मऊ में कठिन है…सपा और सहयोगी दलों के लिए प्रत्याशियों का चयन!
■ स्थानीय पार्टियों से गठबंधन की वजह से कम हो सकती हैं सपा की सीटें
■ सुभासपा और जनवादी पार्टी भी जिले से मांग सकते हैं एक एक सीट
@ आनन्द कुमार मऊ से…
मऊ। यूपी में 2022 का किला फतह करने के लिए समाजवादी पार्टी भी जी तोड़ मेहनत और कोशिश कर रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में जिले के एक भी सीट पर खाता ना खोल पाने की कसक, इस बार समाजवादी पार्टी सभी 4 विधानसभा सीटों पर अपना व सहयोगी दल का उम्मीदवार जिताने के साथ पूरी करना चाहती है। इसके लिए सपा राजनीति के धरातल पर काम कर रही है। यही वजह है कि समाजवादी पार्टी की नज़र विरोधियों पर भी टिकी है,
सत्तादल भाजपा किस सीट पर किसे उतार रही है, बसपा के जो प्रत्याशी मैदान में आ चुके हैं, जो आने वाले हैं और कांग्रेस के हर चाल पर समाजवादी पार्टी की पैनी नजर है। इससे इतर मऊ की चार विधानसभा सीट में कितने पर साइकिल के उम्मीदवार प्रत्याशी बनेंगे और कितने पर गठबंधन दल के लोग आएंगे।इसको लेकर भी पार्टी पशोपेश में है। इसके अलावा समाजवादी पार्टी के लिए सबसे ज्यादा गंभीर विषय दूसरे दल को छोड़ कर आए उन नेताओं को भी तवज्जों देने को लेकर है, जो अपने-अपने विधानसभा सीटों पर मजबूत पकड़ रखते हैं। उसमें या तो कोई पूर्व विधायक है या तो फिर सदर विधायक मोख्तार अंसारी व गाजीपुर से बसपा सांसद अफजाल अंसारी को सामने से छोड़, साइकिल पर सवार उनका पूरा कुनबा है। ऐसे में सपा मुखिया को मऊ में चार विधानसभा सीट पर सपा का शून्य से बढ़त का खाता खोलना उतना ही जरुरी है, जितना कि उनका उनके लिए समाजवादी पार्टी की सरकार बनने का दावा पूरा होना जरूरी हैं।
समाजवादी पार्टी की अगर एक-एक सीट पर बात करें तो जनपद की 4 विधानसभा सीटों पर उसकी स्थिति बहुत ही विकट है। सपा मुखिया अखिलेश यादव के द्वारा जा छप्पर फाड़ कर गठबंधन हेतु छोटे-छोटे दलों से हालात और परिस्थितियों को लेकर हाथ मिलाते जा रहे हैं। उसी क्रम में मऊ की राजनीति जमीन से अपनी-अपनी राजनीतिक पार्टी को प्रदेश की राजनीति में विशेष महत्व दिलाने वाले सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया ओमप्रकाश राजभर हों या जनवादी पार्टी सोशलिस्ट के मुखिया संजय चौहान। इन दोनों दलों की राजनैतिक शुरुआत मऊ जनपद से होने के कारण, और वर्तमान में सपा के साथ-साथ चलने के कारण, गठबंधन धर्म के नाते इनका भी अधिकार मऊ में कम से कम एक-एक सीट पर बनता है।
जहां इन दोनों दलों का मऊ की राजनीति से अच्छा खासा रिश्ता है ऐसे में गठबंधन धर्म के नाते अगर दोनों के पास 1-1 सीट भी आता है, तो समाजवादी पार्टी के पास सिर्फ 2 सीटें शेष रह जाती है।
ऐसे में अगर 2017 के चुनाव में मऊ सदर सीट पर नंबर दो की मजबूत स्थिति पर भाजपा के सहयोग से चुनाव लड़ने वाली सुभासपा यह सीट अगर मोख्तार अंसारी के लिए छोड़ती है तो या उन्हें अपने गठबंधन का उम्मीदवार बनाती है या सदर सीट पर अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव की झोली में जाती है तो जनपद के चार विधानसभा में से एक अगर मोख्तार अंसारी का निकाल दें तो तीन सीट बचती है। वैसे तो सपा के मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने पिछले कार्यकाल में जाते-जाते मऊ सदर विधायक मोख्तार अंसारी की खराब छवि के नाते काफी दूरी बना रखे थे,
