अपना भारत

सोशल मीडिया पर नफरत नहीं, संवाद की ज़रूरत

 — देश की एकता सबसे बड़ी पहचान

@आनन्द कुमार…

डिजिटल युग में सोशल मीडिया हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है। आज हर व्यक्ति अपने विचारों, अनुभवों और भावनाओं को व्यक्त करने के लिए फेसबुक, एक्स (ट्विटर), इंस्टाग्राम, यूट्यूब जैसे प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करता है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि इन प्लेटफ़ॉर्म्स पर अभिव्यक्ति की आज़ादी का दुरुपयोग भी बढ़ता जा रहा है।

लोग धर्म और जाति के नाम पर ऐसी बातें लिखते और फैलाते हैं जो समाज में नफरत, भ्रम और अविश्वास का माहौल पैदा करती हैं। एक गलत पोस्ट, एक भ्रामक वीडियो, या एक अफवाह – कभी-कभी पूरे समाज को बांट देती है। यही अफवाहें आपसी भाईचारे को तोड़ती हैं, जबकि हमारा देश सदियों से “विविधता में एकता” का उदाहरण रहा है।

सोशल मीडिया पर कुछ यूज़र्स बिना सोचे-समझे दूसरों के धर्म या जाति पर टिप्पणी करते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि ऑनलाइन शब्द भी चोट पहुँचाते हैं, और उनका असर ज़मीनी स्तर तक दिखता है। नफरत भरे कमेंट्स और अफवाहों की आग जब फैलती है, तो सबसे पहले इंसानियत जलती है।

यह समझना ज़रूरी है कि धर्म और जाति पहचान का नहीं, सम्मान का प्रतीक हैं। हर धर्म प्रेम, करुणा और सद्भाव की शिक्षा देता है। अगर कोई धर्म या जाति को नीचा दिखाता है, तो वह न केवल दूसरे को अपमानित करता है बल्कि अपनी सोच को भी छोटा बनाता है।

अब वक्त है कि हम सोशल मीडिया को नफरत का नहीं, समझदारी का माध्यम बनाएं।

  • पोस्ट करने से पहले सोचें कि क्या आपकी बात किसी की भावना को आहत कर सकती है।
  • जानकारी साझा करने से पहले उसकी सच्चाई जांचें।
  • अफवाहों को फैलाने के बजाय सच्चाई को सामने लाने की कोशिश करें।
  • और सबसे ज़रूरी
  • भाईचारे, सद्भाव और एकता का संदेश फैलाने की है…

देश की असली ताकत उसकी मिसाइलों में नहीं, बल्कि उसके नागरिकों के आपसी सम्मान और एकता में है।
यदि हम अपनी डिजिटल जिम्मेदारी नहीं निभाते, तो आज का सोशल मीडिया कल समाजिक दरार का कारण बन सकता है।

आइए, हम सब मिलकर सोशल मीडिया को “विचारों की सजगता का मंच” बनाएं, न कि “नफरत के प्रचार का हथियार।”

 

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