जयंती विशेष : भारत का एक “अटल” विराट व्यक्तित्व, जिसने समूचे विश्व में पहचान बनाई

राजेश कुमार सिंह
(स्वतन्त्र स्तम्भकार)
उत्तर प्रदेश से आगरा व तत्पश्चात ग्वालियर तक का अटल जी के पूर्वज का सफर अटल जी को अपने जन्मभूमि संबंधित मूल स्थान के प्रश्न से पर्दा हटाने पर विवश किया। उक्त प्रश्न का उचित उत्तर अटल जी देते हुए उत्तर प्रदेश को अपने पूर्वजों से संबंधित और ग्वालियर को अपना जन्म स्थान बताया ।उनके अनुसार उनके पूर्वज उत्तर प्रदेश के थे। उनके पिता कृष्ण बिहारी बाजपेई जी अंग्रेजी की शिक्षा ग्रहण करने के लिए आगरा आये ततपश्चात उनको ग्वालियर में शिक्षक की नौकरी लगी और वहीं मां भारती के अमर सपूत का इस लोक में स्वागत हुआ। उनकी माता कृष्णा जी का संबंध आगरा से था ।अटल जी को इस प्रश्न का सामना सामाजिक और क्षेत्रीय संकीर्णताओं के कारण करना पड़ा अन्यथा हम पहले भारतीय हैं और यही पहिचान ही काफी थी ।

1940 के दशक में कालेज के दिनों में अटल जी को उनके कोमल कवि ह्रदय -दिल ने एक प्रेमपत्र किताब के अंदर लिखने को विवश किया लेकिन वह अपने रिश्ते को कभी कोई नाम नहीं दिया। किंग्शुक नाग के अनुसार उनको अपने पत्र का जबाव नहीँ मिला। उन दिनों लड़के – लड़कियों की दोस्ती सामाजिक रूप से अच्छी नहीं मानी जाती थी । कहा जाता है कि राजकुमारी कौल उनसे विवाह करना चाहती थीं लेकिन उनके घर के अंदर कुल श्रेष्ठता को लेकर काफी बहस हुई और परिणाम समक्ष रहा, अटल जी अपने निर्णय पर आजीवन अटल रहे। राजीव शुक्ला जी के संबंधित सवालों के जबाब में अपने मस्त अंदाजेबयाँ में उन्होंने कहा कि अफेयर्स की चर्चा सार्वजनिक नहीं किया करते। उन्होंने कबुल किया कि अकेला महसूस करता हूँ, भीड़ में भीअकेला । बहुत बड़ी बात थी यह स्वीकारोक्ति,यह वाक्य उनके हृदय की वेदना बयां करने के लिए निःसंदेह सारगर्भित वाक्य था ।

कहा जाता है कि अपनी जवानी के दिनों में वे कम्युनिष्ट विचारधारा से प्रभावित थे लेकिन इसका वे खण्डन कर चुके हैं, हां वे मानते थे कि वे कम्यूनिष्ट सहित्य जरूर पढ़ें हैं । एक बालक के नाते वे आर्यकुमार सभा का सदस्य बने लेकिन इसके बाद वे आर एस एस के संपर्क में थे । कम्युनिज्म को एक विचारधारा के रूप में लेते पर वे कभी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य नहीं बने । छात्र आंदोलन में उनकी रुचि थी, जो कम्युनिष्टों की रणनीतिक गतिविधियां थी ।अटल जी के अनुसार एक साथ सत्यार्थ और कार्लमार्क्स पढ़ा जा सकता है जो उनके हृदय की विशालता का परिचायक है ।
अटल जी को किचन भी पसंद था और वह वहां भी खाली समय मे तन्मयता से आनन्द लेते थे ।वह हलवा,खीर और खिचड़ी आदि के पाक विद्द्या में विशारद थे । वे शास्त्रीय संगीत के अच्छे श्रोता थे और घूमना उनकी रुचि में था ।
अटल जी का भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ब्रितानी हुकुमत के जेल ने उनका स्वागत किया । भारत छोड़ो आंदोलन के बाद वे श्यामा प्रसाद मुखर्जी के सम्पर्क में आये और राजनीतिक दावँ- पेंच के गुण सीखे । श्यामा प्रसाद मुखर्जी के खराब स्वास्थ्य के कारण जनसंघ के कामकाज देखने लगे और उनकी मृत्यु के बाद जनसंघ की बागडोर सम्हाल ली ।अटल विहारी बाजपेई भारत की दक्षिणपंथी राजनीति में एक उदरबादी चेहरा थे ।उनके पिता जी पेशे से शिक्षक और हृदय से कवि थे ,उनके विचारों की अमिट छाप अटल विहारी बाजपेयी के ब्यक्तित्व में परिलक्षित होती है । जो उनकी ‘ मेरी इक्यावन कविताएं ‘ के रूप में पठनीय और अनुकरणीय हैं ।एक भाउक हृदय का ब्यक्ति ही कविता लिख -पढ़ सकता है ।

