खास-मेहमानचर्चा में

दम तोड़ रहे पीठ के मुसाफिर…
ईंट भट्ठों पर फंसे पांच लाख मजदूर न घर के, न घाट के

अखबार का कोना : आज

(ऋषिकेश पाण्डेय)
मऊ।ईंट भट्ठों पर काम करने वाली माँ के पेट से निकल कर सीधे पीठ पर पलकर अपनी जिन्दगी की शुरूआत करने वाले मुसाफिर आज ईंट भट्ठों पर दम तोड़ते नज़र आ रहे हैं।लाकडाऊन के चलते भट्ठों पर ईंट का उत्पादन ठप हो गया है।जबकि इन ईंट भट्ठों पर करीब पांच लाख परदेशी मजदूर लाकडाऊन के छत्तीस दिनों बाद भी फंसे हुए हैं।जिससे उनकी स्थिति “न घर के रहे,न घाट के” जैसी हो गयी है।
कोई ऐसा ईंट भट्ठा नहीं,जहाँ बीस-पचीस परदेशी मजदूर और पथेरा न फंसे हुए हों।जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं।ईंट निर्माता समिति के महामंत्री कौशल कुमार राय उर्फ बम्बू राय एवं देवेन्द्र सिंह ने “आज” को बताया कि अकेले मऊ जनपद में ही 340ईंट भट्ठों का संचालन होता है।जबकि उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या लगभग अट्ठारह हज़ार है।हर ईंट भट्ठे पर बीस-पचीस परदेशी और इतनी ही स्थानीय मजदूरों की जिंदगी पलती है। मगर,देश में लाकडाऊन से इनकी जिंदगी ठप प्राय हो गयी है।मौजूदा हालात में निर्माण कार्य बंद हो गये हैं।इन छत्तीस दिनों में किसी ने पांच छह ट्राली ईंट बहुत मुश्किल से बेची है तो किसी की बोहनी तक नहीं हुई है।माँग न होने से ईंट भट्ठों पर ईंटों की चट्टानों के ढेर लग गये हैं।कोयले की आपूर्ति न होने से नया उत्पादन बंद हो गया है।ऐसे में इन मजदूरों की स्थिति चिन्तनीय हो गयी है।शासन-प्रशासन का ध्यान ऐसे मजदूरों की ओर नहीं गया है कि इन्हें भी सुरक्षित अपने गाँव लौटने की व्यवस्था दी जाय।भट्ठा मालिक इनके राशन-पानी का खर्च संभालते-संभालते अब हाथ खङे करने लगे हैं।ऐसी स्थिति में ईंट भट्ठों पर काम करने वाले मजदूरों खासकर महिलाओं की जिन्दगी अनिश्चितताओं के भंवर में फंसी दिखाई दे रही है और उनके पेट से निकल कर उनकी पीठों पर पलने वाले मुसाफिरों की जिंदगी तो दम तोड़ती ही नज़र आ रही है।

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