इस बार अगर सीट गठबंधन में जाती है तो क्या वे माफिया मोख्तार अंसारी का पीछे से बकप करेंगे, या फिर सदर सीट पर दिल्लगी नहीं होती है तो अपने जमीनी कार्यकर्ता अल्ताफ अंसारी या किसी और के पक्ष में साइकिल पर मुहर लगाने की अपील करेंगे। ऐसे में संजय सिंह चौहान की जनवादी पार्टी सोशलिस्ट व ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा किस सीट पर मऊ के मैदान में जोर आजमाइश करेंगी यह सोचना होगा। इन दोनों दलों को घोसी और मधुबन सीट में से ही एक-एक पर संतोष करना पड़ सकता है। अगर समीकरण यही रहा तो फिर समाजवादी पार्टी के पास सिर्फ एक सीट ही बचती है वह है मुहम्मदाबाद गोहना सुरक्षित सीट। अगर सपा मुखिया इन सभी समीकरण के बावजूद घोसी, मधुबन की सीट को अपने नये राजनैतिक साथियों में से किसी को मऊ की गुणा गणित समझा ले जाते हैं और अपने पाले में एक भी सीट अगर कर लेतें हैं तो उनके पास दो सीट बचती है। ऐसे में अगर मधुबन विधानसभा और मुहम्मदाबाद गोहना सुरक्षित सीट समाजवादी पार्टी के पाले में आती है तो सपा के लिए उस हालात में भी विकट परिस्थिति होगी। इन दोनों सीटों पर उनके दल के मजबूत नेताओं के अलावा बहुजन समाज पार्टी छोड़कर आएं पूर्व विधायक व पूर्व मंत्री राजेंद्र कुमार तथा मधुबन विधानसभा सीट पर पूर्व विधायक उमेश चंद्र पांडेय व भाजपा से आए डा.एच.एन. सिंह पटेल का क्या होगा। वैसे सुनने में आ रहा है डा. पटेल अपनी दावेदारी कमजोर कर रहे हैं।
इतना ही नहीं समाजवादी पार्टी को इन 2 सीटों में से एक ही सीट ऐसी है जो सामान्य है जिस पर जातीय समीकरण के हिसाब से सामान्य जाति को प्रत्याशी बनाया जा सकता है। ऐसे में अगर क्षत्रिय और ब्राह्मण मतदाताओं का वोट को पाने के लिए समाजवादी पार्टी को कहीं न कहीं इस पर भी विचार करना होगा। अगर समाजवादी पार्टी घोसी सीट पर अपने सहयोगी जनवादी पार्टी को मनाने में कामयाब हो गई तब तो उसके पास एक सीट और प्लस हो जाएगा नहीं तो मधुबन सीट पर उसे कई समीकरण से सोचना होगा।
इसलिए सूत्रों की माने तो समाजवादी पार्टी अपने प्रत्याशियों के चयन में देरी तो कर ही रही है इसीलिए जिला पंचायत चुनाव से ही रिक्त चल रहे मऊ के जिलाध्यक्ष पद पर अभी तक किसी की जिम्मेदारी तय नहीं कर पाई है और सूत्रों की माने तो जिलाध्यक्ष पद पर कोई घोषणा समाजवादी पार्टी इसलिए भी नहीं कर पा रही है कि वे इस पर जातीय समीकरण के हिसाब से किसी ऐसे व्यक्ति को बैठा सके जिससे चुनाव पर कोई विशेष प्रभाव नुकसान का ना पड़े और नए जिलाध्यक्ष से कुछ राजनीतिक लाभ लिया जा सके। सूत्रों की माने तो बसपा छोड़कर आए पूर्व जिला अध्यक्ष उमेश पांडेय अगर मधुबन से प्रत्याशी नहीं बन पाते हैं तो उन्हें सपा जिलाध्यक्ष की जिम्मेदारी अखिलेश यादव दे सकते हैं या फिर मोख्तार के खिलाफ मजबूती से लड़ने वाले अपने पूर्व प्रत्याशी बुनकर अल्ताफ अंसारी या पूर्व चेयरमैन अरशद जमाल को जिलाध्यक्ष का कमान सौपा जा सकता है।
ऐसे में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव सहित सपा के पैनल को मऊ जनपद की 4 विधानसभा सीट काफी उलझा रखी है। सीटें साइकिल सिंबल के लिए चार से कम दिख रही हैं और अपने तथा गैर हुए अपनों की गणित ऐसी है कि हल होने का नाम ही नहीं ले रही। देखना होगा कि अखिलेश यादव मऊ जनपद की 4 विधानसभाओं में से अपनी शून्यता को अंकों में कैसे लाते हैं।