“कलाकारों की टिकट, कार्यकर्ताओं की तपस्या!”
मेरी कलम से…
आनन्द कुमार
एक से गीत गुनगुनाया जाएगा,
बिन हाथ के ताली बजाया जाएगा!
आप जैसे बहादुर हैं तो क्या ग़म है,
कमल बिहार में भी खिलाया जाएगा!
राजनीति अब रंगमंच बनती जा रही है,
कलाकारी उसमें धीरे-धीरे रमती जा रही है।
उन्हें डर है कि अब सत्ता केवल
कार्यकर्ता की मेहनत से नहीं मिल सकती!
इसलिए फ़िल्म, भोजपुरी, गीत और संगीत को,
सड़क के रास्ते सदन तक पहुँचाया जा रहा है।
आप परेशान न हों, आप तो बस ‘कार्यकर्ता’ हैं,
आपका ख़्याल रखा जाएगा-उम्र भर (कहने भर को)!
कुछ सीटों की गणित उलझी है,
सत्ता की नाव डगमगा रही है।
इसीलिए ये चमकदार प्रयोग,
अब आज़माया जा रहा है!
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🎯 भावार्थ
यह रचना समर्पित है उन भाजपा कार्यकर्ताओं को,
जो सालों से निष्ठा और श्रम के साथ पार्टी को सींच रहे हैं,
परंतु जब टिकट की बात आती है,
तो ‘लोकप्रियता’ के नाम पर
गीत-संगीत या मंच के कलाकारों को प्राथमिकता दी जाती है!