‘भरत’ के लिए मधुबन का टूट गया सब्र, ‘राम’ का कर रहे विरोध!

@ आनन्द कुमार…
मऊ। एक जमाना था जब राम के लिए भरत ने गद्दी पर अपने बड़े भाई राम की खड़ाऊं रखकर उनके रामराज्य को पूरे 14 वर्ष तक खुद को राजा होते हुए चलाया था और उनको मिलने वाले सिंहासन पर बैठने तक का दुस्साहस नहीं कर सके थे, जिस पर उनका पूरा अधिकार था। बल्कि भरत ने राम की उस गद्दी की पूजा की जिस पर वे बैठ नहीं सके और वन को चले गए।
और एक जमाना आज का है जहां राम को मधुबन की गद्दी देने के लिए रामराज्य वाली भारतीय जनता पार्टी ने अपने राम को टिकट तो दिया, लेकिन सिंहासन का दायित्व भरत को मिले इसको लेकर मधुबन की जनता के बीच बनी टोली के रहनुमाओं के सब्र का बांध टूट गया और राम को कुर्सी ना मिले इसको लेकर चौखट की बात सड़क तक आ गई और लोग राम की पूजा तो दूर उनके विरोध पर उतारू हो गये।
उस समय त्रेतायुग में राम को गद्दी न मिल पाए ऐसा कैकेयी को दिए दशरथ के एक वचन की वजह से संभव हो सका। और मधुबन में भाजपा द्वारा उतारे गए राम (रामविलास) को गद्दी न मिल पाए ऐसा कलयुग में मधुबन के कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों के साथ-साथ आम जनमानस के लिए वर्षो से सेवा, संघर्ष, प्रेम और त्याग में डूबे भरत (भरतभैया) के लिए जनमानस की गूंज कारण हो रहा है।
खैर सिंहासन किसे मिलेगा अब तो यह जनता ही तय करती है। लेकिन सिंहासन तक पंहुचने के लिए पहला कदम राजनैतिक दल के मुखिया और उसके जिम्मेदार तय करते हैं। ऐसे में रामराज्य वाली भाजपा ने मधुबन की गद्दी राम को देनी चाही तो विरोध के स्वर फूट पड़े। खैर विरोध केवल भरत के द्वारा होता तो और बात है, भरत के लिए इस सेना बनकर उनके ही पार्टी के पदाधिकारी, कार्यकर्ता और आम जन खड़े हो चुके हैं इसलिए इस पर विचार करना होगा। इस लड़ाई में लंका में कूच करने से पहले ही राम और भरत के बीच आपस में सिंहासन को लेकर द्वंद छिड़ गया है। जबकि रावण की भूमिका अभी बाद में आएगी। गंभीर विषय यह है कि विभीषण इस बार रावण से नहीं राम व भरत की ओर से रणक्षेत्र में उतर रहे हैं।
मऊ जनपद के मधुबन विधानसभा का फिलहाल हाल कुछ ऐसा ही है। मधुबन से बिहार के राज्यपाल फागू चौहान के पुत्र रामविलास चौहान को टिकट मिलने माहौल कुछ गर्म है। और मधुबन का आबो हवा अयोध्या से बिल्कुल मिल रहा है। अयोध्या भी सरयू के पावन तट पर बसा है और मधुबन सरयू के किनारे तो है ही, उस पार छोटी अयोध्या बरहज भी है। संयोग मधुबन से विरोधियों से लड़ने के लिए रामराज्य की भाजपा ने राम (रामविलास) को उतारा तो है लेकिन भैया भरत (भरत भैया) भी कर्मयोगी कार्यकर्ता व जनता की बदौलत जिद्द पर उतारूं है। अब तो जब तक नामांकन का तारीख बीत न हो जाए तब तक कुछ भी कहना अतिशयोक्ति होगा। लेकिन भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ लोगों को इस ओर पहल कर रामराज्य की कल्पना को साकार करना चाहिए ताकि राम, भरत या शत्रुघ्न (कोई और) कौन छोटी अयोध्या के पड़ोसी मधुबन का असली हकदार और दावेदार होगा, जो सपा, बसपा, कांग्रेस से लड़ सकेगा, यह तय हो सके।