1957 में जब पहली बार वह बलरामपुर से सदन में पदार्पण किये तो वह उस समय के संसदीय नियमों के तहत बैक बेंचर हुआ करते थे । पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे उनकी पारखी नजर ने इस राजनैतिक कोहिनूर को पहिचान लिया और एक बार एक ब्रिटिश विजिटर पी एम से परिचय करते हुए कहा कि” इनसे मिलिए यह विपक्ष के उभरते युवा नेता हैं । हमारी हमेशा आलोचना करते हैं लेकिन इनमें मैं भविष्य की बहुत संभावना देखता हूँ । “ऐसा भी कहा जाता है कि नेहरू जी ने किसी विदेशी अतिथि से इनका परिचय संभावित भावी पी एम के रूप में कराया था । नेहरू के प्रति अटल जी का लगाव उनकी इस कार्य शैली से परिलक्षित होता है कि जब 1977 में अटल जी विदेश मंत्री बने और साउथ ब्लॉक अपने कार्यालय गए तो उन्होंने दीवाल पर लगी कुछ तस्बीरों पर गौर करने के बाद कुछ कमी महसूस की और प्रश्न किया तो पता चला कि वहां नेहरू जी की तस्वीर थी जो हटा दी गयी है । अटल जी ने उसे तुरंत उसे उक्त स्थान पर लगाने का आदेश दिया। अटल जी की विदेश नीति पर बहुत पकड़ थी ।अटल जी बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न नेता थे, उनकी वाकपटुता के सभी कायल थे, राजनीति पर उनकी कविताएं और व्यंग सबको आंदोलित कर देते थे ।वह मातृ भाषा से बेहद प्यार करते थे ।यह अटल जी का निज भाषा प्रेम और स्वंय पर विश्वास ही था कि पहली बार सयुक्त राष्ट्र संघ की सामान्य सभा को हिंदी में संबोधित कर इतिहास लिख दिया ।

अटल जी सिद्धान्त की राजनीति के पक्षधर थे वे जोड़ -तोड़ में यकीन रखने वालों में से नहीं थे ।सत्ता उनके लिए बनी थी न कि वे सत्ता के लिए पहली बार 13 दिन फिर एक साल और अंततः एक कार्यकाल पूरा कर नेहरू जी के बाद तीन बार पी एम रहने वाले विपक्ष के पहले नेता व एक कार्यकाल पूरा करने वाले विपक्ष के पहले नेता बन इतिहास लिखा । अटल जी कोमल हृदय के ब्यक्ति थे लेकिन समय के अनुसार कठोर निर्णय लेने में तनिक देर नहीं लगाते ।काफी समय से भारतीय वैज्ञानिकों को अपने आणविक अनुशंधान को प्रयोगशाला लेवल पर परीक्षण के लिए और डेटा की आवश्यकता थी परंतु इसके लिए कुछ और परमाणु परीक्षण की नितांत आवश्यकता थी। परमाणु बम बन कर इसके लिए तैयार भी था पूर्वर्ती सरकार अमरीका के दबाव के कारण इसको कार्यान्वित न कर सकी थी ।यहां अटल जी अटल इरादा काम आया और डॉक्टर अब्दुल कलाम साहब के नेतृत्व में मई 1998 में पोखरण में पुनः भूमिगत परमाणु परीक्षण हुवा ,’ बुद्ध मुस्कुराए ‘।अमरीका का कोड़ा चला लेकिन वह काम न आया और पुनः परीक्षण किए गए और प्रयोगशाला के परीक्षण के लिए आवश्यक डेटा उपलब्ध होने पर परीक्षण बंद हुआ।दुनिया को अटल जी के निर्णय पर आश्चर्य हुवा और भारतीयों को गर्व ।अब भारत एक परमाणु शक्ति के रूप में विश्व मानचित्र पर स्थापिति हो चुका था ।अटल जी ने प्रेम का परिचय देते हुए समझौता एक्सप्रेस ले कर पाकिस्तान गए तो गलती करने पर पड़ोसी देश के दूषित मन्शुबों को कारगिल में बोफोर्स की तोपों के गोलों से कुचल कर रख दिया और भारतीयों का मस्तष्क ऊंचा किया ।
अटल जी की सरकार ने विनिवेश मंत्रालय की स्थापना कर निजीकरण को बढ़ावा दिया ।अटल जी जब सत्ता का हस्तांतरण किये तो जी डी पी की दर 8 प्रतिशत ,मुद्रास्फीति की दर 4 प्रतिशत और विदेशी मुद्रा भंडार परिपूर्ण था । जो अपने आप मे एक रिकॉर्ड था।अटल जी स्वर्णिम चतुष्पथ योजना के द्वारा चेन्नई ,दिल्ली, मुम्बई और कोलकाता को जोड़ कर परिवहन की दिशा में नई क्रांति का आगाज़ किया । उन्होंने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के माध्यम से गांवों में संपर्क मार्ग को सुगम बनाया । सर्व शिक्षा अभियान को लागू कर पहले ही वर्ष में स्कूल न जाने वाले बच्चों की संख्या लगभग 60 फीसदी कम कर दी ।

