रचनाकार

अब वाचाल हुई आंखें अधर है मौन प्रिये

सफरनामा—ए—ज़िंदगी…
शालिनी राय
अब वाचाल हुईं आंखें अधर है मौन प्रिये,
किसने कितने गुनाह किए कौन गिने?
इस कालचक्र के चक्कर में सब दौड़ लगा रहे हैं
अब कौन हारा कौन जीता ये हिसाब कौन रखे,
शह और मात का खेल बन रही है जिंदगी,
किसी की संवर रही है तो किसी की उजड़ रही है
जिंदगी पर किसने कितनी कोशिश की ये खबर कौन रखे,
किसने खोया किसने पाया किसने किसको कितना गिराया?
ये प्रश्न पड़ा है मौन प्रिये..
अब वाचाल हुई आंखे अधर है मौन प्रिये…
तपती धूप में भी दौड़ लगा कर हारा कोई,
कोई छांव में बैठे बैठे जीत गया,
रब ही जाने ये किस्मत है या
किस्मत और मेहनत का मेल प्रिये,
कोई चुप है होठों से,
तो पढ़ ले कोई उसका नैन है ऐसा कौन प्रिये??
अब वाचाल हुई आंखें और अधर है मौन प्रिये….
कोई राजनीति में दल बदल रहा तो कोई घर ही में घर बदल रहा,
कोई लड़ रहा वजूद से तो कोई वजूद के लिए ही लड़ रहा,
किस्सा है सबका अपना अपना
कोई चुप है तो कोई कहने को बेचैन प्रिये,
कौन किससे कहे और कौन कितनी निष्ठा से सुने
ये संशय है दिन रैन प्रिये?
अब वाचाल हुई आंखें और अधर है मौन प्रिये….
पर एक बात है इन सबमें अच्छी के हर कोई अपनी अपनी कोशिश कर रहा,
अनवरत जारी है हर किसी का सफर,
कोई गिर कर सम्हल रहा तो कोई न गिरने का कर रहा संकल्प प्रिए,
कौन पहुचे कहां ये जाने कौन प्रिये?
अब वाचाल हुई आंखें अधर है मौन प्रिये…..

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