की मीठी चासनी में,

खुद को खजूर न बनाइए !

“बिहार का हार”

इतना भी नहीं आसान।

यहाँ जनता ढूंढती है

अपने सपनों का सम्मान।

अभी भी है वक़्त,

रास्ता सही पकड़ जाइए।

अगर किसी और रथ पर हैं,

तो फौरन ही उतर जाइए।

जब “जनसुराज” था आपका नारा,

तो उसका सार कर जाइए।

अपने नाम की महिमा से,

बिहार का उद्धार कर जाइए!

 

 

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