उनके आकर्षक व्यक्तित्व के बारे में एक उदाहरण है कि 1991में पी वी नरसिंघा राव जी की सरकार थी और डॉक्टर मनमोहन सिंह जी वित्त मंत्री थे ।उदारीकरण का प्रारम्भ था । वित्तमंत्री के रूप में में मनमोहन सिंह जी ने बजट पेश किया और विपक्ष के नेता होने के कारण अटल जी ने सदन में मोर्चा संभाला ।कहा जाता है कि डॉक्टर मनमोहन सिंह उनके व्यंग बाणों से इतने आहत हुवे कि वे इस्तीफ़ा देने की सोच रहे थे और यह बात पी वी नरसिंघा राव जी पता चली और वे अटल जी को फोन कर उनको इस बात से अवगत कराया।अटल जी तुरंतअपने विशाल हृदय का परिचय दिया ,और डॉक्टर मनमोहन सिंह के घर गए और उनको समझाया कि यह विरोध तो राजनैतिक है और सदन में है ।परिणाम स्वरूप दोनो लोग दोस्त बन गए जो अंतिम दिनों तक चला ।डॉक्टर मनमोहन सिंह जी नियमित उनके स्वस्थ्य की जानकारी लेने उनके घर जाते थे ।
अटल बिहारी बाजपेई जी लगभग 50 वर्षों तक राजनीति में सक्रिय रहे ।वह आदर्शवादी और प्रसंशनीय राजनेता थे ।वह एक कुशल पत्रकार,कवि और राजनीतिक चिंतक थे । संसदीय परम्परा में वे नवीन मानदण्ड स्थापित किये ।उन्होंने सकरात्मक विपक्ष की भूमिका निभाई तो छोटे – छोटे दलों को इकठ्ठा कर एन डी ए की सरकार सफलता पूर्वक चला कर नवीन कीर्तिमान स्थापित किया । विपक्ष से कैसे सकारात्मक सहयोग संसद में लिया जाता है इसका आदर्श स्थापित किया । परिणाम स्वरूम पद्मविभूषण सम्मान ,लोकमान्य तिलक अवार्ड ,1994 में बेस्ट सांसद अवार्ड,1994 पण्डित गोविन्द बल्लभ पन्त अवार्ड और 2015 में भारत के सर्वश्रेस्ठ पुरष्कार भारत रत्न से सम्मानित हुए ।

यहअटल जी का आकर्षक और बिहारी व्यक्तित्व ही था कि विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व उन्होंने भारतीय संसद में किया। न केवल निम्न सदन वरन विपरीत परिस्थिति में उनके प्रभवशाली व्यक्तित्व ने उच्चसदन की भी गरिमा बढाई। देश को उनके बहुआयामी व्यक्तित्व का लाभ मिलता रहा ।
अटल विहारी बाजपेई निश्चित रूप से एक लोकप्रिय नेता रहे ।उनकी लोकप्रियता का प्रमाण उनकी अंतिम यात्रा में उमड़े जनसैलाब ,देश भर में हुईं श्रद्धांजलि सभाओं और दैनिक जनजीवन के ठप होने स्वतः परिलक्षित हुई थी ।
भारत सरकार उनके जन्मदिवस को सुशासन दिवस के रूप में मना रही है और युगगपुरुष को श्रद्धांजलि अर्पित कर रही है ।कृतज्ञ राष्ट्र उनका सदैव ऋणी रहेगा ।
मो.नं. 941536738